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धूलंडी उत्सव का शाब्दिक अर्थ क्या है, जिसे भगवान विष्णु की वंदना के रूप में मनाया जाता है

 
What is the literal meaning of Dhulandi festival, which is celebrated to worship Lord Vishnu
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 What is the literal meaning of Dhulandi festival, which is celebrated to worship Lord Vishnu
Mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
डा. नरेंद्र यादव ने आज होली पर्व के बारे में बताया कि धूलंडी शब्द तो सभी ने सुना है और हमारे भारत में इस त्यौहार को बड़ी धूमधाम से मनाया जाता हैं, खासकर उत्तरी भारत में तो बड़े प्रेम वा उत्साह से मनाया जाता है। क्या कभी आप लोगों ने धुलंडी शब्द का अर्थ जानने की उत्सुकता दिखाई है। यह त्यौहार भारतीय संस्कृति के अनुसार होली के अगले दिन मनाया जाता हैं, भगवान विष्णु जो सबके जीवन पालन करने वाले देवता के रूप में माना जाता है ,जैसे हम होलिका दहन में सभी बुराइयों को होलिका के रूप में दहन करते हैं और फिर अगले दिन अर्थात नए वर्ष के आरंभ से 15 दिन पहले से ही हम अपने आप को नए साल में प्रवेश करने के लिए तैयार करते है। उसी की वंदना में यह त्यौहार मनाया जाता हैं। धुलंडी का शाब्दिक अर्थ धूल से वंदना करना यानी अपने शरीर पर अथवा माथे पर धूल से तिलक करना। वास्तव में यही शब्द धूलवंदी शब्द  का अपभ्रंश हैं। 


पहले यह धूलवंदी से धूलवंडी हुआ और उसके बाद यही शब्द धूलवंडी से धुलंडी बन गया , जिसका अर्थ है कि हम पिछले वर्ष के सारे गीले सिकवे भुला कर अपनी सारी बुराइयों को होलिका दहन के साथ जला कर, शुद्ध मन से नए वर्ष में प्रवेश करें। इसी लिए होलिका दहन के अगले दिन उसी राख से लोग आपस में तिलक करते थे यानी धूल से वंदन करते थे और भगवान विष्णु का वंदन भी करते थे, क्योंकि नई फसल का भी आगमन होता था जिसमें नई फसल जौ अथवा गेंहू या चने की बाली भून कर उसे पूजने तथा खाने का रिवाज भी हमारे यहां सदा से रहा हैं। धुलंडी शब्द धूल से वंदना करने का उत्सव है और इसे लोग पांच दिनों तक मनाते थे। धीरे धीरे यही रीति रिवाज धूल से गुलाल और रंगो तक पहुंच गए।  धीरे धीरे यही धूल , रंग गुलाल से होते हुए कीचड़ पक्के रंगों तक पहुंच गई। तथा यह पवित्र त्यौहार जिसमें भाईचारा बढ़ाने का लक्ष्य रहता था वो कब शराब वा नशे का त्यौहार बन गया, पता ही नहीं चला। आज अधिकतर लोग इस धुलंडी के त्यौहार में भाईचारा बढ़ाने की जगह लड़ाई झगड़ा करते हैं। इस कलरफुल उत्सव में भांग,नशा, और शराब ने जरूरत से ज्यादा जगह बना ली हैं, तथा लोगों द्वारा बैठ कर रंगों के उत्सव को नशे के उत्सव में बदल दिया गया हैं। वैसे तो यह उत्सव पीले रंगों का भी उत्सव हैं क्योंकि चारो तरफ पीले रंग के फूलों ने धरती माता का  श्रंगार किया हैं। क्या आप लोगों ने कभी अनुभव किया है फाल्गुन के महीने में चारो ओर पीला रंग ही क्यों फैलता है,

 प्रिय दोस्तो यह माह भगवान विष्णु का रंग हैं इसी रंग में पालन है यही रंग भगवान विष्णु, भगवान कृष्ण , भगवान राम का है। इसीलिए फाल्गुन में यही रंग खिलते है, और इस माह में पीले रंगों का आधिपत्य होता है। इस माह में या तो सफेद फूल या पीले रंग की ही बहुतायत होती हैं। आप सभी जानते है कि पीला रंग भगवान विष्णु का रंग है, जब हरे रंग पर पीला रंग आता है उसके बाद फल आता है जो पालन पौषण का रंग है। पीला रंग पॉजिटिव एनर्जी का द्योतक होता हैं। धुलंडी, धूल के वंदन से शुरू हुई और फिर कीचड़ से होते हुए पीले रंग के गुलाल तक पहुंची । फिर यह धुलंडी की यात्रा पीले रंग के गुलाल से होती हुई पीले रंग के पक्के रंग तक पहुंची, उसके बाद अनेक रंगों में मिल गई। धुलंडी,अन्न , धन , जन जन के पालन का उत्सव हैं। 

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पीले रंग से रक्त का संचार ठीक होता है, पाचन तंत्र अच्छा होता हैं। यह रंग शुभता का प्रतीक हैं। प्रिय दोस्तों, धुलंडी एक ऐसा उत्सव है जो सभी को निम्न शिक्षा देता हैं, जैसे ;
1. धुलंडी, धूल को माथे पर लगाने का उत्सव हैं। इसलिए सभी को प्रेम करो, करूणा रखो। इससे बड़ा कुछ भी नहीं है, धूल को माथे पर सजाने का अर्थ है अपने भीतर विनम्रता का भाव रखना।
2. धुलंडी,सभी गलतियों को भुला कर गले लगाने का त्यौहार हैं।
3. धुलंडी, धरती माता का पूजन करने का दिन हैं तथा श्रंगार करने का दिन हैं।
4. धुलंडी, धरती को जहर मुक्त यानी सभी प्रकार की कटुता मिटाने का दिन है। अगर वर्तमान परिपेक्ष में देखें तो इस धरती पर होने वाली खेती को भी जहरमुक्त करना जरूरी है।
5. धुलंडी, भगवान विष्णु की वंदना करने का दिन हैं। अर्थात माता पिता का वंदन करने का दिन भी हैं, क्योंकि दर्शन रूप में मातापिता ही तो सभी का पालनपौषण करते है।
6. धुलंडी, उस धरती को मस्तक पर लगाने का दिन है जो हमे अन्न धन धान्य देती हैं। जो हमे आश्रय देती है।
7. धुलंडी, पक्के हुए अन्न को ग्रहण करने का दिन है जो स्वास्थ्य वर्धक होते हैं। भुने हुए अन्न जैसे भुना हुआ गेहूं, चना भी स्वास्थ्य के लिए लाभदायक हैं।
8. धुलंडी , प्रकृति के उत्सव को मनाने का दिवस हैं। सभी मातापिता अपने बच्चों को प्रकृति के साथ जुड़ने की प्रेरणा दें।
9. दोस्तों! ये त्यौहार सभी जाति पाती तथा धर्मो से उपर उठने का उत्सव है। सभी को गले लगाने का दिन हैं।
10. एक नए वर्ष में एक नए दृष्टिकोण तथा प्रेम से नए वर्ष में प्रवेश की तैयारी करने  का दिन हैं।
 


प्रिय नागरिकों! आप सभी अपनी आने वाली पीढ़ियों को इस उत्सव की जानकारी देने के लिए प्रयत्न करें, जिससे इस प्रेम के सबसे बड़े उत्सव को जिंदा रखा जा सकें और भारतीय भाईचारे की संस्कृति का संरक्षण किया जा सकें। इसके साथ ही प्रकृति प्रेम के साथ इसका संरक्षण करना भी सीखे।
जय हिंद, वंदे मातरम