Lesson: विद्यार्थी अपने क्रोध को कैसे हैंडल करें, गुस्सा व्यक्तित्व को सकारात्मक बनाने में हैं बाधा
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने आज अपने लेख में बताया है कि आज भाग दौड़ भरी जिंदगी में सभी तनाव में रहत है। ऐसे में जब हम क्रोध की बात करते है तो हमारे सामने चार स्थितियां आती है, पहली पॉजिटिव क्रोध, दूसरा प्रेरणात्मक क्रोध, तीसरा नेगेटिव क्रोध, चौथा न्यूट्रल क्रोध। ये चारों तरह के क्रोध हमारे मन, मस्तिष्क, बुद्धि को तनाव से भरते हैं। जहां पहले टाइप के क्रोध से अपने शरीर वा मन को विचलित करते है। अगर हम चारो की व्याख्या में जाएं तो निम्न परिणाम आते हैं, जैसे;
1. सकारात्मक क्रोध : इसमें हम अपने किसी बहुत ही नजदीकी अथवा अपने परिवार या बच्चों को सही रास्ता दिखाने के लिए गुस्सा करते हैं। विद्यालयों , कॉलेज अथवा विश्वविद्यालयों में अपने स्टूडेंट को किया जाने वाला क्रोध भी सकारात्मक क्रोध की श्रेणी में आता हैं। इसी स्थिति में हम क्रोध इसलिए करते है जिससे अपने बच्चों, विद्यार्थियों, अपने रिलेटिव के जीवन को उज्ज्वल बनाया जा सकें। इस श्रेणी में उन्हे पॉजिटिव बनाने के लिए थोड़ा लाइट क्रोध का सहारा लिया जाता है जिसे हम अनहैपीनेस भी कह सकते हैं। ये क्रोध करने वालों को हल्का तनाव देता है, मेरा सभी बच्चों, किशोर, युवा विद्यार्थियों को इसे गंभीरता से सुनना चाहिए।
2. प्रेरणात्मक क्रोध : यह क्रोध सकारात्मक क्रोध से इसलिए भिन्न होता है क्योंकि इसमें जीवन में आगे बढ़ने, कुछ अचीव करने के लिए प्रेरणा को ट्रिगर करने हेतु गुस्सा किया जाता है, इसमें नाराजगी के साथ साथ पॉजिटिव गाइडेंस भी होती हैं। जीवन में हमारे मातापिता, और टीचर प्रेरणात्मक क्रोध करते है। कई बार वो अपने विद्यार्थियों, खिलाड़ियों तथा बच्चों को इग्नोर भी करते है, जिसका सीधा सा संकेत होता कि उन्हे सही रास्ते पर लेकर आना होता हैं।
3. नकारात्मक क्रोध : यह क्रोध जब हम किसी के साथ लड़ाई झगड़ा करते है तो नकारात्मकता के साथ क्रोध करते है, बहुत बार ऐसी स्थिति में लोग गाली गलौच भी करते है। यह क्रोध अधिकतर हॉट टॉक के दौरान होता है और हम अपनी अपनी बेवकूफी दर्शाने के लिए नेगेटिव एंगर का सहारा लेते है, जिसमें हमारा रक्तचाप भी बढ़ता है, यह स्वास्थ्य के लिए बहुत ही खतरनाक होता है। कई बार इसमें शरीर कांपने लगता हैं, चेहरा लाल हो जाता है, मारपीट भी करने तक पहुंचने की स्थिति हो जाती हैं। यह अक्सर जब हम किसी से बदला लेना चाहते है, या फिर किसी को नीचा दिखाने के लिए किया जाता हैं।
4. न्यूट्रल क्रोध : यह ऐसा क्रोध होता है जिसमें ना तो किसी की भलाई का मन होता है और ना ही किसी के अहित का मन होता है। हम ऐसे ही किसी से इरिटेट हो जाते हैं, किसी के कुछ शब्द सुनकर, किसी के वस्त्र देखकर, किसी के खाने के तरीके से , किसी के बिहेवियर से खिन्न होकर भी, क्रोध करने लगते है जब कि हमारा उनसे कोई लेना देना नही होता हैं। हम बिना कारण ही अपना मूड खराब करते है, अपने स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचाते हैं। यह अक्सर कुछ लोगों के साथ होता है जो बिना कारण के ही गुस्सा अपने नाक पर रखते हैं।
अब मैं अपने विषय की मुख्य धारा पर आता हूं , जिसमें विद्यार्थी अपने क्रोध को कैसे हैंडल करें या नियंत्रित करें। जीवन में हर विद्यार्थी के सामने ये स्थिति आती है, कदम कदम पर आती है, मॉडर्न जेनरेशन तो क्रोध से पीड़ित ही है, छोटी छोटी बातों पर गुस्सा आता हैं। इसके लिए विद्यार्थियों को अपने किए जा रहे व्यवहार को पहचानने की अवश्यकता हैं। सभी टिनएजर्स तथा विद्यार्थियों को क्रोध के प्रकार को देखना चाहिए। दो प्रकार के क्रोध, प्रेरणात्मक वा सकारात्मक क्रोध पर विद्यार्थियों को सुनना चाहिए, खूब सुनना चाहिए। अपने टीचर तथा मातापिता की बातों को शालीनता से सुनना चाहिए, और उनकी हर डांट को अदब से सुनने की आदत डालनी चाहिए, उनकी हर बात , डांट हमारे लिए भलाई का कार्य करती हैं। हर विद्यार्थी को अपने व्यवहार में शालीनता तथा मौन को धारण करना होगा, जिससे उनके जीवन में धैर्य आ सकें। मैं यहां विद्यार्थियों को सात टिप्स देना चाहता हूं जिससे वो अपने क्रोध को हैंडल कर पाएंगे।
1. बिना प्रतिक्रिया दिए, सुनने की आदत को विकसित करें।
2. जब भी ऐसी क्रोध की स्थिति का सामना करें, गहरे लंबे स्वांस लें, अपनी जीब को दांतों के बीच में दबाने का अभ्यास करें, मन में ठान ले कि रिएक्ट नही करना हैं।
3. अपने मातापिता तथा टीचर को बेहद शालीनता तथा विनम्रता से चुपचाप सुनने की आदत विकसित करें। ना शब्दों से और ना ही बॉडी लैंग्वेज प्रतिक्रिया करें। शांत रहने वा करने का सुंदर व्यवहार करें।
4. अपने विवेक को अपनी जिंदगी के लक्ष्य पर फोकस करके रखें ताकि छोटी छोटी अड़चन किसी भी विद्यार्थी को विचलित ना कर पाए।
5. अपने दैनिक व्यवहार में पेशेंस, विनम्रता, तथा स्वीकार्यता डालें, जिससे हमारा व्यक्तित्व पॉजिटिव रहें।
6. हर समय आपकी इच्छा पूर्ति होगी, इस मानसिकता को त्यागना पड़ेगा। जिंदगी में हां ना चलती रहती है। कभी आपकी बात को स्वीकार किया जाता है, तो कभी स्पष्ट मना किया जाता है। जीवन में नही तो कभी हां, तथा जिंदगी में कभी गति तो कभी बाधा आती ही रहती हैं। सदैव हर प्रकार के परिणाम के लिए तैयार रहें। मातापिता, टीचर्स तथा बड़े बुजुर्गों की बातों को कभी अन्यथा ना लें क्योंकि ये सभी आपकी जिंदगी को चार चांद लगाना चाहते हैं।
7. जीवन में कैसी भी विकट परिस्थिति आ जाए, उससे संघर्ष करना है, मन छोटा नही बल्कि विशाल एवम् विराट मन के साथ जीना हैं। इस दुनिया में ऐसे बहुत है जो आपसे हजार गुणा कम में भी जीना जानते हैं।
विद्यार्थियों का जीवन लर्निंग का समय है, यहां आप सीखने के लिए हैं। इसलिए चाहे कैसी भी परिस्थियां आ जाएं, अपना ध्यान अपने लक्ष्य पर टिकाएं रखना है, तभी विद्यार्थी कुछ सीख पाते हैं। आगे बढ़ने के लिए अपने व्यवहार को स्नेहिल बना कर रखें। विद्यार्थी को क्रोध पर काबू पाने के लिए धैर्य, सुनने की आदत, विनम्रता, शालीनता, तथा बड़ों के प्रति आदर का भाव रखना ही होगा, तभी जीवन में संघर्ष कर पाएंगे। मैं अंत में एक गोल्डन टिप देना चाहता हूं कि जिसका लक्ष्य बड़ा है, उसे छोटी छोटी बाते विचलित नहीं कर सकती हैं। इन सब समस्याओं से थोड़ा ऊपर उठकर चलना सीखें।
जय हिंद, वंदे मातरम