अच्छी सीख: क्यों कभी आंखे बंद कर मौन बैठकर स्वयं से मिलने का वक्त भी निकालना सीखें
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने आज भाग दौड़ भरी जिदंगी में किसी के पास स्वयं के लिए वक्तनहीं है। इसी से वह सारा दिन तनाव में घुमता रहता है। लेखक डा. नरेंद्र यादव आज इसी विषय पर बता रहे हैं कि इस दुनिया की भागदौड़ में लोग अपने को देखना, अपने से मिलना, अपने से बैठकर बाते करना भी भूल गए हैं। हमारी पूरी जिंदगी दूसरों को जज करने, दूसरों की बाते करने तथा दूसरों को चेंज करने में ही निकल जाती हैं। हम कभी भी अपने में सुधार करने, अपनी तरह जीने तथा अपने आत्म सम्मान के लिए शायद ही जीते है।
उन्होंने बताया कि आपने देखा होगा कि जब हम किसी से बहुत समय तक नही मिलते है, किसी से बहुत दिनों तक बात नही करते है, किसी का ध्यान नहीं रखते है तो उससे हम संबंध खो बैठते हैं। अब मैं इसी विषय को आगे बढ़ाते हुए कहना चाहता हूं कि जब हम किसी और को अपने जीवन से दूर कर देते है तो उनसे हमारा संबंध टूट जाता है तो फिर जब अपने से ही अपना संबंध खत्म हो जाता है तो हम खुद भी अपने से दूर चले जाते हैं। फिर हम अपने साथियों , नजदीकियों या जो पहचान के लोग है, उनसे अपने संबंध को पुन: जोड़ने के लिए हम उन लोगों से मिलते है,उनके साथ बैठते है,
उनसे बातचीत करते है, उनसे बैठकर हंसते बोलते हैं, उनसे अपने रिश्ते अच्छे बनाने के लिए बार बार मिलते हैं और उनके साथ अपना संबंध सुदृढ़ करते है, तो यही वो वजह है कि हम अपने से, खुद से , अपने सेल्फ से , अपनी आत्मा से रिश्ते मजबूत करने के लिए भी हमे अपने से मिलने का समय निकालना होगा, खुद से बात करनी होगी, अपनी ताकत तथा कमजोरियों को जानने के लिए भी तो हमे खुद से संबंध बनाना पड़ेगा। इसके लिए हमारे पास एक ही रास्ता है कि हम आंखे बंद करके बैठ जाएं और किसी से बात ना करें, केवल मौन धारण कर लें, तभी हम अपने से संबंध बना पाएंगे। जब हम अकेले रहते है, मौन रहते है, गहरी लंबी सांस लेते है और सांस छोड़ते है तभी हम अपने से पहला तार जोड़ पाते हैं। इसी को आगे बढ़ाते हुए, हमे मानसिक रूप से सशक्त बनना पड़ेगा। जब हम अपने से मिलेंगे तो ही अपनी शक्तिऔर कमजोरियों को पहचान पाएंगे, तभी हम अपने जीवन के वास्तविक लक्ष्य को जान पाएंगे अन्यथा हम भटकते ही रहेंगे।
जब तक हम वास्तविक लक्ष्य को नहीं पकड़ेंगे तो भीतर से शुद्ध नही हो पाएंगे। हमारे भीतर से फ्रस्ट्रेशन पैदा होगा, हमारे भीतर से असंतुष्टि पैदा होगी, हमारे सामने अंधकार छाया रहेगा, हमारे भीतर आनंद की कमी रहेगी। जब हम जीवन में अपने खुद से संबंध सशक्त करना चाहते है तो हर रोज हमे अपने से बात करनी होगी, अपनी जरूरतों को कम करना होगा, अपने मन को सशक्त करना होगा, अपने मस्तिष्क को शांत करना होगा , अपने को शांत करने की ट्रेनिंग देकर आनंदमय बनाना होगा। तभी हम अपने भीतर के सभी द्वंद, अपने भीतर के सभी कन्फ्यूजन को दूर कर पाते हैं। मेरा ऐसा अनुभव है कि जब आंख बंद करके हम बैठते है तो फिर हम खुद को जानते है, खुद से बात करते है, जब हम गहरी सांस लेते है तो हम अपने भीतर को खंगालते हैं, अपने भीतर चल रहे प्रश्नों का जबाव ढूंढते है, जब हम भीतर सांस रोकते है तो मंथन करते है , फिर जब हम धीरे धीरे सांस बाहर छोड़ते है तो हम अपने फ्रस्ट्रेशन, कमियों तथा अपनी सभी नेगेटिविटीज को बाहर निकालने का कार्य करते हैं। एक तरफ जहां हम आंखे बंद करने पर रिलेक्स महसूस करते है वहीं जब हम अपनी दोनो आंखो की पुतलियों को अंदर की तरफ उपर की ओर लेकर जाते है तो हमारे पूरे शरीर में शांति आने लगती हैं, ब्रेन रिलेक्स होना शुरू हो जाता है, चेहरे का तनाव घट जाता है।
जब हम जागते हुए आंखे मूंदकर बैठते है तो इससे बड़ी एक्सरसाइज मन और मस्तिष्क के लिए कोई नही हैं। हम सभी को चाहिए कि जब हम पूजा घर में बैठते है तो आंख बंद करके बैठे, मौन बैठे,कुछ भी ना बोले, कोई भी रट्टा ना मारे, केवल शांत बैठेंगे तो ही हम भीतर से सशक्त बनेंगे। हम मन से सुदृढ़ बनेंगे। हम पूरा दिन बोलते है, पूरा फिर सोचते है, पूरा दिन किसी का बुरा, किसी का भला चाहने का मन में चिंतन करते है और इससे भी आगे हम उन्ही को लेकर रात में सो जाते है। इससे हमारी नींद भी शांत नहीं होती है क्योंकि हमने अपने को रिलैक्स करने के लिए कोई कदम उठाया नही और ना ही उठाने का प्रयास करते हैं। हमारी वैदिक संस्कृति में पुराने समय से ही दो समय के ध्यान का नियम, हमारे बुजुर्गों ने बनाया था, जिसको आज हम नही निभाते है। हम धार्मिक पिकनिक तो बहुत करते है लेकिन अपने मन को शांत वा निर्भीक बनाने का अभ्यास नही करते है। अगर हम वैदिक संस्कृति को अपने बच्चें में उतारना चाहते है तो उन्हे ध्यान करना सिखाएं, योग का सहारा लेना सिखाएं। भारत का योग दर्शन, जिसे पतंजलि महाराज ने दिया, उसमें ज्ञान नही, अनुसाशन है अभ्यास है यही हम सभी को मानसिक, आध्यात्मिक रूप से वज्र का बनाएगी।
पढ़ने लिखने से ज्ञान तो हम बहुत प्राप्त कर लेते है परंतु हम उन्हे अपने व्यवहार में नही उतार पाते है। व्यवहार में लाने के लिए हमे निश्चित तौर पर योग के विभिन्न अंगों का सहारा लेना पड़ेगा, जिससे हमारे भीतर अभ्यास करने की क्षमता विकसित हो सकें। जीवन में मन को कंट्रोल करने के लिए, शरीर को स्वस्थ रखने के लिए, मानसिक रूप से स्थिर बनने के लिए हम अब योग की प्राणायाम धारा को अपने दैनिक व्यवहार में लेकर आना सीखें, जिससे हम मन की स्थिरता, मन के प्रफुल्लन तथा मन की पवित्रता बनाने में सफल हो पायेंगे। मैं अंत में यही कहना चाहता हूं कि आओ हम प्रतिदिन अपने से मिले, खुद से बात करें, तथा अपने मन के द्वंद को दूर करें।
जय हिंद, वंदे मातरम