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नाम जप, किरत करों, वंड छकों, इन मानव उत्थान के सर्वश्रेष्ठ मूल्यों को जाने युवा पीढ़ी

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Chant the name, do work, and enjoy the blessings; the young generation should know these best values ​​of human upliftment

mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
जब हम ह्यूमन वैल्यूज की बात करते है तो हमे गुरु नामक जी द्वारा दिए गए जीवन मूल्यों की श्रेष्ठता का ध्यान आता है, जिन्हे अपना कर हर इंसान ना केवल खुद का उत्थान कर सकता है बल्कि राष्ट्र के उत्थान में भी अपना योगदान दे सकता है। वैसे  कई विषयों पर संदेश गुरु जी ने अपनी पवित्र वाणी से जन सामान्य को दिया है, लेकिन मैं यहां युवा पीढ़ी को तीन विशेष शिक्षाओं के बारे में बताना चाहता हूँ, तीन विशेष संदेशों के बारे में कहना चाहता हूँ,

जो मानव जीवन के चहुंमुखी विकास के लिए आवश्यक है। जब चारों ओर मानव जीवन में आपाधापी बढ़ रही हो, कल्याण की सीमाएं केवल खुद तक सिमट रही हो, एक दूसरे के शौषण में लोग लग रहे हो, अपने ही बच्चों को राष्ट्र मानने की कमजोरी हो, सत्य के स्थान पर झूठ का सहारा ले रहे हो, दूसरे के मुंह का निवाला भी छीनने की वृति बन रही हो, और ऐसी सभी आदतों को विकसित किया जा रहा हो, जो तामसिक हो, ऐसे में आज हम सभी को गुरु नामक जी महाराज के पवित्र तीन संदेशों को जीवन में धारण अवश्य करने का संकल्प लेना चाहिए, जो जीवन मूल्यों के आधार है। इनमें नाम जप करना, उस एक ओंकार का जप ध्यान करना आज की युवा पीढ़ी तथा नई जेनरेशन के बच्चों के लिए जरूरी है, दूसरा किरत करना अर्थात ईमानदारी से कमाना, सत्य के साथ खड़े होकर अपने व्यक्तित्व का विकास करना, जब हम ईमानदारी वा सच्चाई की बात करते है तो हमारे व्यवहार में तीन गुण अपने आप उतरते है,

पहला गुण अस्तेय, जिसमें किसी भी प्रकार की चोरी से दूर रहने की बात होती है, दूसरा गुण अपरिग्रह अर्थात अपनी जरूरत से ज्यादा का संग्रह ना करना, जिसको जरूरत है उसका हिस्सा उस तक पहुंचे ऐसी मंशा रखना और तीसरा गुण तप अर्थात मेहनत से कमाना, हेराफेरी से धन का संचय ना करना, किसी से कार्य करा कर उनकी मेहनताना तुरंत ईमानदारी से भुगतान करना। इसमें युवाओं को परिश्रम का गुण विकसित करने की प्रेरणा मिलती है और वो भी तप से, मेहनत के द्वारा, ईमानदारी के साथ।

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इस गुण से विद्यार्थियों में मेहनत से अपनी शिक्षा ग्रहण करने की प्रेरणा मिलती है, नकल से दूर रहकर अपनी श्रेष्ठता बढ़ाने की भी प्रेरणा मिलती है, मेहनत करने वालों के प्रति आदर सम्मान के भाव विकसित होते है, टेलेंट का सम्मान करने की भावना का जन्म होता है। जब हम गुरु नानक जी की " वंड छकों" अर्थात बांट के खाओ बंदे के संदेश यानी अपनी कमाई का दसवां हिस्सा लोगो के कल्याण के लिए निकालने की वृति बनानी चाहिए तथा कुछ भी खाने पीने से पहले दूसरों को भी बांटना चाहिए। भारत में ही नहीं, पूरे विश्व में जो आज लंगर बरतने की प्रथा है वो गुरुनानक जी महाराज की वंड छकों का विस्तार ही तो है,

जिसे हर पंथ को अपनाने की जरूरत है, यहां हम "बांट के खाओ बंदे" की बात करते है तो हमारे भीतर फिर तीन गुण विकसित होते है, जिसमें पहला गुण, हर इंसान में एक ईश्वर को देखना, जिससे सभी को भोजन की उपलब्धता हो सकें, दूसरा गुण करुणा, जिससे हम सभी के प्रति दया का भाव विकसित कर सकें और सभी को जीवन जीने का अधिकार मिलें, तीसरा गुण जॉय ऑफ डिस्ट्रीब्यूटिंग का भाव जीवन में बन सकें, क्यों अगर बहुत गौर से देखें तो अधिकतर लोग खुद तक ही सीमित रहते है, खुद का पेट भर गया तो समझते है पूरी मानवता का कल्याण हो गया। यह बांट कर खुद खाने की वृत्ति ही मानवता का गुण है, नहीं तो फिर हम पशुओं की तरह ही जीवन जीते है, स्वयं तक सीमित रहते है, जब हम सभी लंगर की बात करते है तो हम वसुधैव कुटुंबकम् की बात करते है। यही तो है इस सिद्धांत " वसुधैव कुटुंबकम्" की मुख्य अवधारणा है क्योंकि किसी भी जीव की सांस लेने के बाद की सबसे बड़ी जरूरत भोजन पानी की ही तो है और गुरु नानक जी महाराज ने तो लंगर को बहुत महत्व दिया है,

उन्होंने तो किसी भी गुरुघर की स्थापना से पहले लंगर बरतने की शुरुआत की बात की है अर्थात पूजा पाठ से ज्यादा आवश्यक है लोगों को जीवन जीने के लिए पहले अन्न मिले जिससे वो ऊर्जा प्राप्त कर सकें। इसी से मानवता का श्रेष्ठतम रूप देखने को मिलता है। जब हम गुरु नानक जी महाराज की एक ओंकार संदेश की बात करते है तो ये तो सृष्टि का आधार है, इसी से हर इंसान में दैवी संपदा विकसित होती है,

हम असुर गुणों से दूर रहने में भी कामयाम रहते हैं। दैवीय संपदा मानवता का आधार है, एक ओंकार ही धरती के हर जीव का अंश है, कितनी सुंदर अवधारणा है बांट के खाओ बंदे की, कि जो एक ओंकार ही तो हर जीव में वास करता है, वही तो सभी जीवों में है और जब कोई इंसान दान करता है तो उसके पीछे की अवधारणा यही तो है कि वो उन जीवों का हिस्सा दे रहे है जो एक ओंकार के रूप में विभिन्न जीवो के दिल में बैठा है, और उन्हीं का हिस्सा , उन्ही तक पहुंचाना है। अगर युवाओं को अपने व्यक्तित्व को विराट रूप देना है,

अगर अपने व्यक्तित्व को विशाल रूप देना है, राष्ट्र का रूप बनना है, अगर जीवन में दैवीय संपदा का रूप देना है तो हम सभी युवाओं को तथा नई पीढ़ी के बच्चों को गुरु नानक जी महाराज द्वारा दिए गए पवित्र संदेश को अपने जीवन में उतारने की जरूरत है तभी हम युवाओं के व्यक्तित्व को विशाल रूप दे पाएंगे और यही विचार धारा राष्ट्र को विकसित करने के साथ साथ युवा स्वयं के आचरण को भी शुद्ध कर पाएंगे।  
जय हिंद, वंदे मातरम