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राजनीति में अगर मानवता का समावेश हो जाए और वितेषना व लोकेषना छूट जाए तो राजनीति...

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If humanity is included in politics and the desire and location are left out, then politics
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
ने अपने लेख में बताया कि एक समय था जब राजनीति में प्रवेश सामाजिक सेवा के रास्ते ही होता था, परंतु अब तो वो समय लगभग चला गया है। अब कोई भी व्यक्ति जो सामाजिक सेवा करता है उसका राजनीति में आने का अवसर अधिक धन ना होने के कारण बहुत कम ही होता है लेकिन मैं यहां ये कहना चाहता हूं कि जो व्यक्ति या युवा सामाजिक पृष्ठभूमि से राजनीति में कदम रखेगा वो निश्चित रूप से सामाजिक तौर तरीको से वाकिफ होगा, वो सारी बुराइयों से दूर मिलेगा, वो नशे से दूर मिलेगा, वो दुराचार से बहुत दूर मिलेगा, वो सभी प्रकार के दुराचारों और बुराइयों से लगभग दूर ही मिलेगा। मैने ऐसे बहुत से युवाओं को देखा है जो सामाजिक कार्य से पंचायतों के विभिन्न स्तरों की सेवाओं में कदम रखा है और उनका काम करने का तरीका बहुत अलग होता है। उनका लोगो से मिलने झूलने का ढंग अलग है, वो ज्यादा मिलनसार है, लेकिन इसका असर केवल पंचायती राज व्यवस्था में शामिल हुए सामाजिक कार्य करने वाले युवाओं के कारण दिखने लगा। 


मैं यहां, एक बहुत बड़े प्वाइंट कहना चाहता हूं कि जो युवा सामाजिक क्षेत्र से आते है उनमें दो बाते बहुत ही प्रभावी होती हैं, पहला उनमें वितेषणा नही के बराबर है अर्थात धन इक्कठा करने की एषणा अथवा लालसा, क्योंकि वो चुनाव अपने सामाजिक कार्यों के दम पर जीत कर आए हैं। दूसरा इससे भी बड़ा प्वाइंट लोकेशना है अर्थात कार्य से अधिक जन जन में खुद की वाहवाही की एषणा अथवा लालसा रखना, जो कि सामाजिक कार्यकर्ताओं में ना के बराबर होती है, क्योंकि उनका नाम पहले ही समाज के कार्य करने के कारण हो जाता है और उन्हें अपना नाम करने की कोई ज्यादा चाहत नही होती है। चुनाव में कोई ज्यादा खर्चा नहीं होता है तो इसलिए पैसों के लिए ज्यादा मारा मारी नही होती है और ना ही ऐसे युवाओं को वितेशना होती है इसका सबसे बड़ा कारण यह होता है कि उनकी युवावस्था समाज को महत्व देते हुए गुजारी है। इसलिए वो लोग जीवन में जिम्मेदारी के उस स्तर पर पहुंच जाते है कि उनके लिए किसी भी प्रकार का पक्षपात, अन्याय, असामाजिक कृत्य बड़ा ही दुखदाई बन जाता है। आज की राजनीति, मानवता से कोसो दूर है। 


उसका कारण ये है कि हमारी राजनीति में बहुत बड़ी संख्या में ऐसे महानुभाव है, जिन्हें समाज का अर्थ ऐसे लोगों से जो उनकी वाह वाह करे,  जिनके ऊपर अपराधिक केस चल रहे है वो अपराधिक प्रवृति के हैं। जो व्यक्ति अपराधिक टेंडेंसी से तालुक रखते है वो चाहे किसी भी फील्ड में हो , उनका स्वभाव अपराधिक सोच से ही चलता है और उनके साथी संगी भी इसी प्रवृति के होंगे जो भूले बिसरे ऐसी गतिविधियां करते रहते है। उन्हें अपनी प्रवृति को सुधारने का मौका नहीं मिल पाता है,  अगर ऐसे महानुभावों को भी कोई अवसर मिलता तो वो भी सामाजिक बन सकते थे, परंतु राजनीति में चुनाव जीतना ही मकसद बन गया है। हम बहुत बार देखते  है कि हमारी विधानसभाओं और लोक सभा में सामाजिक कार्यकर्ताओं को बहुत कम अवसर मिलते है कोई भी पार्टी ऐसी नही है जो सामाजिक क्षेत्र में यानी स्वच्छता के लिए, जल संरक्षण के लिए, महिला सशक्तिकरण के लिए, शिक्षा के लिए, बाल विकास के लिए, पर्यावरण संरक्षण तथा ट्री प्लांटेशन के क्षेत्र में कार्य करने वाले लोगो को या तो टिकट देती हो या फिर राज्य सभा में मनोनयन होता हो। खेल कूद के क्षेत्र से तो फिर भी कुछ लोग राज्य सभा या लोकसभा या विधानसभाओं के लिए टिकट मिल जाती है परंतु सामाजिक कार्यकर्ताओं को टिकट कम ही मिल पाती है। मैने देखा और ये तो सभी देख रहे है कि राजनीति में लोकेषना इतनी हावी है कि माननीय विधायक , माननीय सांसद तथा माननीय मंत्री जी छोटे छोटे काम के लिए भी अपने नाम के पत्थर लगाने की चाह रखते है जो पहले के समय में अधिकारी गण करते थे, उनमें भी बहुत छोटे स्तर के अधिकारी उद्घाटन कर देते थे। वो अब विधायक या माननीय सांसद या माननीय मंत्री उनका उद्घाटन किए जाते है। हमारे यहां विधायिका का स्तर कमतर होता जा रहा है।

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 हमारे जनप्रतिनिधि विधायिका का अर्थ शायद समझने से चूक जाते है। जब कि राजनीति में बड़ा स्पष्ट है कि विधायिका विधान बनाने का कार्य करती है। देश में ऐसे कानून बने , देश में ऐसा बजट बने जिससे लोगो का कल्याण हो सके परंतु अब अधिकारियों के काम भी राजनीतिक माननीय करने की चाह रखते है तथा हर दिन अखबार में छपने का जुगाड करते है। ऐसे ऐसे राज्य है जो अपने कामों को दिखाने के लिए अखबार के पूरे पूरे पेज तथा दो दो , तीन तीन फुल पेज की एड देते है और जनता की बहुत बड़ी राशि खर्च करके अपने फोटो छपवाते है। राजनीति में मानवता का स्थान नही है। हम हर कार्य में पार्टी या राजनीति ले आते है, और किसने किया उस पर आ जाते है, हम कभी भी क्या और क्यों पर नही जाना चाहते। जिस दिन भी हमने अपनी राजनीति में मानवता को समाहित कर लिया, जिस दिन हमारे जनप्रतिनिधियों के विचारों में मानव कल्याण आ गया, उसी दिन हम अपनी राजनीति को मानवतावादी बना पाएंगे। राजनीतिज्ञों के लिए फिर निष्पक्ष बनना, विनम्र बनना, संवेदनशील बनना भी आसान हो जाएगा। मानवता से बड़ा कोई धर्म नही है, कोई कर्तव्य नहीं है, मानवता में सभी धर्म समाहित हो जाते है। एक ह्यूमन की क्या वैल्यू होती है उसे समझना बहुत जरूरी है, जिन्हें हमारे ऋषियों ने तथा शास्त्रों ने स्थापित किया है। मानवता की सुरक्षा के आगे कुछ नहीं है, हमे ऐसे सिद्धांत बनाने है जिससे हर इंसान के सम्मान की रक्षा की जा सके क्योंकि इंसान और हैवान में यही अंतर है जो मानवता को निभाता है वो ही इंसान है। यहां मैं एक बात और स्पष्ट करना चाहता हूं कि भारत की राजनीति ये तय करे कि अगर कोई किसी महिला का यौन शौषण करते है, कोई भ्रष्टाचार करते है, कोई देश की इज्जत को दाग लगाता है, कोई अगर  राष्ट्रीय प्रतीकों का सम्मान नही करते, अगर कोई देश के टेलेंट को मारता है तो उन्हे निष्पक्ष होकर सजा मिलनी चाहिए।  तभी राजनीति में मानवता को जगह मिलेगी। 
जय हिंद, वंदे मातरम