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युवाओं के लिए दिल्ली में विभिन्न मेट्रो स्टेशन, व्यायाम के अच्छे संसाधन है, अगर सीढियों का उपयोग किया जाए

ये लेख आपके लिए पढ़ना बहुत ही जरूरी है

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ये लेख आपके लिए पढ़ना बहुत ही जरूरी है

mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर एंड वॉलंटियरकुल ने लिखा है कि युवा साथियों आज मैं एक ऐसा विषय ले रहा हूं जो आप ही लोगों से तालुक रखता हैं, मुझे आज रात 10.35 बजे दिल्ली के आनंदविहार रेलवे स्टेशन से प्रयागराज के लिए ट्रेन पकड़नी थी। इस उद्देश्य की पूर्ति के लिए मैंने हिसार से अपनी यात्रा, बस से शुरू की, और मैं दिल्ली स्थिति पीरागढ़ी तक बस से सफर करने कर बाद  वहां उतर गया और आगे का सफर मैने दिल्ली मेट्रो से करने का मन बनाया। मेरे पास एक बैग जिसका वजन लगभग छह या सात किलोग्राम था उसे लेकर मैं मेट्रो स्टेशन पीरागढ़ी की तरफ बढ़ा, तो मैंने देखा की मेट्रो स्टेशन पीरागढ़ी तीन मंजिल ऊंचा है जहां से मेट्रो मिलती हैं। 


 मैं अपना बैग लेकर जैसे ही ऊपर चढ़ने के लिए तैयार हुआ तो मैंने देखा कि वहां एक तरफ स्टेयर तथा दूसरी तरफ उसके साथ ही एस्केलेटर भी लगा हुआ था तो मैंने देखा कि पीरागढ़ी में सैंकड़ों युवा मेट्रो लेने के लिए ऊपर जा रहे थे, मगर मेरे साथ सीढियों से मात्र आठ दस युवा ही चढ़ रहे थे, मैं यहां एक बात आप सभी के सामने यह रखना चाहता हूं कि मेट्रो में ज्यादातर युवा लोग ही सफर करते हैं। 

युवा दोस्तो, क्यूंकि 
मुझे आनंदविहार रेलवे स्टेशन जाना था तो मैंने इंद्रलोक से दूसरी मेट्रो यानी रेड लाइन मेट्रो लेनी थी जो वहां से दूसरी लाइन पर आ रही थी इसलिए फिर से मुझे नीचे उतर कर दूसरी लाइन के लिए फिर ऊपर चढ़ना था तो मुझे यह देख कर ताजुब्ब हुआ कि वहां भी संकड़ों युवाओं में से अधिकतर एस्केलेटर पर चढ़े हुए थे, हालाकि एस्केलेटर ऐसे लदा हुआ था जैसे अभी रुक जायेगा लेकिन वो तो मशीन है वो कैसे रुक सकती थी। एस्केलेटर पर  बहुत भीड़ थी फिर भी मात्र दो युवा जिनमे एक लड़की थी वो ही केवल सीढियों पर मेरे साथ चढ़ रहे थे, मुझे यह देख कर लगा कि युवा होते हुए भी इनमे इतना भी साहस या उत्साह नहीं है कि जैसे मैं अपने शरीर के अंगों को फरखने के लिए सीढियों का प्रयोग करता हूं तो ये युवा लोग क्यों सीढियों से बचते है और एस्केलेटर का प्रयोग करते हैं। 

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मैं रेड लाइन से वेलकम स्टेशन तक जाने के बाद फिर से मुझे  पिंक लाइन मेट्रो पकड़नी थी तो मैंने फिर से वही तरीका रिपीट किया क्योंकि मेट्रो स्टेशन पर या तो आपको नीचे जाना है या फिर से ऊपर चढ़ना होता है तो फिर से मैंने एस्केलेटर की जगह सीढियों का प्रयोग करना उचित समझा, मैं गलत दिशा में जाने के कारण, फिर से नीचे उतरा और दुबारा मैने ऊपर चढ़ने के लिए सीढियों का ही चयन किया, क्योंकि इससे कुछ तो व्यायाम हो ही जाता है। और इस तरह मैंने एक ही दिन में लगभग चार सौ सीढियां उतरी चढ़ी होगी। क्या की किसी अवसर से कम है जिनको अपने व्यायाम का अवसर भी पूरा करना हैं। अरे अगर राष्ट्र की ऊर्जा बचत का विचार छोड़ भी दे तो ये खुद के लिए तो खूब फायदे का सौदा है। और दिल्ली जैसे भाग दौड़ वाले शहर में तो मेट्रो स्टेशन पर उपलब्ध सीढियां आज के युवाओं के लिए व्यायाम के अच्छे संसाधन हैं।


 आपकी भागदौड़ वाली लाइफ में ना तो मेट्रो सिटी में रहने वालों के पास समय है और ना ही उनके आस पास कोई पार्क अथवा खेल के मैदान ही होते है जिनमें वो जाकर कम समय में अपना शारीरिक व्यायाम कर सकें। ऐसी परिस्थिति में मेट्रो स्टेशन पर बनी हुई सीढियां किसी वरदान से कम नहीं है, इसलिए युवाओं को मेट्रो स्टेशन पर कभी भी एस्केलेटर उपयोग नहीं करना चाहिए और हर स्टेशन पर चाहे वो मेट्रो स्टेशन या रेलवे स्टेशन हो, वहां पर सीढियों का उपयोग ही करना चाहिए , जिससे युवाओं का भरपूर व्यायाम तो हो ही  जायेगा ।आजकल युवाओं की सबसे बड़ी प्रोब्लम तो मोबाइल फोन है जिससे उनकी नजर ही नहीं उठती हैं। युवा दोस्तों , मैं यहां एक बात और भी शेयर करना चाहता हूं कि आप सभी ने देखा होगा कि जो भी लोग मेट्रो से सफर करते है चाहे वो युवा हो या फिर वो बुजुर्ग हो, सभी इतना ध्यान तो रखते ही होंगे कि मेट्रो में हर डब्बे में हर सीट के किनारे वाली सीट सीनियर सिटीजन तथा दिव्यांगों के लिए रिजर्व होती है, उसी सीट का दूसरे हिस्से पर महिला के लिए रिजर्व का स्टीकर लगा होता हैं, लेकिन मुझे देख कर आश्चर्य हुआ कि जो युवा सीनियर सिटीजन की रिजर्व सीट पर पहले से बैठे है वो मेरे जैसे सीनियर सिटीजन को देखकर भी खड़े होने के लिए उत्साहित नही दिखाई दिए 

तथा ना ही मैंने उन से सीट खाली करने के लिए कहा हालाकि मैं सीनियर सिटीजन के लिए रिजर्व सीट के सामने खड़ा हूं और एक दो युवा उन पर बैठे हुए हैं, वो मेरी तरफ देखने की भी कौशिश नही कर रहे थे, क्योंकि उन्हें पता था कि वो गलती पर है इसीलिए उनका उत्साह ठंडा था, तब मुझे लगा कि वो 20 या 22 वर्ष के युवा तो मुझ जैसे 60 वर्ष से ऊपर के युवा से भी कमजोर, निरुत्साहित, लोग हैं इन्हें बैठे रहने दो तो ही ठीक रहेगा। मैं यहां , एक बात की तरफ ध्यान दिलाना चाहता हूं कि जब सरकार ने एक व्यवस्था की है तो क्यों हमारे युवाओं में इतना भी उत्साह नही है, क्यों युवाओं में इतनी लापरवाही है, क्यों वो सीनियर सिटीजन की कदर नही करना चाहते है, क्या वो इतने कमजोर है कि वो एक महिला की रिजर्व सीट अथवा सीनियर सिटीजन के लिए आरक्षित सीट को भी छोड़ने के लिए तैयार नहीं होते है तथा बेशर्म होकर या आर्टोगेंट होकर बैठे रहते हैं। 


अगर युवा हो तो जीवन में इतना उत्साह, हिम्मत , जागरूकता तथा सम्मान की भावना तो पैदा होना चाहिए कि युवा होते हुए  सीनियर सिटीजन अथवा महिलाओं के लिए आरक्षित सीट को तो एकदम छोड़ देना चाहिए, जिससे उन बुजुर्गो और महिलाओं को सम्मान की अनुभूति हो सकें। भारत के प्रिय युवाओं, ये मेट्रो स्टेशन आज के युवाओं की भागदौड़ भरी जिंदगी में व्यायाम का एक बहुत बड़ा वरदान है और इस वरदान का लाभ उठाने के लिए मेट्रो में चलने वाले हर युवा आज ही संकल्प करे कि अपनी स्वास्थ्य को सुधारने के लिए कभी एस्केलेटर का उपयोग नहीं करेंगे तथा सीढियों का उपयोग करेंगे तथा उन्हे भी भाग कर चढ़ेंगे। दोस्तो जीवन में अवसर तो हर जगह उपलब्ध होते है बस उन्हे पहचानने की काबिलियत होनी चाहिए। आओ मिलकर खुद को और राष्ट्र को स्वस्थ करें ताकि भारत कुछ दिनों में ही विकसित बन सकें।
जय हिंद, वंदे मातरम
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर एंड वॉलंटियरकुल