सीख: जब कांव कांव ही, कोयल की पीहू पीहू से अच्छा लगने लगे, तो समझ लेना हमारा नैतिक पतन हो रहा हैं
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने आज अपने लेख में बहुत ही अच्छी बात कही है। उन्होंने बताया कि बाज गरुड़ और मोर भूल गए अपनी अपनी वाणी, चाटुकारिता की सब सीमाएं लांघ दी, कोवों की गुण गानी"। ये एक कविता के बोल है।
प्रसिद्ध कवि भवानी प्रसाद मिश्र जी की एक कविता है जिसका नाम है चार कौवे। हो सकता है कुछ लोगों ने यह जरूर पढ़ी होगी, अगर नही पढ़ी या सुनी है तो उसे पढ़ने का जतन करना।
जिंदगी में हो रहे पातनिक बदलाव से आप रूबरू जरूर हो जायेंगे। ये भी आप सभी ने सुना होगा तथा पढ़ा भी होगा कि पक्षियों में सबसे चालक पक्षी होता है कौवा। ऐसा लगता है जैसे एक ही आंख से देखता है, कभी किसी की मुंडेर पर बैठता हैं तो लोग शौन्न लगाते है कि कोई मेहमान आने वाला हैं। कहते कोई कौवा किसी के सर पर बैठ जाए तो समझो कुछ अपशकुन होने वाला हैं। अगर बहुत से कौवें लगातार किसी पेड़ को अपना बसेरा बना ले तो वो पेड़ कुछ ही दिनों में ऊपर से सुखना शुरू हो जाता है।
हां जी मैं उन्ही कौवों के बारे में देश के महान कवि माननीय भवानी प्रसाद मिश्र की कविता से कुछ सीखने के लिए आम जनमानस को कुछ कहना चाहता हूं। चार कौवो, वो भी कालो ने मिलकर चाहा कि सब हमारे नियमों के अनुसार चलें। माननीय भवानी प्रसाद मिश्र जी की कविता आजकल के परिपेक्ष में बिल्कुल सटीक बैठती है, कि कुछ चालक और बेईमान लोगों ने समाज को हाइजैक कर लिया है, चाहे वो राजनीति में हो, चाहे वो ब्यूरोक्रेसी में हो, चाहे न्यायपालिका में हो, चाहे मीडिया में हो, चाहे अलग अलग धर्म में हो, चाहे दूसरे क्षेत्र में हो, हर क्षेत्र में चार काले कौवे अपने अनुसार सभी को चलने के उपदेश देने में लगे हुए हैं। आजकल इस कविता के अनुसार ढेर सारे अवगुणिये व्यक्ति, गुणी लोगों पर हावी हो गए और अपनी तामसिक प्रवृति को स्थापित करने में लगे हुए है। चारों कौवों के सम्मान में गीत गाने को लाइन में खड़े होने पर मजबूर हो गए हैं। कौवों ने अब कह दिया है कि कोयल की पीहू पीहू नही चलेगी, अब सबको करनी होगी कांव कांव। जब आम लोगों को कांव कांव में ही आनंद आने लगे तो समझो कि हम अपनी कर्मठता, ईमानदारी तथा संवेदना, क्षमा को त्याग कर अवगुणियों का अनुसरण करने के लिए सबसे अग्रिम पंक्ति में खड़े होकर मूक बधिर होकर कांव कांव को गुनगुनाने में ही अपना सौभाग्य समझ कर जीवन को जीने की राह पकड़ कर अपने नैतिक पतन की बढ़ने लग जाते है। मुझे डर है कि ये काले कौवों की कांव कांव हमारी नई पीढ़ी तक जाएगी तो हमारी सशक्त भारतीय संस्कृति को धक्का लगेगा,
अगर हम अवगुणियो को आगे बढ़ने में मदद करेंगे, तो गुणी लोगों को पीछे धकेलना पड़ेगा, जिसका असर हमारी भावी पीढ़ी पर निश्चित पड़ेगा। हमारे देश में कुछ लोग, जैसे भवानी प्रसाद मिश्र जी की कविता के चार काले कौवों ने मंसूबे गढ़े, अगर उसी तरह आज की पीढ़ी भी करने लगी तो भूल जाओ फिर ईमानदारी, निष्पक्षता और मेहनत को। चार कौवों की कविता को चरितार्थ करते हुए, अगर राजनीति , ब्यूरोक्रेसी तथा न्यायपालिका या मीडिया में बैठे कुछ लोग अपनी तामसिक गतिविधियों के अनुसार सभी को चलने पर मजबूर करेंगे तो राष्ट्र की बुद्धि रूपी संपदा धीरे धीरे नष्ट हो जाएगी। कोई कुछ भी नही कर पाएगा। कोई देश की नदियों का दोहन कर रहे है, कोई देश के जोहड़ तालाबों को कब्जा कर रहे है, कोई बेटियों के साथ बदतमीजी कर रहे है, कोई किसी को गालियां दे रहे है, निकम्मे लोग ऐश ले रहे है, देश की बुद्धि रूपी संपदा को तबाह किया जायेगा , ऐसे कौंवो द्वारा तो देश की भावी पीढ़ी को भी इसका खामियाजा भुगतना पड़ेगा। एक आश्चर्य की बात यह भी है कि पूरा देश राजनीति में जाना चाहता है, क्या युवा, क्या बूढ़े, क्या न्यायपालिका के जज, क्या ब्यूरोक्रेसी के अधिकारी , क्या टीचर, क्या डॉक्टर, क्या इंजीनियर, क्या उद्योगपति, और क्या आम आदमी। क्या मिलता है राजनीति में, केवल यही कि वहां ईमानदारी की बात नही होती, हर व्यक्ति बेईमान बनने की ओर बढ़ने की सोच रहे है, जो अपनी सच्चाई को छोड़ कर भ्रष्टाचार में शामिल होना चाहते है। कोई हाईएस्ट संवैधानिक पद पर बैठे है वो भी उन चार काले कौवों की मंडली में मिलने के लिए उछल कूद करने में लगे हुए हैं, कोई अपने क्षेत्र की हाईएस्ट पोस्ट पर होने के बावजूद भी अपने पद की मर्यादा इस लिए नही निभा रहे है क्योंकि उन्हे भी राजनीति में कोई बड़ा पद चाहिए। हर आम नागरिक भी उन चार काले कौवों की कांव कांव को बोलने के लिए लाइन में हाथ बांध कर खड़े है कि हमारा नंबर कब आएगा। जब कि सभी को पता है कि कांव कांव कभी भी मनुष्य को संतुष्टि , संस्कार वा शांति नही दे सकती है, फिर भी हम कोयल की मधुर पीहू पीहू को छोड़ कर, कांव कांव करने में अपना सौभाग्य समझते हैं। इस धरती पर मनुष्य की पशुता को दूर करने के लिए ना जाने कितने ही ऋषियों ने, साधु संतो ने तथा स्वतंत्रता सेनानियों ने आदमी को मानव बनाने में तथा सभ्यता के नए पैरामीटर स्थापित करने में कई कई जीवन खपा दिए, कितने वैज्ञानिकों ने मानव जीवन को सुविधा देने के लिए अपना पूरा जीवन लगा दिया, देश के बड़े बड़े कृषि वैज्ञानिकों ने जीवन भर नए नए शोध करके देश की बड़ी जनसंख्या को भोजन उपलब्ध कराने के लिए भरसक मेहनत की। धीरे धीरे लोगों का इतना चारित्रिक पतन क्यों हो रहा है कि वो काले कौवों अर्थात अवगुणी लोगों के सामने हाथ जोड़ कर खड़े होने पर देश के महत्वपूर्ण लोग भी क्यों खड़े होते है। लोग , राजनीतिक लोगों के बच्चों के पैर भी छूने में अपनी तौहीन नही समझते है बल्कि जीवन को धन्य समझते हैं। विश्व के महान दार्शनिक सुकरात ने कहा था कि केवल विवेकशील को सम्मान दो, मूर्खो को नमस्ते भी करना पतन का कारण बनता है। मैं यहां युवाओं से कहना चाहता हूं कि ऐसे काले कौवों से सावधान रहने के लिए कुछ कदम उठाने के लिए आगे आएं, जैसे ;
1. कौवों में भी काले कौवों को पहचानने की कूवत पैदा करें।
2. कांव कांव और पीहू पीहू की आवाज को पहचानने की समझ पैदा करें।
3. राजनीति , ब्यूरोक्रेसी, न्यायपालिका वा मीडिया में बैठे हर व्यक्ति की मंशा को समझने के लिए मतदाता अपने दिल वा दिमाग को खोलें।
4. समाज को तोड़ने वाले कौवों की पहचान करने में अपनी तर्कशीलता को आगे लाएं।
5. कुछ भी करने से पहले अर्थात पिहू पीहू के स्थान पर कांव कांव करवाने वालों को पहचानने की हिम्मत दिखाएं।
6. देश के सभी कीमती संसाधनों को लूटने वाले सभी लोगों की पहचान करना सीखें।
7. पीहू पीहू करने वाले लोगों को भी कांव कांव करने पर मजबूर करने वाले लोगों की पहचान कर , उनसे दूरी बनाने के लिए साहस जगाने का कार्य करें।
8. अगर सभी लोग कांव कांव करने लगेंगे तो कैसा वातावरण होगा, आप खुद ही अंदाजा लगा सकते हैं। फिर तो ईमानदार और बुद्धिमान विवेकशील लोग हाशिए पर चले जायेंगे।
9. समाज को सशक्त करने के लिए जाति पाती से उठने के लिए अभ्यास करें। वोट केवल गुण के आधार पर दें।
10. युवाओं को मेहनती तथा ईमानदार महानुभावों को आगे लाने के लिए अपने भीतर विश्लेषण करने की क्षमता पैदा करें।
आप आदरणीय भवानी प्रसाद मिश्र की कविता को अपने ध्यान में लाने अथवा अपने व्यवहार में ऐसी कुछ स्किल्स जोड़ना जो हमारे जीवन को इतना सशक्त बनाए कि इस कविता में दर्शाए गए चार काले कौवों से इस देश को बचाया जा सकें। चार काले कौवों की सीख, प्रभाव हर क्षेत्र में है, केवल इन्हे पहचानने की अवश्यकता हैं। उनकी जहरीली बातों से बच कर राष्ट्र और समाज को मजबूत करने की शपथ के साथ आगे बढ़ना होगा, तभी जीवन में उदारता, समरसता, समता, क्षमाशीलता, संवेदना, असीम तथा ईमानदारी के भाव आयेंगे।
जय हिंद, वंदे मातरम