भगवान शिव के प्रतिरूप है पेड़, जो विष पीकर अमृत रूपी ऑक्सीजन देने का कार्य करते है, इस प्रतीक को समझे सभी
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
हम सभी अक्सर एक गलती करते है , जो हमारे धार्मिक सिंबल है उन्हें समझने में अधिकतर भ्रमित हो जाते है। कहते समुद्र मंथन में पहले विष निकला और उसके अंत में अमृत निकला, जिसके बंटवारे पर देवों तथा राक्षसों में लड़ाई हुई लेकिन अंत में अमृत देवों के हिस्से आया था। और जो विष निकला था उसे भगवान शिव ने ग्रहण किया था, इसीलिए हमारी भारतीय संस्कृति में शिव को संरक्षक तथा संहारक माना जाता है। देवों का देव कहा जाता है, सबसे बड़े ध्यानी, योगी माना जाता है।
सावन का महीना भगवान शिव को समर्पित इसीलिए है कि वो प्रकृति के प्रति जागरूक करने वाले है। हम अगर इस प्रतीक पर विमर्श करे और वर्तमान परिदृश्य में देखें तो ऐसा लगता है जैसे पेड़ ही भगवान शिव के प्रतिरूप है, जो इस धरती पर सभी प्रकार के प्रदूषण को खुद पीते है, खुद ग्रहण करते है और इंसान को ऑक्सीजन के रूप में अमृत प्रदान करते है। प्राणवायु भी तो अमृत समान ही है जिससे हमारा जीवन चलता है। पेड़ पौधे भगवान शिव के ही तो रूप है, जो सभी जहरीली गैसों को ग्रहण कर प्राणवायु देने का कार्य करते है, जो इन्हें करेंगे वो भगवान शिव को नाराज करेंगे, वो पीड़ित होंगे बीमारियों से, तहलीफ से, इसलिए हर व्यक्ति को पेड़ो को शिव रूप मान कर सेवा करनी चाहिए। सावन के महीने में अधिक से अधिक पौधरोपण करना और उनमें पानी डालना भी तो शिव लिंग पर जल चढ़ाने के समान ही है।
हमारे सामने भारतीय संस्कृति में सिंबल विज्ञान है जिसे कोई समझना ही नहीं चाहता है और केवल पाखंडियों के बहकावे के आ जाते है, परंतु अपनी ही संस्कृति के सिंबल जो हमे रास्ता दिखाने का कार्य करते है, उनको वैज्ञानिक दृष्टिकोण से नहीं देखते है। समुद्र मंथन का अर्थ गहन चिंतन होता है और जब हम किसी विषय पर सागर मंथन करते है तभी ही जीवन में सुगम रास्ते निकलते है। ये तो साधारण सी बात है कि किसी भी विषय पर जब विमर्श होता है तो सबसे पहले लोगों के मनमुटाव ही सामने आते है लोग एक दूसरे के प्रति जहर ही तो उगलते है, परंतु जब चिंतन लगातार होता है तो फिर धीरे धीरे सॉल्यूशन निकलता है और अंत में ही अमृत निकलता है, जिस पर सब अपना अधिकार जमाते है। वर्तमान में चिंतन मंथन कोई नहीं करना चाहते है, संवाद के बिना अमृत चाहते है, लेकिन अमृत सभी को चाहिए, मेहनत कोई करना नहीं चाहते, परंतु फल सभी को चाहिए। ऐसा लगता है, जैसे जीवन भीड़ में कहीं गुम हो गया है ,ऐसा लगता है। हम अपनी संस्कृति के प्रतीकों को बिना अर्थ समझे ढो रहे है। हम किसी भी सिंबल के विज्ञान को समझना ही नहीं चाहते है।
सावन का महीना हमे जल संचयन, जल संरक्षण तथा पौधारोपण के लिए प्रोत्साहित करता है लेकिन हम इसे समझते ही नहीं है। हमारे सामने जीवन देने वाले पेड़ खड़े है, वातावरण का सारा जहर वा विष पीने कर लिए खड़े है, पर हम उनकी तरफ ध्यान ही नहीं देते है। गंगा जल कांवड़ के माध्यम से लेकर आते है, जल संचयन की ओर ही तो इशारा है, अगर कांवड़ लाने वाले सभी लोग एक एक पेड़ लगाकर उन्हें सींचने, पालन पौषण का भी कार्य करें तो निश्चित रूप से इस धरती माता पर फैल रहे कार्बन डायऑक्साइड, कार्बन मोनोऑक्साइड और सभी जहरीली गैसों को ये शिव रुपी पेड़ ग्रहण कर मानव जीवन को ही नहीं बल्कि हर जीव को स्वस्थ जीवन देने का कार्य करेंगे। अपने प्रतीकों को समझने का कार्य करो। युवा दोस्तों, सावन के महीने में कोई तो संकल्प लो, क्योंकि आज जल संरक्षण और पौधारोपण की बेहद जरूरत है। सबसे अधिक ऑक्सीजन पीपल का पेड़ छोड़ता है इसका अर्थ यह हुआ कि ये जहर भी अधिक पीते है।
भगवान श्रीकृष्ण ने श्रीमद्भगवद् गीता के दसवें अध्याय के श्लोक 26 में कहा है कि " अश्वसथ: वृक्षानाम" अर्थात सभी वृक्षों में मैं पीपल हूँ। ये पेड़ जिसे हम पीपल कहते है ये सभी भगवान के रूप है। इसलिए अपने जीवन में वृक्ष लगाओ तथा और उनमें पानी भी चढ़ाओ, यही तो हमारे पर्यावरण को शुद्ध करते है। एक और विशेष बात मै यहां कहना चाहता हूँ कि किसी ने अमृत देखा है, किसी ने समुद्र मंथन देखा है? अरे यही तो समुद्र मंथन है कि हम अपनी पृथ्वी को बचाएं। यही जल और प्राणवायु ही तो अमृत है, जिसे ग्रहण कर हमारा जीवन चलता है और हम है कि इसे इधर उधर ढूंढ रहे है। आओ हम सभी मिलकर एक संकल्प जरूर ले कि आगे से किसी भी वृक्ष को काटेंगे नहीं और अगर बेहद जरूरी हो जाए तो उसके लिए पांच पौधे लगा कर उनका पालनकर भरपाई करेंगे। यहां मैं पंच मंथन का सुझाव आपके समक्ष रखने की हिमाकत कर रहा हूँ,
मुझे पूर्ण विश्वास है कि सभी इनको अपने मन में स्थान देंगे और इस धरती माता को विष से बचाएंगे, जैसे:
1. अपनी जलवायु के अनुसार ही देशी पौधे लगाएं, विदेशी वा विषैले पौधों से सावधान रहे।
2. जो अधिक ऑक्सीजन दे उन्ही पौधों का रोपण करें।
3. हर पौधे को शिव रूप समझकर उनमें जल देने का कार्य करें।
4. अगर भगवान शिव को प्रसन्न करना चाहते हो तो उनके प्रतिरूप पेड़ पौधों को अपने घर में अन्यथा आसपास पौधारोपण करे तथा उनका पालन करें तथा उन्हें नियमित जल दें।
5. जल संरक्षण के लिए आगे आए और वर्षा जल को ऐसे ही ना बहने दे, सीवरेज में ना जाने दे, उसका संरक्षण करें।
मानव जीवन मिला है तो इसे पशु की तरह मत जीएं। चेतना का उपयोग करना सीखें, अपने बुजुर्गो की कुछ तो मानो। अगर प्रलय से बचना है तो ऐसा कोई कार्य न करे, जिससे इस धरती माता पर गर्मी बढे। हर इंसान की छोटी छोटी विरुद्ध गतिविधियों से धरती का तापमान बढ़ता है और हम प्रलय के और करीब आते है। आओ समझदारी से जीवन जीएं, ये केवल वर्तमान पीढ़ी के लिए नहीं है, प्रलय होगी तो कोई नहीं बचेगा, ना कोई अमीर, ना कोई गरीब, ना कोई धनवान, ना कोई उद्योगपति, सब मरेंगे, सभी मरेंगे, इसलिए अपने शिव रुपी पेड़ो को बचाएं तथा उनपर जल चढ़ाएं ताकि धरती का तापमान कम हो सकें।
जय हिंद, वंदे मातरम
