home page

बाजी राउत: बाजी राउत भारतीय स्वस्तंत्रता आंदोलन के सबसे कम आयु के सेनानी के बलिदान को भी याद करें

 | 
बाजी राउत: बाजी राउत भारतीय स्वस्तंत्रता आंदोलन के सबसे कम आयु के सेनानी के बलिदान को भी याद करें
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने अपने लेख में बताया है कि देश की आजादी की जंग में लाखों स्वतंत्रता सेनानियों ने अपने जीवन को खपाया था तब देश स्वतंत्र हुआ। आज देश में बहुत कम नागरिक बचे है जो स्वतंत्रता आंदोलन के समय जीवित थे। भारत को आजाद हुए 77 वर्ष हो चुके है, हम 15 अगस्त को आजादी का 78 वां साल मनाने जा रहे हैं। इसमें हमने लाखो महापुरुषों का बलिदान किया था। तब जाकर हमे आजादी मिली थी, एक बड़ी संख्या में हमारे बलिदानी इतिहास के पन्नों में गुम हो गए। आज मैं उन्हीं में से भारत माता के महान सपूत बाजी राउत के बलिदान के विषय में कुछ जानकारियां आपके सामने रखना चाहता हूँ। हमारी स्वतंत्रता की जंग के सबसे कम उम्र के शहीद के रूप में हमने महान स्वतंत्रता सेनानी खुदीराम बोस के बारे में तो खूब पढ़ा है लेकिन बाजी राउत, जैसे नन्ही सी आयु रखने वाले बलिदानी के बारे में शायद कम ही पढ़ा होगा। 


चलो आज भारत माता के एक और महान एवम् बाल रूप आजादी के दीवाने बाजी राउत का जन्म 5 अक्तूबर 1926 निलाकंठा पुर गांव ढेंकनाल में हुआ था उनके पिता नाव चलाने का काम करते थे। गांव में बाजी राउत को बाजिया के नाम से लोग जानते थे।  बाजी राउत वानर सेना के सदस्य थे। अंग्रजी शासन का कहर बढ़ता जा रहा था , अन्याय की सीमाएं टूट रही थी, तानाशाही चरम पर थी। लोग विरोध करते थे तो उन्हे जेल में डाल दिया जाता था,उनकी बर्बरता से जन सामान्य में विरोध बढ़ता जा रहा था। अंग्रजी शासन की बर्बरता की हरकते इतनी बढ़ गई थी कि किसी को भी मार दिया जाता था और किसी को भी जेल में डाल कर उन पर अत्याचार की सभी सीमाएं लांघी जाती थी। लोगों के विरोध पर एक बार अंग्रेजी पुलिस ने गोली चलवा दी और उसमे दो आंदोलनकारियों की जान चली गई, ढेंकनाल जिले में कहर बरपाया गया, जिसका जबरजस्त विरोध हुआ। 

इसके खिलाफ जनता ने अंग्रेजी पुलिस को घेर लिया गया। यह चिंगारी , ज्वाला में बदल गई। लोगो ने पकड़े गए आंदोलनकारियों को छुड़ाने के लिए पुलिस को घेर लिया गया, उससे डर कर अंग्रेजी पुलिस ब्राह्मणी नदी के घाट होते हुए ढेंकनाल की ओर भागने की कौशिश करने लगे। 11 अक्तूबर 1938 को अंग्रेजी पुलिस नदी पर पहुंची, जहां नदी पार करने के लिए नाव की जरूरत थी। लेकिन वहां पर वानर सेना का पहरा था और बाजी राउत पहरा दे रहे थे। अंग्रजी पुलिस ने उन्हें नदी पार कराने के आदेश दिए, जिसे बाजी राउत ने मना कर दिया क्योंकि बाजिया को उस आंदोलन का पता था। बाजी राउत के मना करने पर अंग्रेजी पुलिस के एक सिपाही ने उनके सर पर राइफल की बट्ट मार कर उन्हे लहूलुहान कर दिया। इस पर भी बाजी राउत नही माने और उनके सामने विरोध में खड़े हो गए। इतना विरोध होते देख अंग्रेजी पुलिस ने उन पर बर्बरता पूर्ण गोलियां चलानी शुरू कर दी और इस  कहर में बाजी राउत की जान चली गई, उनके साथ लक्ष्मण, फगु साहू, हर्षी प्रधान तथा नाता मालिक भी शहीद हो गए थे। बहुत बड़ा विरोध हुआ और भारत की आजादी किए लिए ये चिंगारी आग में बदल गई। भारत मां का एक लाल जिसकी उम्र मात्र 12 वर्ष थी, अंग्रेजी पुलिस के आगे नहीं झुके और अपने प्राणों की आहुति दे दी। 

WhatsApp Group Join Now


बाजी राउत का अंतिम संस्कार ढेंकनाल जिले में जो उस समय कटक में पड़ता था, के खाननगर में किया गया। जहां उनकी याद में आज भी लोग इक्कठा होते है तथा उनकी शहादत को याद करते हैं। हमारे भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में बाजी राउत का नाम सबसे छोटी उम्र के शहीद के रूप में दर्ज हैं। एक बारह वर्ष के बच्चे ने देश की आजादी में जो प्राणों की आहुति दी, उससे तो हम सभी को प्रेरणा लेनी चाहिए, हमारे देश के बच्चों को भी प्रेरणा लेनी चाहिए जिन्हे उनके मातापिता अपने हाथ से खाना खिलाते है, उनके हृदय में एक अग्नि जलनी चाहिए  कि ये स्वतंत्रता ऐसे ही नही मिली है। इसे सहेज कर रखने की जरूरत हैं। भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों के प्राणों के बदले, हमारा इतना कर्तव्य तो बनता है कि हम देश के प्रति अपने अपने कर्तव्यों को ईमानदारी से निभाना सीखें। स्वतंत्रता का एहसास तभी हो पाता है जब किसी ने गुलामी देखी हो, जिन्होंने आजादी की लड़ाई लड़ी हो, जिन्होंने उस समय को देखा हो। आज चाहे कोई कुछ भी कहते रहे,  लेकिन हमे उस आंदोलन से सीखना चाहिए। 

वर्तमान में भारत का कोई नागरिक उस स्तर का व्यक्तित्व नही रख पा रहा है। जो उस समय के एक बालक का होता था।  आओ मिलकर देश की स्वतंत्रता को और सुंदर बनाने के लिए कार्य करें। अपनी ड्यूटी को निभाएं, जो कार्य किसी भी नागरिक को दिया है उसे ईमानदारी, सच्चाई, समय का पालन करते हुए, विनम्रता के साथ, करुणामय होकर राष्ट्रभक्ति के साथ उत्साह लिए हुए करने के लिए तत्पर रहें। देश के दूसरे नागरिकों के अधिकारों का हनन तथा हक को छीनने का कार्य ना करें। तभी हम उन महान स्वतंत्रता सेनानियों को अपने हृदय में स्थान दे पाएंगे। 
जय हिंद, वंदे मातरम