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धर्मकर्म: संडे के दिन करें ये कार्य जरूर, आपकी सभी मनोकामनाएं होंगी पूरी, ग्रह दोष से मिलेगा छुटकारा

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धर्मकर्म: संडे के दिन करें ये कार्य जरूर, आपकी सभी मनोकामनाएं होंगी पूरी, ग्रह दोष से मिलेगा छुटकारा
mahendra india news, new delhi

गीता में लिखा है कि व्यक्ति को कर्म करना चाहिए, फल की चिंता ने करें। हमें अच्छे कर्म करने चाहिए। आज का दिन यानि रविवार का दिन विशेष महत्व रखता है। हिंदू धर्म में सप्ताह के 7 दिन किसी न किसी देवी-देवता को समर्पित होता है। रविवार का दिन सूर्यदेव को समर्पित है। 


ज्योतिषचार्य महावीर शर्मा ने बताया कि सूर्यदेव की पूजा करने से मानसिक शांति, ऊर्जा और जिंदगी में कामयाबी का आशीर्वाद मिलता है। धार्मिक मान्यताओं के अनुसार जो भी व्यक्ति विधि विधान से सूर्यदेव की पूजा करता है उसके जीवन के कष्ट दूर होते हैं और आत्मविश्वास की बढ़ोतरी होती है। 

करें श्री सूर्य अष्टकम् का पाठ
संडे के दिन हमें पूजा करने के साथ इस दिन आप श्री सूर्य अष्टकम् का पाठ कर सूर्यदेव की कृपा पा सकते हैं। मान्यता है कि जो भी व्यक्ति इस स्तोत्र का पाठ श्रद्धाभाव से करता है उसकी जिंदगी में सुख, शांति, समृद्धि का वास होता है. इसके अलावा सूर्यदेव मनोकामनाएं पूरी करने के साथ-साथ ग्रह दोष से मुक्ति दिलाते हैं।

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 निरोगी शरीर पाने के लिए भी इस स्तोत्र का पाठ करना फायदेमंद साबित होता है. विशेष कृपा पाने के लिए आप इस पाठ का 7 रविवार लगातार करें।

श्री सूर्य अष्टकम् (Surya Ashtakam Lyrics in Hindi)

आदिदेव नमस्तुभ्यं प्रसीद मम भास्कर ।
दिवाकर नमस्तुभ्यं प्रभाकर नमोऽस्तु ते॥

सप्ताश्व रथमारूढं प्रचण्डं कश्यपात्मजम् ।
श्वेत पद्माधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

लोहितं रथमारूढं सर्वलोक पितामहम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

त्रैगुण्यश्च महाशूरं ब्रह्माविष्णु महेश्वरम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

बृहितं तेजः पुञ्ज च वायु आकाशमेव च ।
प्रभुत्वं सर्वलोकानां तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

बन्धूकपुष्पसङ्काशं हारकुण्डलभूषितम् ।
एकचक्रधरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

तं सूर्यं लोककर्तारं महा तेजः प्रदीपनम् ।
महापाप हरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

तं सूर्यं जगतां नाथं ज्ञानप्रकाशमोक्षदम् ।
महापापहरं देवं तं सूर्यं प्रणमाम्यहम् ॥

सूर्याष्टकं पठेन्नित्यं ग्रहपीडा प्रणाशनम् ।
अपुत्रो लभते पुत्रं दारिद्रो धनवान् भवेत् ॥

अमिषं मधुपानं च यः करोति रवेर्दिने ।
सप्तजन्मभवेत् रोगि जन्मजन्म दरिद्रता ॥

स्त्री-तैल-मधु-मांसानि ये त्यजन्ति रवेर्दिने ।
न व्याधि शोक दारिद्र्यं सूर्य लोकं च गच्छति ॥

नोट : आपको बता दें कि ये जानकारी सामान्य मान्यताओं और जानकारियों पर आधारित है, हम इसकी पुष्टि नहीं करते हैं।