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message for youth: युवाओं को संवेदनशीलता का गुण, अपने जीवन मे लाने की जरूरत है नरेंद्र यादव

संवेदना के बगैर न तो भावना है, न ही प्रेरणा है, न ही आत्मीयता 
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mahendra india news

mahendra india news, sirsa नेहरू युवा केंद्र हिसार के उपनिदेशक डा. नरेंद्र यादव ने कहा कि युवाओं को संवेदनशीलता का गुण, अपने जीवन मे लाने की जरूरत है।  विषय की गम्भीरता को ध्यान में रखते हुए, युवाओं को इसका हिस्सा बनाया जा रहा है। ये गुण होना कितना महत्व रखता है इसी पर तो हम चर्चा करने जरूरत पड़ रही है। युवाओं में ही संवेदना की क्यों आवश्यकता है ये भी सोंचने की दिशा है। युवाओं में संवेदनशीलता से पहले मैं संवेदनशीलता क्या होती है उस की चर्चा कर रहा हूँ। 

किसी के प्रति कटरपन खत्म होता है
संवेदना, मतलब बराबर की पीड़ा या दर्द। किसी के भीतर, उस के मन बुद्धि में किसी के प्रति समानुभूति होना ही संवेदना कहलाती है। ये ऐसा गुण है जो किसी को भी एनालिटिक्स बनाता है, किसी के दुख दर्द को समझता है, किसी की की पीड़ा का आंकलन कर सकता है, किसी के दिल मे झांक सकता है, किसी को पड़ सकने की काबिलियत आती है, किसी के प्रति कटरपन खत्म होता है, इस सृष्टि के प्रति प्रेम का भाव आता है, जीवन मे नया जज्बा पैदा होता है, हिम्मत हौंसले की सीख पैदा होती है। 


मन मष्तिष्क में सोंचने समझने की ताकत आती है
उन्होंने बताया कि जीवन में प्रेरणा पैदा होती है, जीवन की जड़ता खत्म होती है, मन मष्तिष्क में सोंचने समझने की ताकत आती है, मनुष्य को पानी , जीव जंतु, पेड़ पौधे , नांदिया पहाड़ पर्वत के प्रति सजगता आने लगती है, जीवन का अहम अंश स्वाभिमान जगता है, समाज के प्रति जागरूकता पैदा होती है, जीवन मे संकीर्णता खत्म हो जाती है व विस्तारण जन्म लेता है, व्यक्ति का सोंचने समझने का नजरिया बदल जाता है, जीवन मे मातपिता द्वारा कही गई हर बात का मतलब समंझ आने लगता है, उन पर गौर करने की दिशा मिलने लगती है और जीवन मे जीवंतता पैदा हो जाती है। जब एक संवेदना से इतना जीवन बदल जाता है तो इसे सीखने और जीने में क्या घाटा है, सारा फायदा ही फायदा है।

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सम्पूर्ण जीने का तरीका बदल लिया
संवेदना जीवन की वो घुटी है जिसने भी पीया, उसने अपना सम्पूर्ण जीने का तरीका बदल लिया। जिसके जीवन मे संवेदना नही है वो  जड़ है , उनमें  जुड़ता है, उनमें प्रेम, स्नेह, वात्सल्य का नामोनिशान नही होता। जिस युवा को आगे बढ़ना है , देश भक्त बनना है, अच्छा नागरिक बनना है, हिम्मत, साहस,उत्साह भरना है, प्रेरणा जगानी तो जीवन मे संवेदना लेकर आनी बेहद जरूरी है।


युवाओं अगर संवेदनशील होना है तो निम्न अभ्यास करने होंगे
1. जीवन कभी भी बोलने, कहने या पिछलगु बन कर नही चंलने वाला। आप को कर्म करने की आदत डालनी ही होगी।
2. कभी कभी उन लोगो को भी देखना चाहिए जो मजदूरी करते है जो देश की निर्माणक है उनके बच्चों के बारे में सोंचने से संवेदना जागृत होती है।
3. कभी कभी पेड़ पौधों, छोटे छोटे जीव जंतुओं से बात करे।
4. पानी के तालाब पर जाकर पानी से बात करे।
5. कभी कभी उस मोची से बात करे जो आपके गंदे जूतों को संवारने के कार्य करता है, उसके पास जाकर बठे।
6. कभी कभी आग बरसाती धूप में काम करने वाले मजदूर की मेहनत को भ देखे।


7. कभी कभी गरीब बच्चों को रेस्टॉरेन्ट में खाना खिलाने लेकर जाओ।
8. बहुत मेहनती गरीब लोगों से वार्तालाप करे।
9. कभी मरते हुए जोहड़ तालाब के पास जाकर उसके बारे में भी विचार करे।
10. कभी अपने मरते हुए समाज के बारे में विचार करे और समाज को दुबारा जीवंत बनाने के लिए कुछ प्रयास जरूर करे, कुछ अपने से समाज को पुनर्गठित करने का प्रयास करे।
11. उन महान स्वतंत्रता सेनानियों के जीवन , उनके पवित्र बलिदान व उनके परिवारों की स्थिति के बारे में कभी शांत बैठ कर विचार करे, आपके भीतर संवेदना की ज्योत जगेगी।
12. युवाओं को चाहे की कभी उन सूखे हुए कुओं को देखे जिसने कभी जन जन को पानी पिलाया था और आज वो हमारी लापरवाही की वजह से सुख गए।


13. कभी कभी उन सूखे हुए तालाबो जोहड़ों के बारे में विचार करे कि कभी तो इन जोहड़ों ने भी जीवो पेड़ो को पानी पिलाया था और आज हमारे स्वार्थ के कारण वो सूख गए, क्या आप इन जोहड़ों को पुन: जीवन देने के बारे में सोंचते है।

प्रिय युवाओं संवेदना के बगैर न तो भावना है, न ही प्रेरणा है, न ही आत्मीयता है, न ही प्रेम है न स्नेह है, न ही आदर सम्मान है और न ही माइंडफुलनेस है व न ही जज्बा, साहस है और न ही जीवन मे उत्साह है जिससे ऊर्जा, प्रशनता, करुणा , दया , मेहनत, कुछ करने की मंशा पैदा होती है। आओ जीवन मे संवेदना का दीप जलाए।
लेखक
डा. नरेंद्र यादव उपनिदेशक, नेहरू युवा केंद्र हिसार व राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेता