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स्वामी विवेकानंद जी की जयंती तथा राष्ट्रीय युवा दिवस के शुभ अवसर पर भारतीय युवाओं को खुला पत्र

भारत के सभी युवाओं को सादर नमस्कार
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भारत के सभी युवाओं को सादर नमस्कार

mahendra india news, new delhi

नरेंद्र यादव, नेशनल वाटर अवॉर्डी ने आज अपने लेख में लिखा है कि युवा साथियों, आप किस धर्म से हैं, या किस जाति से हैं अथवा महिला है या पुरुष हैं, इस बात के  कोई मायने नहीं है, मायने केवल एक ही बात के है कि आपने Swami Vivekananda जी द्वारा कहे कठोपनिषद के उस श्लोक का है जिसमें उन्होंने कहा कि उठो, जागो, और लक्ष्य की प्राप्ति तक मत रुको। जिसका अर्थ है कि उठ कर खड़े जाओ, सभी दिशाओं तथा दशाओं में जागरूक बन कर, अपने जीवन के लक्ष्य को तय करके, निर्भीकता के साथ निरंतर मेहनत तब तक करते रहो, जब तक आप अपने टारगेट को प्राप्त ना कर लो। 

उन्होंने कहा कि मनुष्य जीवन उत्कृष्टता , सभ्यता का नाम हैं, उस तक पहुंचना ही हर युवा का  लक्ष्य हैं, मनुष्य जीवन समग्र प्रेम की अभिव्यक्ति हैं, उसे विश्व में फैलाने का कार्य करें। भले ही आपका नाम , जाति अथवा धर्म कोई भी हो, परंतु आप युवा हो, तो युवा होने का धर्म अर्थात कर्तव्य निभाने का प्रयत्न करो, जैसे गुलाब के फूल का नाम कुछ भी रख दो लेकिन उसकी सुगंध को नही बदला जा सकता है, (उसकी सुगंध चारो ओर फैलती है) , जैसे सूर्य का नाम कुछ भी रख दो परंतु उसकी ऊर्जा और प्रकाश को नही बदला जा सकता है, फिर चाहे किसी भी नदी का नाम कुछ भी हो, परंतु उसमे बहने वाले पानी को नही बदला जा सकता है, ठीक वैसे ही युवा किसी भी संप्रदाय से हो, किसी भी धर्म से हो अथवा किसी भी जाति से हो , उसकी एसेंस को नही बदला जा सकता है, युवाओं के युवात्व को नही बदल सकते हैं। 

युवा एब्सोल्यूट हैं, युवा संपूर्णता लिए हुए है, जैसे आप यह जानते है कि विश्व में सभी भगवान चाहे किसी भी धर्म में हो, उनका कोई भी रूप हो वो युवावस्था में ही प्रदर्शित होते हैं, उसी प्रकार युवा भी सम्पूर्ण है, ईश्वरीय गुणों से लबरेज है, उनकी ऊर्जा एब्सोल्यूट हैं, युवाओं को अपनी शक्ति, ऊर्जा, न्यायप्रियता, निर्भयता , निष्पक्षता, संवेदनशीलता, निर्मलता, स्नेहिलता को पहचानना है जिसे हम विभिन्न मतों के चक्कर में फंस कर भुला देते हैं। युवा साथियों, जैसे स्वामी विवेकानंद जी ने कहा कि युवा जीवन कूप के मेंढक की तरह नही है, युवाओं के जीवन में बुद्धि बंद करने के लिए नही हैं, युवाओं का जीवन श्रद्धा अथवा संकीर्णता के लिए नही हैं, उठो और अपनी ऊर्जा तथा ओज का उपयोग जगत के कल्याण में लगाएं। 

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भारत राष्ट्र, तुम्हारी पवित्र ऊर्जा की प्रतीक्षा कर रहा हैं। भारत के युवाओं ने कभी शंकराचार्य के रूप में, कभी श्री राम के रूप में , कभी श्री कृष्ण के रूप में, कभी श्री हनुमान जी के रूप में आकर इस देश के जनमानस को उपदेश दिया है। युवावस्था, वो अवस्था है जिसका ब्रह्मचर्य, जिसका तेज, जिसका ओज, जिसकी तीक्ष्ण बुद्धि, विवेक, जिसका आत्मबल, जिसकी सहनशक्ति, जिसका आवाज, उतनी ही निर्मल होती है जितनी निर्मलता ईश्वरीय गुण में होती हैं। मैं आज सभी युवाओं से एक ही आहवान करता हूं , कि अपनी इस ब्रह्मचर्य रूपी ऊर्जा को खोए बिना राष्ट्र को विकसित बनाने में जुट जाएं। युवा साथियों आप लोगो ने कभी अपनी कला, कभी स्किल, कभी अपने खेल, कभी वेद ज्ञान, कभी उपनिषद के ज्ञान, कभी श्रीमद्भगवत गीता के श्लोक, कभी रामायण की चौपाई, कभी बाइबल, कभी कुरान, कभी गुरुग्रंथ साहिब की गुरवानी, कभी नमो अरिहंतम्म, कभी आगम , कभी अवेस्ता, कभी त्रिपिटक, कभी तोरान के माध्यम से विश्व को ज्ञान के दीपक से प्रकाशमय किया हैं। स्वामी विवेकानंद जी ने कहा है कि " अहम ब्रह्मास्मी " अर्थात मैं ही ब्रह्म हूं जिसका अर्थ है कि हर युवा अपने को ब्रह्म स्वरूप समझें, उसी के अनुरूप व्यवहार करें, उसी के अनुरूप आचार व्यवहार करें, उसी के अनुरूप जीवन जिएं, जिससे संसार को सभ्यता, संस्कार तथा श्रेष्ठता का मार्ग मिलें। अगर कोई भी युवा उस परम अवस्था नही है तो अभ्यास करें, ब्रह्मचर्य के पालन का, अपने शरीर तथा मन मस्तिष्क को सशक्त करके अपने जीवन को उत्कृष्ट बनाने में लग जाएं।

युवा दोस्तो, मैं यहां एक बात और कहना चाहता हूं, तुम अपने को श्रेष्ठ बनाने के लिए पैदा हुए हो, तुम अपने को सभ्य बनाने के लिए पैदा हुए हो, तुम अपने को शारीरिक रूप से मानसिक रूप से , बौद्धिक रूप से, तथा आध्यात्मिक रूप से सशक्त बनने के लिए पैदा हुए हो, तुम जीवन को सर्वश्रेष्ठ बनाने के लिए ध्यान करो, प्राणायाम करो, दिन में सोलह सोलह घंटे काम करो, वासना को त्याग दो, कर्मठता की हर सीमा को पार कर जाओ, अपने स्वाभिमान को जगाओ तुम ईश्वर स्वरूप हो। तुम, शहीद भगत सिंह, तुम चंद्रशेखर आजाद, तुम राजगुरु सुखदेव, तुम ही रानी लक्ष्मीबाई, तुम नंगेली, अहिल्याबाई होलकर, तुम सुभाष चंद्र बोस, तुम ही खुदी राम बोस तथा तुम ही तो उधम सिंह , तुम ही रामप्रसाद बिस्मिल, तुम ही तो राजेंद्र लाहिड़ी की रूह में हो, युवाओं तुम बहुत पवित्र हो, तुम ही गुरु गोविंद सिंह, महाराणा प्रताप, शिवाजी, ज्योतिबा फुले, जीजाबाई, जयवंताबाई, सावित्री बाई फुले, भुवनेश्वरी देवी, स्वामी दयानंद तथा Swami Vivekananda की संतान हो, तुम बहुत ऊंचे चरित्र के हो, तुम भारत की तकदीर हो, इसलिए अपने को सर्वश्रेष्ठ स्तर तक लेकर जाएं। अब समय आ गया है कि उसका अभ्यास करो, निरंतर करो, निर्मल मन से करो। आपका जीवन बहुत सी चुनौतियों से भरा हुआ है जैसे मोबाइल फोन का चलन, उस पर चलने वाली विभिन्न एप्स, नशा, हर चौक चौराहे पर खुली बड़ी बड़ी शराब की दुकानें, विपरित सेक्स का आकर्षण, लोगों के स्वार्थी एजेंडे, राजनीतिक, धार्मिक, व्यवसायिक तथा आर्थिक लालच से भरे हुए प्रलोभन, गैर पौष्टिक खाने, झूठे प्रलोभन से भरी हुई टेलीविजन तथा सोशल मीडिया पर चलने वाली एड, पथ भ्रष्ट करने वाली संगत, पियर ग्रुप का प्रेशर, अच्छे कपड़ो, फैशन का दिखावा, झूठा दिखावा, ये सभी आपके जीवन के राह में बाधा बन कर खड़े है, इन सभी से युवाओं तुम  तभी पार पा सकते हो, जब तुम्हारा लक्ष्य निर्धारित हो। युवा अवस्था बार बार नही मिलती, मनुष्य जीवन एक बार मिलता है, इसे मनुष्यता, सभ्यता, संस्कार के साथ ही जीना सीखना ही श्रेष्ठ पद्धति हैं, श्रेष्ठ कर्तव्य हैं, श्रेष्ठ धर्म है। युवा साथियों, आपके सामने चुनौतियों भरा जीवन खड़ा हैं, इस स्वाभिमानी जीवन को चार स्तर से जीने का संकल्प,आज युवा दिवस पर ले। इस जीवन को स्वार्थ से शुरू करके परमार्थ की ओर लेकर जाना, अर्थात जिस युवा को स्व का अर्थ नही पता होगा, वो परम के अर्थ को कैसे जान पाएगा। युवाओं को सबसे पहले स्वार्थी बनना होगा । 


जिससे कि वो परमार्थी बन सके। चार स्तरों में पहला स्तर हैं खुद का खुद के लिए जीना अर्थात खुद को इतना सशक्त बनाना जिससे हर युवा अपने को हर प्रकार से सशक्त बनाएं ताकि वो शारीरिक रूप से वज्र जैसा, मानसिक रूप स्थित प्रज्ञ अथवा स्टेबल, बौद्धिक रूप से तीक्ष्ण तथा आध्यात्मिक रूप से कंसंट्रेट हो। दूसरे स्तर पर युवाओं को अपने परिवार अथवा मातापिता के लिए , पारिवारिक रिश्तों की महत्ता को समझते हुए, सभी की केयर करनी है, उनकी आर्थिक जरूरतों को भी पूरा करना हैं। तीसरे स्तर पर समाज को ही ब्रह्म समझ कर उसकी सेवा के लिए प्रशिक्षित होना है जिससे सामाजिक मर्यादाओं , लोक लाज, हमारी सामाजिक परम्पराओं को संरक्षित किया जा सके, जिससे मानवता का विकास हो, नैतिक मूल्यों की रक्षा हो सकें। इसके लिए हर युवा को अपनी आमदनी से 2 प्रतिशत समाज को देने का संकल्प करना चाहिए।

चौथा स्तर, राष्ट्र को विकसित बनाने के लिए हैं, युवाओं को अपने समय में से रोज एक घंटा अपने समाज को तथा एक घंटा राष्ट्र को देना सीखो , अपनी अपनी आमदनी का कुछ अंश राष्ट्र को विकसित बनाने के लिए भी रखना चाहिए, यहां युवाओं को खेल कूद, नए नए शोध, आधुनिक शिक्षण,वैज्ञानिक सोच,  राष्ट्र की जी डी पी तथा प्रति व्यक्ति आय बढ़ाने में योगदान करना हैं, सभी को अपना राष्ट्र कर्तव्य बनाना हैं कि हम खुद का मानव विकास करें, संविधान को माने, ट्रैफिक नियम को माने, लेन ड्राइविंग करें, लाइन का पालन करे, टैक्स की चोरी ना करें, भ्रष्टाचार ना करे और भ्रष्टाचार करने वाले को सजा कराने में सहयोग करे, बेटियों, बहनों, माताओं का सम्मान करें। 

ऐसे राजनीतिकों को वोट ना दे जो तुम्हारी शिक्षा , स्वास्थ्य,कौशल, रोजगार, बेटियों की सुरक्षा, समाज में सभ्यता मर्यादाएं तथा संस्कार ना दे पाएं तथा अपने निजी एजेंडे के साथ जोड़े। स्वामी विवेकानंद जी के अनुसार मनुष्य जीवन का अर्थ प्रेम है नफरत नही, विस्तारण है संकीर्णता नही, समृद्धि हैं दरिद्रता नही, न्याय है अन्याय नहीं, सभ्यता है असभ्यता नही, श्रेष्ठता हैं निकृष्टता नही, समुद्र है कूप नही, सुगंध है दुर्गंध नही, महानता है तुच्छता नही, जीवन  सार है शृंगार नही तथा प्रश्न करना, तर्क करना, जिज्ञासु होना हैं, श्रद्धालु नही। अन्त में मैं सभी युवाओं को उत्कृष्ट नागरिक बनने की प्रार्थना करता हूं।
जय हिंद, वंदे मातरम
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट कोच