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सीख: आत्म दीपो भव, के सूत्र पर चलना होगा युवाओं को

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Lesson: Youth will have to follow the formula of 'May you be a lamp

mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेता
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
ने कहा कि युवाओं को अगर अंधविश्वास से छुटकारा पाना है तो जीवन को नए अवसर देने होंगे, पुराने ढर्रे पर सोंचना एवम पुराने ढर्रे पर चलना जीवन को पीछे धकेलना जैसा है, हम युवाओं को देखते है कि वो किसी के भी पीछे चलने की कौशिश करते है, किसी का साथ मिल जाये , किसी का सहारा मिल जाये, किसी की प्रशंसा मिल जाये, किसी की बड़ाई मिल जाये, किसी का कंधा मिल जाए, बस ये ही आजकल युवा तलाशता है और उनके पीछे पीछे हो लेते है, हम विश्वास कर लेते है कि यही हमारे जीवन को सही दिशा देगा। जितनी आसानी ये हम विश्वास कर लेते है उतनी आसानी से विचार नही करते है, विचार करने में झंझट लगता है और विश्वास करने में कोई झंझट नही है, कुछ करने की आवश्यकता नही है। युवाओं को लगता है कि पुरानी बातों पर विश्वास करना श्रद्धा है और हमने बड़ी ही चालाकी से युवाओं को वैचारिक क्रांति से हटा कर, तामसिक श्रद्धा में डाल दिया और अब युवाओं को भी लगता है कि ऐसे श्रद्धावान बनना आसान है क्योंकि इसमें कोई बड़ा काम नही करना है। हम सभी युवाओं को नया सोंचने की जरूरत है, जब रोज प्रकृति बदल रही है, पेड़ पौधे बदल रहे है , नदियां अपनी धारा बदल रही है पहाड़ पर्वत भी अपना स्वरूप बदल रहे है, विश्व में कार्यक्षेत्र बदल रहे है, लोगों की आवश्यकताएं बदल रही है, व्यवसायिक ट्रेंड बदल रहे है, नित नया स्वरूप प्रकृति अपना रही है , क्लाइमेट बदल रहा है, सर्दी गर्मी अपना समय बदल रही है, सभी कुछ तो बदल रहा है और समय के अनुसार बदलाव जरूरी भी है। जब नेचर रोज बदलती है तो क्या इंसान को उसके अनुसार नही बदलना चाहिए, अपने विचारों को वर्तमान के अनुसार नही चलाना चाहिए या हमे वही सदियों पहले बने हुए ढर्रे पर युवाओं को चलना चाहिए। नही बिल्कुल नही चलना चाहिए , मैं यहां ये कहना चाहता हूँ कि श्रद्धा या मानने से अधिक जानने की जरूरत है, किसी पर अंधविश्वास करने से ज्यादा विचारों की जरूरत है , कोई भी युवा, विश्वास न करे जब तक उसे अपनी विचार की कसौटी पर न तौल ले, अगर सही है तो उसे जीवन मे अपनाएं अथवा कभी न अपनाएं। 


किसी के पीछे चलने की आदत छोड़ दे। अपना रास्ता खुद बनाये , अपना विश्वास खुद जगाएं , किसी के भी पीछे चलने की जरूरत नही है। जब तक युवाओं द्वारा खुद नही किया जाएगा तो वह कैसे विश्वास कर पायेगा क्योंकि विश्वास खुद करने से ही आता है, जो काम आप ने खुद नही किया , खुद नही जाना , खुद नही परखा, खुद नही पढा, खुद नही देखा, तो कोई भी व्यक्ति किसी भी चीज पर कैसे विश्वस्त हो सकता है। अप्प द्वीपों भव , अपना दीपक खुद बनो, अपना निर्णय खुद लेना सीखो। जीवन में युवा अवस्था बहुत छोटी है, ऐसे ही किसी के पिछलग्गू बनकर गुजार दी तो वापिस नहीं आएगी। लोग युवाओं को ही अधिक बहकाने का प्रयास करते है क्योंकि अगर उनकी नकारात्मक ख्वाहिश जगा दी जाए तो फिर उनके अपने धंधे चलते है। जीवन में अपनी जरूरतें को वरीयता देना सीखें युवा। युवाओं को ऐसे ही किसी पर विश्वास नहीं कर लेना चाहिए, ये जीवन एक परिवार ही नहीं, बल्कि राष्ट्र को विकसित बनाने का आधार है। कुछ लोग युवाओं को नशे या अच्छा खाने पीने का लालच देकर, उनसे आपराधिक गतिविधियां करा लेते है जो उनके संपूर्ण जीवन को जेलो के पीछे धकेल देते है। अगर ऐसे कोई विश्वास नही करे तो उसे दबाने की कौसिस की जाती है कि फलाँ युवा  अपनी संस्कृति पर सवाल उठता है और उसे श्रद्धा का नाम देकर जबरजस्ती मनवाया जाता है। 


और उसे यही सिखाया जाता है कि ये हमारी श्रद्धा है, गुरु श्रद्धा के लायक है , गुरु चाहे फिर गढे में डाल दे, लेकिन उन्हें विचारशील नही बनने दिया जाएगा। अगर कोई विचारशील युवा द्वारा उस पर विश्वास न जताया जाए तो उसी को समाज अधार्मिक , नास्तिक करार देते है। और कहते है कि पुराने को मानो , नए पर विचार करने की जरुरत नही है, विचारों को पैना करना पाप है, नया सोंचना पाप है।  ऐसे तो कभी भी कल्याण नही होगा , ऐसे तो कभी भी युवाओं में वैचारिक क्रांति नही आएगी , ऐसे तो युवा पुरानी रूढ़ियों पर अपना जीवन खोते रहेंगे, मुर्दा होकर जीवन जीने में क्या फायदा है, क्या फायदा है मष्तिष्क को बंद रखने में, क्या लाभ है ऐसे श्रद्धावान बनने में, क्या फायदा है ऐसे स्वर्ग की कामना करने में, जब हमें सोंचने विचारने की क्षमता विकसित करना भी श्रद्धा के खिलाफ मान लिया जाता है, हमे ऐसे युवाओं की जरूरत है जो पृथ्वी को सुंदर बनाने का विचार प्रदर्शित करे, जो जल संरक्षण की बात करे, जो क्लाइमेट चेंज के बारे में चर्चा करें, जो ए आई के एक्सपर्ट बनें, जो परिश्रमी हो, जो ओलंपिक में मेडल जीते, जो खेती में पसीना बहाए, जो अपनी ऊर्जा को राष्ट्र विकास में लगाए, कुछ नया विचारे और उस पर कार्य करने की क्षमता रखे, अगर विचार जन्म लेंगे तो तर्क वितर्क की शक्ति जन्मेगी, युवाओं में वैज्ञानिकता विकसित होगी, जीवन मे नयापन आएगा, मन में हजारों प्रश्नों को उठाना सिखों, जीवन मे विचारहीनता, संवाद हीनता सदैव व्यक्ति को नशे,

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 सेक्स,और गलत कामो की तरफ धकेलती है।  हमे ऐसे युवाओं की कतई जरूरत नही है जो वैचारिक रूप से कमजोर है , जो सारा समय अंधविश्वास में घिरा रहता हो, हमे जरूरत है ऐसे युवाओं की जो श्रद्धा के नाम से सारा समय पुराने ढर्रे की लीक पर न चलता हो, नही चाहिए ऐसे मुर्दे युवाओं की फौज जो स्वतंत्रता आंदोलन में बलिदान देने वाले महान स्वतंत्रता सेनानियों से ज्यादा पाखंडी लोगो, व झाड़फूंक करने वाले अमानवीय लोगो पर विश्वास करते हो और किसी भी बच्चे व पशु की बलि चढ़ा देते हो। अरे जीवन की ये धारा कहाँ से कहाँ पहुंच गई और हमारे युवाओं को आज भी ऐसे विचारों ने जकड़ रखा है। ऐसे तो शहीद भगत सिंह , राजगुरु, सुखदेव, सुभाषचन्द्र बोस, चंद्रशेखर आज़ाद अगर ऐसे ही पाखंड में रहते तो हमारा देश कभी आज़ाद नही होता, अगर ग्राहम बेल ऐसे ही पाखंडियों के चक्र में पड़ जाते तो कभी भी टेलीफोन की खोज नही हो पाती, अगर ऐसे ही थॉमस अल्वा एडिसन इन पाखंडियों के चंगुल में फंस जाते तो आजतक भी दुनियां रैशनी के बगैर रहती, ऐसे ही दुनियां बल्ब के बगैर अंधकार में जीती, अगर ऐसे ही ब्रेल अंधविश्वास में डूबते तो कोई भी ब्लाइंड पढ़ नही पाता। अरे ऐसे हजारो उदाहरण है जिसने इस दुनियां को अपनी खोजो की वजह से सुंदर बनाया है,

 उन्होंने कभी अंधविश्वास नही किया और हो सकता है उन्हौने ईश्वर आल्हा गॉड पर भी विश्वास न किया हो, क्योंकि जीवन चलता है सृजन से , नए विचारों से ,नए शोध से, ध्यान से , मैडिटेशन से , परिश्रम से , जीवन कभी भी पाखंड, अंधविश्वास, अंधी श्रद्धा, टोने टोटके से , झंडफूंक से , सर पर मोर के पंख मारने से नही चलता है। सभी युवाओं को पुरानी सड़ी गली रूढ़ियां  छोड़ कर नवीनता को अपनाना होगा, जीवन मे नए नए प्रयोग करने होंगे। भगवान गौतम बुद्ध ने जीवन का एक सुंदर सूत्र दिया है  "अपदीपो भव और आत्म दीपो भव" ये सूत्र किसी भी व्यक्ति के जीवन को बदलने वाला है, किसी भी युवा के जीवन को नई राह पर ले जाने वाला है , इसका अर्थ है कि अपना दीपक खुद बनो या अपना रास्ता खुद बनाओ , अपना रास्ता नया बनाओ , किसी के पिछलगु मत बनो। अपनी आत्मा के दीपक की रैशनी में चलो, अपने आपको जगाओ, आत्म जागरूक बनो और उसकी रैशनी में , उसकी सजगता में रास्ता तय करो। कब तक दूसरो की लालटेन की लाइट में चलोगे , कब तक जिधर वो जाएंगे आप भी चलोगे। मैंने देखा कि जब हम किसी नए रास्ते पर सफर करते है तो हम ये देखते है कि कोई और भी उधर जा रहा है या नही, अगर कोई और नही जा रहा है तो हमारे भीतर घबराहट होने लगती की कहीं हम गलत तो नही जा रहे, क्योंकी हम सबके पीछे ही चलता चाहते है, ये डर निकालना होगा।  सबका अपना अलग अलग रास्ता है, सबके अलग अलग विचार है यहां कोई किसी से मेल नही खाता, सबकी अपनी तासीर है जितने लोग उतने सूत्र  हो तो काम चले , भगवान बुद्ध ने भी ये नही कहा कि मैंने जो रास्ता बनाया है उसी पर चलो, उन्हौने कभी नही कहा कि जो मैं कहता हूँ वो करो। ऐसे तो कोई मूर्ख ही कह सकता है। भगवान बुद्ध के सूत्र के अनुसार , हर युवा को अपना दीपक खुद को बनना है, अपना विचार खुद देना है, अपना रास्ता खुद को तय करना है , उन्हौने सिर्फ ये ही कहा है कि मैंने अपना रास्ता बनाया , तुम भी अपना रास्ता खुद बनाएं। किसी का उपदेश काम न आएगा, जैसे हर शरीर की अपनी तासीर होती है , उसमे वात, पित, कफ का अपना सन्तुलन है उसी प्रकार हरेक की बुद्धि का भी अपना लेवल है, सोंचने का तरीका है, जैसे हर व्यक्ति की डाइट अलग अलग है, पसंद अलग अलग है वैसे जीवन को दिशा देने के लिए भी रास्ते अलग अलग है। और उन रास्तों को बनाना व उन पर चलना भी खुद की ही जिम्मेदारी है। इसीलिए प्रत्येक युवा को चाहिए कि वो अपना दीपक खुद बने, अपना भविष्य खुद लिखे, यहां अपना अपना एजेंडा अलग अलग हो सकता है इसलिए किसी के चंगुल में न फंसे , अपना परिश्रम खुद करे, अपने बारे में खुद सोंचे, अपने बारे में खुद चिन्तन करे, किसी की घिसी पीटी लाइन पर चलने में कोई आनंद  नही है। आज से पांच हजार साल पहले , और तीन हजार साल पहले या हज़ार साल पहले या फिर सौ साल पहले के सिद्धान्त आज कैसे काम करेंगे? आज की डिमांड अलग है, आज की जरुरते अलग है, आज की इच्छा अलग है, आज की विचारधारा अलग है, आज का सामाजिक तानाबाना अलग है, आज शिक्षा के तरीके अलग है, आज का पहनावा अलग है, आज की सुखसुविधाये अलग अलग है, आज के यंत्र अलग अलग है, आज की भूमि ,जल , जंगल, वन , औषधि, खानपान का तरीका अलग है, आज के लोगो में लिहाज शर्म, आदर सत्कार, प्रेम , वासना , लोभ लालच, संवेदना का लेवल अलग है तो हजारों साल पहले लिखी हुई बातों में बदलाव की भी जरूरत होती है और हमारी अपनी जीवन शैली में भी बदलाव आया है इसलिए हमारे युवाओं को अपने रास्ते खुद बनाने होंगे। अपदीपो भव:  अथवा आत्म दीपो भव के सूत्र से भगवान बुद्ध ने एक संदेश दिया कि कोई किसी के लिए कुछ नही कर सकता है सब को अपना रास्ता खुद ही निर्मित करना पड़ता है , लेकिन मैं जो देखता हूँ कि लोग इतने पाखंड , लोभ व लालच में और मोह में डूबे हुए है कि इस बात पर भी विश्वास कर लेते है कि हम आपके कष्ट निवारण के लिए हवन करा देंगे अथवा हमे पैसे दे दो, हम आपके नाम का दान कर देंगे या आपके नाम की पूजा हम करवा देंगे। ऐसा अक्सर हमें बहकाया जाता है कोई और लोग बहक जाए, जो बड़े है जो वृद्ध है, जो कमजोर है, वो तो मान ले तो, विचार किया जा सकता है  लेकिन युवाओं को तो चेतना जगानी होगी कि वो किस राह पर जा रहे है, वो पूरा पूरा समय नशे में डूबे रहने वालों पर कैसे विश्वास करते है, वो सारे समय अंधविश्वास में डूबे रहते है, तीर्थ यात्राओं पर जाते है तो सिर्फ नशे की पूर्ति के लिए , नही तो उन्हें कौन सा ध्यान है या कौन सा अपने मन को साधने जा रहे है, वो तो पिकनिक मनाने जा रहे है, मैं  युवाओं से कहना चाहता हूँ कि हमारे तीर्थ स्थल पिकनिक स्पॉट्स नही है, वो आत्म दीपो भव की अवधारणा को पूरा करने के लिए है, उस तीर्थ को जाने का अर्थ है कि आप वहां ध्यान करने जा रहे है, या युवाओं को वहां अपने मन को साधने के लिए मौन व ध्यान का अभ्यास करने को ही जाना चाहिए ,न कि वहां मौज मस्ती , शराब पीने, या फिर अपने गर्ल फ्रेंड या बॉय फ्रेंड के साथ टाइम पास करने जा रहे है।  ये सरासर समय की बर्बादी है और
तीर्थ स्थलों को गन्दा करने के सिवाय कुछ नही है। आजकल अक्सर देखने मे आता है कि जो स्थल हमारे लिए पवित्र स्थल होते है, वहां युवाओं द्वारा ऐसा गन्ध मचाया है कि जो वास्तविक तीर्थ यात्री जो भगवान का ध्यान करने जाते है या पहाड़ो पर शुद्ध ऑक्सीजन लेने जाते है, जो पेशंट जाते है, उनके लिए परेशानी का कारण बनते है। मैं , ये अनुभव वृंदावन में कर चुका हूँ कि दिल्ली , गुरुग्राम, फरीदाबाद के युवा लड़के व लड़कियां अपनी पिकनिक के लिए वृंदावन का चयन करते है और जो स्थान भगवान कृष्ण की  स्थली मानी जाती है वहां आज की युवा पीढ़ी पिकनिक मनाने जाती है, और नशा भी करते है। जिन युवाओं को आत्म दीपो भव की अवधारणा को लेकर चलना चाहिए था वो अपने को नीचे गिराने का कार्य रहे है। युवाओं से मेरा आवाहन है कि वो अपने जीवन व भविष्य के खुद मालिक बने , आपको आगे ले जाने के लिए कोई नही आएगा, किसी के लिए यूज मत होना, किसी के पीछे चलने का काम मत करना । जीवन आपका है, उसे सर्वशक्तिमान बनाना है और अपने जीवन के खुद दीपक बनो। आपके कोई गुरु काम न आएगा, आप अपने गुरु खुद बनो, आप अपने आत्म दीपक बनो, आपके जीवन मे जो गुरु है, वो सत्य, परिश्रम, निर्भीकता, उत्साह व ध्यान है जो सभी युवाओं की ऊर्जा का सद्पयोग कराएंगे। इसे अपनाओ और जीवन को राष्ट्र के काम आने लायक बनाओ।