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कुलपति से कुलगुरु होना बहुत अच्छी बात है, परंतु पति से गुरु होना बहुत कठिन है

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 कुलपति से कुलगुरु होना बहुत अच्छी बात है, परंतु पति से गुरु होना बहुत कठिन है

mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
शिक्षक दिवस सप्ताह के पावन अवसर पर माननीय शिक्षकों को बहुत बहुत शुभकामनाएं देते हुए मै अपने विमर्श को आगे बढ़ाना चाहता हूँ। विषय बहुत ही रोचक तथा गंभीर है लेकिन निर्णायक निश्चित है अगर ऐसा हुआ तो विश्वविद्यालयी शिक्षा में अभूतपूर्व परिवर्तन आएगा। हां हम बात कर रहे है किसी भी यूनिवर्सिटी के मुखिया को कुलपति से कुलगुरु के पद पर संस्थापित करने के लिए दिखाए जा रहे उत्साह पर। यह विषय बहुत विचारणीय है कुछ माननीय कुलपतियों ने तो खुद को कुलगुरु लिखना भी शुरू कर दिया है,

लेकिन विषय केवल लिखने से काम नहीं चलेगा क्योंकि इन दोनों पद नाम के अर्थ में जमीन आसमान का अंतर है, इन दोनों पद नाम के अर्थ में निर्णायक अंतर है जिसे समझना बहुत आवश्यक है, अन्यथा लाभ नहीं होगा। पहले तो हम कुल शब्द को परिभाषित करें ताकि हमे उस शब्द के अगले अंश को समझने में दिक्कत ना हो यानि कुल शब्द के दो अर्थ देखे जा सकते एक तो कुल का मतलब टोटल से है या संपूर्ण है और दूसरा अर्थ कुल को परिवार या खानदान जो एक ही रक्त से संबंधित हो, कहा जा सकता है।

जब हम कुलपति की बात करते है तो हम टोटालिटी की बात करते है लेकिन अगर हम कुलगुरु की बात करेंगे तो फिर एक ही रक्त से संबंधित किसी खानदान के गुरु की बात करेंगे। पति शब्द पालक या मालिक का अर्थ लिए हुए है, इसके धुर विरूद्ध गुरु एक विश्वनीय आसरा होता है जो हर प्रकार से किसी बच्चें को बेसिक शिक्षा, नैतिक शिक्षा, व्यक्तित्व विकास, शास्त्र तथा शस्त्र शिक्षा में आगे बढ़ाने में अपना सब कुछ न्यौछावर करता है। पति एक प्रबंधक की भूमिका में या प्रशासनिक व्यवस्था को संभालने वाले एक वरिष्ठ अधिकारी की भूमिका में होते है लेकिन गुरु विद्यार्थियों का निर्माण करने वाले होते है,

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उसके सर्वांगीण विकास वा उत्थान की जिम्मेदारी तथा जवाबदेही के साथ होते है। जैसे एक घर को चलाने वाला पुरुष पति होता है और महिला पत्नी होती है, इसीपरकर कुलगुरु का अर्थ होता है, खून के रिश्ते से संबंधित एक खानदान के सभी सदस्यों को राह दिखाना, मार्ग दर्शन करना, उनकी शिक्षा दीक्षा की जिम्मेदारी निभाना, उन्हे अलग अलग स्किल में निपुण करना तथा जरूरत अनुसार पथप्रदर्शन करना, परंतु कुलपति का अर्थ है कि किसी विश्वविद्यालय की संचालन की जिम्मेदारी निभाना। कुलपति खुद शिक्षण के कार्य से दूर रहकर कार्य करते है जबकि कुलगुरु तो खुद शिक्षण, प्रशिक्षण, निर्देशन, अनुदेशन का कार्य करते है। अगर माननीय कुलपतियों को कुलगुरु के महत्वपूर्ण पद पर विराजमान होना है तो फिर अपने सारे पतियों वाले कंफर्ट को जिलांजलि देनी पड़ेगी, तभी इस पद को बदलना सार्थक होगा, अन्यथा यह केवल पद नाम बदलना ही होगा जैसे उपकुलपति से कुलपति बनाया गया था, जब कि वाइस शब्द तो उप को ही प्रदर्शित करता है जो लॉजिकली भी गलत है,

वाइस चांसलर का अर्थ है उपकुलपति, जब हम इसे कुलपति उच्चारित करते है। चांसलर की हिंदी कुलपति होता है परंतु हम उसे कुलाधिपति लिखते वा पढ़ते है। कितना अच्छा हो कि वाइस चांसलर को चांसलर कर दिया जाए और चांसलर को चांसलर जनरल कर दिया जाए, ताकि हम वाइस शब्द का न्यायोचित अर्थ समझ सकें। खैर ये तो शब्दावली हुई जिसे शिक्षा जगत में सुधारने की जरूरत है, या हिंदी भाषा के निदेशालय द्वारा सुधारना है, अगर ऐसा रहा तो फिर हिंदी भी अवैज्ञानिक हो जाएगी, जैसे अंग्रेजी है, जिसमें लिखना, बोलना, पढ़ना सब अलग अलग है। इसलिए भाषा की वैज्ञानिकता बरकरार रखना भी तो आवश्यक है। या तो वाइस को हटाओ या भी वाइस को जस्टिफाई करना हमारी ड्यूटी है। चलो अब हम गुरु शब्द वा पति शब्द की महत्ता पर विमर्श करते है। वैसे तो शिक्षण प्रशिक्षण या अनुदेशन सभी गुरु के दायरे में आते है

परंतु किसी बड़े संस्थान का प्रबंधन करना, ये अलग स्किल है क्योंकि मल्टीटास्किंग कभी सफल नहीं हो सकती है, इसमें या तो आप शिक्षण प्रशिक्षण वा शोध के कार्य करो या फिर प्रबंधन का कार्य करो, दोनों कार्य एक ही व्यक्ति सफलता पूर्वक नहीं कर सकता है। यहां विश्वविद्यालयों के प्रबंधन के लिए शिक्षण, प्रशिक्षण, शोध एक स्किल के रूप में तो अवश्य होनी चाहिए परंतु पूर्ण रूप से कोई भी महानुभाव  इसमें रहकर प्रबंधन या प्रशासन का कार्य नहीं संभाल सकते है। मेरा ऐसा मानना है कि इसके विमर्श इसलिए आए होंगे कि ये शिक्षण संस्थान है, यहां तो पति नहीं गुरु की जरूरत है लेकिन यह काफी नहीं है। गुरु शब्द तो घर में मां के लिए भी उपयोग किया जाता है, इसका अर्थ यह है कि मां घर में केवल निर्देशन ही नहीं करती है वो प्रैक्टिकल भी करती है, बच्चों के पालन पौषण के सभी कार्य खुद करती है, खुद तकलीफ झेलती है, खुद रातों की नींद गंवाती है और वैसे भी गृह एक छोटी यूनिट होती है।

गुरु शब्द का अर्थ ही अंधकार से प्रकाश में ले जाना होता है। गुरु का कर्तव्य स्पष्ट होता है, कि सभी को एक समान देखना और आगे बढ़ाना। भले ही शिक्षण संस्थान शिक्षा के केंद्र है परंतु वहां प्रबंधन का भी विशेष महत्व है। गुरु द्वारा नैतिकता का अभ्यास कराया जाता है, संस्कारों व संस्कृति पर बल दिया जाता है, जीवन को उच्चतम स्तर पर लेकर जाना होता है, जहां ज्ञान वा विज्ञान को साथ साथ लेकर चलना होता है, जिसे गुरु खुद सिखाते है। गुरु कार्यालय में बैठकर कार्य नहीं करते है उनके शिक्षण व प्रशिक्षण स्थल होते है जहां वो सदैव ट्रेनिंग में व्यस्त रहते है। गुरु किसी कुल के गुरु होते है जिसमें एक ही परम्परा को आगे बढ़ाने का कार्य किया जाता है। गुरुकुल शब्द के अर्थ को समझने की आवश्यकता है, हां अगर माननीय कुलपति स्वयं को कुलगुरु की पदवी पर देखना चाहते है तो उनके व्यक्तित्व में आमूलचूल परिवर्तन होना चाहिए, जैसा आप विद्यार्थियों को चाहते है वैसा ही खुद को निर्मित करना पड़ेगा। जीवन गुरु की तरह सदाचारी, सत्य पर आधारित, सादगी से परिपूर्ण, नशे से दूरी, अपने खुद के खर्चों को निम्न स्तर पर रखना, जीवन में उच्चकोटी के विचार रखने होंगे, आत्मा का पतन किसी भी प्रकार से ना होने पाएं, उसका भी ध्यान रखना होगा।

आत्मिक पतन का अर्थ है श्रेष्ठता का पतन होना, आत्मा के पतन का अर्थ है हिंसात्मक होना, आत्मिक पतन का अर्थ है पक्षपाती होना, भयभीत होना, अन्याई होना, और ये फिर गुरु को शोभा नहीं देता है। गुरु केवल कल्याणकारी होते है, वो खुद के लाभ का ध्यान नहीं करते है। अगर ऐसा हुआ तो गुरु की महिमा को ठेस पहुंचेगी और आगे से लोग गुरु पर भी विश्वास करना छोड़ देंगे, जो भयंकर गलती होगी, जिसकी भरपाई करना बेहद कठिन होगा। श्रेष्ठता पदनाम से नहीं, विचारों की उच्चता से या श्रेष्ठता से आती है। इसलिए भारतीय संस्कृति का पालन करते हुए अपने शास्त्रीय शब्दों की गरिमा बना कर रखना भी हम सभी की जवाबदेही है। माता, पिता, गुर, राष्ट्र, भक्ति, सत्य, अहिंसा कुछ ऐसे शब्द है जिनका उपयोग करते वक्त बहुत संवेदनशीलता की आवश्यकता है क्योंकि ये शब्द शास्त्रीय है इनकी शुचिता बनकर रखने की भी जरूरत है।
जय हिंद, वंदे मातरम