भगवान श्रीगणेश जी की प्रतिमा हमें क्या शिक्षा देती है, इसे अपनी जिंदगी में धारण करना ही सच्ची भक्ति
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने अपने लेख में बताया है कि किसी भी प्रतिमा के सामने धोक मारने से काम नहीं चलेगा, केवल धूप अगरबत्ती जलाने से कार्य नहीं होगा, केवल देखने मात्र से भी जीवन नहीं बदलेगा। भगवान श्रीकृष्ण जी महाराज ने श्रीमद्भागवत में कहा है कि "हतो वा प्राप्ययशी स्वर्गम्, जितवा वा भोग्यशी महीम। ऊतिष्ठ हे कौंतेय युद्धय" कृत निश्चय।।
यहां श्रीकृष्ण यही समझाते है कि हे अर्जुन तुम खड़े हो जाओ और युद्ध करो, ये तुम्हारा कार्य है, ये तुम्हारा क्षत्रिय धर्म है इसलिए उठो और युद्ध करो। इससे ये सिद्ध होता है कि भगवान तुम्हारे लिए कोई कर्म नही करेंगे, तुम्हे केवल प्रेरणा देने का कार्य करते हैं। केवल निक्कमे होकर धोक मारने से तुम्हे कोई फल नही मिलेंगे। यहां मेरा मानना है कि जितने भी देवताओं की प्रतिमा है वो प्रतीक का विज्ञान है, जिसे हम इंग्लिश में साइंस ऑफ़ सिंबॉलिज्म कहते हैं।
उन्होंने आगे अपने लेख में बताया है कि श्री गणेश जी की प्रतिमा भी हमें कुछ सिखाने के लिए है, ना कि अगरबती जलाने के लिए हैं। मैं यहां भगवान श्री गणेश जी की प्रतिमा देखने से पहले कुछ महत्वपूर्ण बाते आपके सामने रखना चाहता है, जैसे जब हम कबीलों में रहते थे तो जन जन का एक संरक्षक होता था, एक मालिक होता था, एक मुखिया होता था जिसे हम गणपति कहते थे यानी गण गण का एक संरक्षक, जो सभी लोगों को भोजन पानी तथा सुरक्षा उपलब्ध कराता था, उसे ही हम उस समय गणपति कहते है। जनता का संरक्षक, जन जन का ईश अर्थात गणेश या गणपति, जन कल्याण के कार्य करते थे। उन्ही ईश को हम श्री गणेश या गणपति कहते है और हमारे पुराणों में उन सब को प्रतीकात्मक रूप से हर आम से आम इंसान तक ईश्वरीय रूप को पहुंचाने तथा समझाने का कार्य किया हैं। उसी प्रतिमा को हम अब आज के जनमानस के सामने रखें , ये तो पुण्य का कार्य है।
श्री गणेश की प्रतिमा में उनके बड़े सिर, बड़ी नाक, बड़े बड़े कान, उनका कुंभ सा बड़ा पेट, उनके कई हाथ, एक पैर नीचे तथा दूसरा पैर चौकी में, उनकी मुसक की सवारी, हाथो में फल, साथ में रखे लड्डू का थाल, ये हमे कुछ समझाने का काम करते हैं। ये प्रतीक है हमारे लिए, जिसे हम एक जमाने में भीति चित्र भी कहते थे। जब हम कोई नया कार्य शुरू करते है तो हम श्री गणेश जी की पूजा करते है। आओ मिलकर इसे समझने का प्रयास करें।
1. भगवान गणेश जी का बड़ा सिर, हम सभी को समझाने का प्रयास करता है कि जब भी हम कोई नया कार्य करने का विचार करते है तो गणेश जी का बड़ा सिर हमे समझाता है कि सबसे पहले हम बड़े दिमाग से प्लान बनाए, विचार करें,तथा खूब मंथन करें। बड़ा विचार करें, खूबी बुद्धि से सोचने के उपरांत ही अपना प्लान तैयार करें।
2. बड़े बड़े कान, इनका अर्थ होता है कि जब भी हम कोई कार्य शुरू करते है तो खूब सुने , सुनने की क्षमता पैदा करें, लोगों से खूब जानकारी लें, और अपने भीतर मंथन करें।
3. बड़ी नाक अर्थात सूंड, इसका सीधा अर्थ है कि किसी भी बड़े कार्य के लिए बड़ी नाक हमे समझाती है कि हमारी बातों को सूंघने की शक्ति होनी चाहिए। छोटी से छोटी बातों को भी समझने वा ग्रहण करने की क्षमता विकसित करें, ये गणेश जी की बड़ी सूंड ,हमे शिक्षा देती हैं, कि जीवन में चारो ओर से जागरूक रहें।
4. बड़ा पेट, अर्थात हमारी बातों को पचाने की क्षमता होनी चाहिए। हम खूब सुने, अपने पेट में रखे , मंथन करें, प्लान बनाएं तथा चुगली ना करें। किसी की बात इधर से उधर ना करे। चुगलखोर ना बनें।
5. कई हाथ, जो हमारे लिए कर्मठता के प्रतीक है, कई हाथ का अर्थ है कि आप मल्टी डाइमेंशनल कार्य कर सकें, कई कई कार्यों को आसानी से संभाल सकें।
6. एक पैर नीचे तथा दूसरा ऊपर, इसका अर्थ है कि हम सदैव चलायमान रहें, निरंतर कार्य करते रहें, कभी बैठे नही। तभी जीवन सार्थक बनता हैं।
7. थाल में लड्डू, इसका प्रतीकात्मक विज्ञान है कि अगर हम ऐसा व्यवहार करेंगे तो जीवन धनधान्य से परिपूर्ण होगा, समृद्धि होगी, जीवन में मिठास होगी, तालमेल होगी।
8. मूसक की सवारी: इसका मतलब यह है कि हर उस कुतरने वाले से सावधान रहना होगा , जो हमारी प्रगति को कुतरने का कार्य करते है, उसको हमे अपने विवेक से नीचे दबा कर रखना होता हैं। हम जब गणपति की बात करते है तो जन जन का संरक्षक थे, भोजन अनाज देने की जिम्मेदारी थी तो उसमें अनाज को नुकसान पहुंचाने वाले चूहे या मूसक से भी बचाने की कवायद करते हैं। इस मूषक का नियंत्रण, हमे कई तरह से शिक्षा देता है कि हमे अपनी मेहनत को किसी के नुकसान से बचाना, किसी काम बिगाड़ने वाले से सावधान रहने के लिए भी, उनको दबाकर रखने की जरूरत हैं।
9. एक हाथ में कमल: इसका अर्थ है कि जब हम कोई अपना नया कार्य शुरू करते है तो हमे बहुत ही सावधान तथा निरलेप रहने की जरूरत होती हैं। यानी हमे जीवन में किसी से ज्यादा मोह, लोभ, आशक्ति वा लालच नही होना चाहिए। हम जीवन में संतुष्टि वा शांति के लिए कमल की तरह व्यवहार करें, जैसे सभी लाभ हानि, दुख सुख, तथा मान अपमान से ऊपर उठ कर रहे। किसी के व्यवहार से अपनी शांति वा संतोष को भंग ना होने दें, यही सबसे बड़ी कामयाबी हैं।
जब हम भगवान श्री गणेश या श्री गणपति की प्रतिमा को देखते है तो हमे आज तक यही बताया गया है कि इनके सामने धूपदीप करना है और धोक लगानी है। किसी ने ये नही बताया, कि श्री गणेश जी की प्रतिमा हमारे जीवन को दिशा देने के लिए प्रेरणा है जिनका दर्शन करके हमे अपने जीवन को वैसा बनाना होगा, जिससे हमारे भीतर भी वही शक्ति तथा क्षमता पैदा हो जाए और हम अपने जीवन को हमारे शास्त्रों के अनुसार ईश्वरीय कार्य में लगा सकें। जन जन के कल्याण के अधूरे कार्यों को पूरा करने की धारा से जुड़ सकें। ये प्रतिमा का विज्ञान हमे नई दिशा देने का कार्य करता है, इसे हर स्तर पर समझने की जरूरत है। आओ बहुत ईमानदारी के साथ इसे समझे तथा इसके अनुरूप जीवन में कर्मठता लाएं, ईमानदारी लाए तथा विमर्श को जीवन में स्थान दें।
जय हिंद, वंदे मातरम