सीख : विद्यार्थी अपनी बात को प्रभावी ढंग से कहना कैसे सीखें, जिससे उनकी हर समस्या का समाधान हो सकें

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
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किसी भी इंसान के जीवन में छात्र जीवन क्लास एक से शुरू होकर अपनी अपनी क्षमता पर जाकर रुकता हैं। किसी का विद्यार्थी काल कक्षा दसवीं से पहले ही छूट जाता है, कोई कोई क्लास दस तक अपने विद्यार्थी होने के समय की पूरा कर देते हैं , कुछ इसे बाहरवी तक , तो कुछ इसे स्नातक पूरी होने तक जारी रखते है। कुछ लोग इसे पोस्ट ग्रेजुएशन तक तथा कुछ विद्यार्थी डॉक्टरेट की डिग्री लेने तक जारी रखते हैं। वैसे हर इंसान जीवन भर कुछ ना कुछ सीखता रहता है।
इसलिए जीवन में विद्यार्थी होना कोई बुरी बात नहीं होती हैं। मै यहां जो विमर्श करना चाहता हूँ वो हर विद्यार्थी के जीवन की एक बहुत बड़ी समस्या के समाधान के लिए हैं। मैने अकसर देखा है कि विद्यार्थियों में अपनी बात कहने का साहस नहीं होता है अगर कुछ कहना भी चाहते है तो वो प्रभावी ढंग नहीं होता है जिसका सुनने वाले पर कोई असर पड़ता है। मै सबसे पहले विद्यार्थियों की आत्मविश्वास संबंधी कुछ कमियां दर्शाना चाहता हूँ, जिनकी वजह से वो प्रभावी ढंग से बोल नहीं पाते है, जैसे ;
1. बहुत से विद्यार्थी क्लास में टीचर से प्रश्न पूछने में भी झिझकते हैं।
2. उनमें जिज्ञासा की कमी होती है जिसका एक ही कारण होता है कि वो बोल नहीं पाते हैं। आजकल युवा खासकर लड़के सार्वजनिक रूप से बोल नहीं पाते हैं।
3. विद्यार्थियों के मन की बात कोई सुनना ही नहीं चाहता है, समाज या समस्याएं पहले जैसी नहीं है कि बच्चे बोले भी नहीं, और उनकी समस्याओं का समाधान हो जाएं।
4. विद्यार्थियों में अपनी बात को ना तो टीचर के सामने और न ही पेरेंट्स के सामने रखने का तरीका हैं।
5. विद्यार्थियों को अपनी बात रखते हुए उनका फ्रस्ट्रेशन आगे आ जाता है जिसके कारण उनकी एरोगेंसी दिखने लगती हैं।
6. आजकल हर विद्यार्थी यह मान लेते है कि वो तो सही है या तो पेरेंट्स गलत है या फिर शिक्षक गलत हैं।
7. आजकल विद्यार्थियों ने विनम्रता न होने की वजह से अपनी बात करना ही नहीं आता है।
8. विद्यार्थियों में प्रश्न पूछने या बोलने के नाम पर नर्वसनेस होने लगती हैं, इसलिए वो बोलने से बचने की कोशिश करते हैं।
9. हमारे समाज ने बच्चों को डिप्रेस करने का कार्य किया है जिससे किसी के सामने भी अपनी बात कहने से डरते हैं।
10. हमारे घरों, परिवार में, समाज में तथा शिक्षण संस्थानों में एप्रिसिएशन नहीं है, मोटिवेशन नहीं है, इससे विद्यार्थी डिप्रेस होने के कारण बोलना ही बंद कर देते हैं।
11. आजकल बच्चों से केवल शिक्षा पर ही बात की जाती है, ऐसा लगता है जैसे पढ़ाई लिखाई के सिवाय कुछ बचा ही नहीं है , इसी के कारण बच्चे सबसे दूर होने की कौशिश करते है।
इन ऊपर दिए गए कारणों की वजह से अक्सर विद्यार्थियों का आत्म विश्वास बहुत नीचे चला जाता है जिसके कारण अधिकतर बच्चें अपने शिक्षण संस्थानों, घर में तथा सामाजिक कार्यक्रमों में अपनी बात नहीं रख पाते हैं। अब हम उन तरकीबों पर चर्चा करने का प्रयास कर रहे है जिससे विद्यार्थियों में एक उत्साह पैदा हो, जिससे वो अपनी किसी भी प्रकार की समस्या जरूरत अनुसार उचित प्लेटफॉर्म पर रख पाएं। यहां कुछ आसान स्टेप्स रखे जा रहे हैं, जैसे ;
1. शिक्षण संस्थाओं में शिक्षक अपने विद्यार्थियों के प्रति सिम्पेथेटिकली एटीड्यूट रखने की जरूरत हैं।
2. सभी विद्यार्थियों को कक्षा में प्रश्न पूछने के लिए प्रोत्साहित करना चाहिए।
3. हर विद्यार्थी के लिए हर माह दस प्रश्न पूछने का टारगेट रखना चाहिए, जिससे उनके भीतर की झिझक कम हो सकें।
4. सभी शिक्षण संस्थानों में टीचर्स को विद्यार्थियों को सुनने की भी आदत डालनी चाहिए।
5. हर सप्ताह विद्यार्थियों के बीच किसी महत्वपूर्ण विषय पर ग्रुप चर्चा होनी चाहिए, जिससे स्टूडेंट्स में बोलने का उत्साह पैदा हो सकें।
6. सभी विद्यार्थियों को हर महीने एक विषय पर अपने विचार रखने के लिए अवसर प्रदान करने चाहिए ताकि बच्चों का व्यक्तित्व विकास हो सकें।
7. सभी विद्यार्थियों को अपने विचार रखने के लिए मौका मिले तथा उनमें नेतृत्व की भावना पैदा करें।
8. हर विद्यार्थी में वैज्ञानिक टेंपरामेंट विकसित करने के लिए उन्हें अपने भीतर जिज्ञासा विकसित करने की जरूरत हैं।
9. अगर शिक्षण संस्थानों में कोई भी शिक्षक विद्यार्थियों को प्रश्न करने से हतोत्साहित करे तो ये नकारात्मकता हैं।
10. जो विद्यार्थी किसी भी विषय पर प्रश्न खोज सकते हैं और प्रश्न कर सकते है तो समझो , वो बहुत आसानी से उत्तर खोज सकते है।
वर्तमान में विद्यार्थियों को बोलने के प्रभावी ढंग से हम नया नेतृत्व ला सकते हैं। विद्यार्थियों को अपने मन की बात कहने का उत्साह पैदा कर सकते हैं। विद्यार्थियों के व्यक्तित्व विकास के लिए अवसर प्रदान किए जा सकते हैं। हम उन विद्यार्थियों की चिंता , स्ट्रेस तथा अवसाद को दूर करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभा सकते हैं, जीवन से हम एक सशक्त एवं प्रसन्नता भरे समाज का गठन कर सकते हैं। आओ मिलकर विद्यार्थियों के जीवन जीने की शैली को सशक्त करें।
जय हिंद, वंदे मातरम