भारत को विकासशील से विकसित बनाने में स्कूल के हेड मास्टर, कॉलेज के प्रिंसिपल, विश्वविद्यालय के कुलपतियों से आपेक्षित योगदान

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भारत को विकासशील से विकसित बनाने में स्कूल के हेड मास्टर, कॉलेज के प्रिंसिपल, विश्वविद्यालय के कुलपतियों से आपेक्षित योगदान

mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
वर्तमान समय में एक विषय ऐसा है जो भारत भूमि को विकसित राष्ट्र के रूप में देखने के लिए हर नागरिक की जरूरी जिम्मेदारी का एहसास कराना है, आज हम इस लेख के माध्यम से शिक्षण संस्थानों के मुखिया की भूमिका पर चर्चा करेंगे। भारत को विकसित बनाने में युवा विद्यार्थियों की भूमिका जितनी महत्वपूर्ण है शायद उतनी किसी की नही हैं, जहां इन विद्यार्थियों का व्यक्तित्व एवं माइंड मेकअप किया जाता है उन सभी संस्थानों जैसे स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों के प्रमुखों की क्या भूमिका होनी चाहिए , वो राष्ट्र के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं। इन सभी माननीयों के विजन कैसे है?

 ये उन युवाओं का भविष्य कैसा बने , उनके एटीट्यूड पर निर्भर करता हैं। हमे ऐसे विद्यार्थी की फौज चाहिए, जो ना केवल देश के कानूनों को फॉलो करे, वो ना केवल समय के पाबंद हो , बल्कि वो मेहनती के साथ साथ ईमानदार भी हो। हमारी सबसे बड़ी जरूरत है कि सभी शिक्षण संस्थानों में चाहे वो प्राथमिक विद्यालय हो, चाहे वो वरिष्ठ माध्यमिक स्कूल हो , चाहे वो कॉलेज हो या फिर वो विश्वविद्यालय हो, इनमें पांच विषयों पर कार्य अवश्य हो जो निम्न प्रकार हैं।


1. चरित्र निर्माण 
2. व्यक्तित्व विकास
3. सभी नियमों के पालन के लिए अभ्यास ।
4. व्यवसायिक माइंड मेकअप करना।
5. विद्यार्थियों को ऑनेस्ट बनाना तथा समय का पाबंद बनाना।
   ये पांच विषय ऐसे हैं जिन पर अगर लगातार तीन साल कार्य किया जाए तो हम हर विद्यार्थी को परफेक्ट बना सकते हैं, लेकिन सभी संस्थानों के प्रमुखों के विजन के साथ साथ वहां कार्य करने वाले सम्माननीय शिक्षकों की भी जिम्मेदारी हैं। यहां हम दो प्रकार के संस्थानों की बात करेंगे, पहला सरकारी संस्थान तथा दूसरा निजी संस्थान, आप किसी भी स्तर के शिक्षण संस्थान की बात करो दोनो में ही सरकारी और गैरसरकारी संस्थान है, जिनमे भारत के युवाओं के चरित्र तथा व्यक्तित्व का निर्माण किया जाता हैं। उसके साथ ही साथ अलग अलग विषयों की पढ़ाई भी कराई जाती है। हम जब देश को विकासशील से विकसित करने की बात करते है तो तीन विषयों से संबंधित  शिक्षा हमे विद्यार्थियों को अवश्य देना चाहिए, पहला तो ह्यूमन डेवलपमेंट , दूसरा कंपोनेंट व्यवसाय शुरू करने का जज्बा तैयार करना ,

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तथा तीसरा देश को विकसित बनाने के पैरामीटर के विषय में जानकारी देना, जो विद्यार्थियों को किसी भी संस्थान में शायद नही पढ़ाया जाता हैं। स्कूल, कॉलेज तथा विश्वविद्यालयों में ट्रेडिशनल विषयों की जानकारी के सिवाय ज्यादा कुछ पढ़ाया नही जाता हैं, जब हम ऊपर लिखे तीनों महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स की बात करते है तो उसमे तीन तीन बिंदु आते है जिन पर शिक्षा दी जानी चाहिए और इन सभी कंपोनेंट्स को डेली स्टडी शेड्यूल में शामिल करना चाहिए। जब शिक्षण संस्थान के प्रमुख दोनो विषय, मानव विकास तथा बिजनेस माइंडसेट के लिए कार्य  करने का मन बनाएंगे तो ही हर संस्थान में इन कंपोनेंट्स को प्रतिदिन के शेड्यूल में शामिल किया जा सकेगा। जिन पॉइंट्स को सभी शिक्षण संस्थान बेकार के विषय मानते है वहीं हम सबसे बड़ी गलती कर देते हैं, क्योंकि जो विषय हमारे विद्यार्थियों को मानव विकास, मानव संसाधन बनने, व्यवसाय शुरू करने  के लिए जज्बा पैदा करना तथा देश को विकसित बनाने के पैरामीटर की जानकारी देते है उन्ही को हम छोड़ देते है। शिक्षण संस्थान अपना पला झाड़ लेते हैं। जब हम विद्यार्थियों को स्कूल , कॉलेज और विश्वविद्यालयों में ही उनके व्यक्तित्व का निर्माण नही करेंगे तो कहां करेंगे?  आजकल हमारे शिक्षण संस्थान भी विद्यार्थियों को डिग्री तो दे देते है तथा उन्हें सरकारी नौकरी के लिए उनकी मानसिकता बना कर बाहर कर देते हैं परंतु ना तो ये तय कर पाते है कि सरकारी नौकरी नहीं मिली तो क्या होगा,

उनका व्यक्तित्व इतना कमजोर होता है कि उन्हे देश दुनिया का कुछ पता नहीं होता है, ना ही उन्हे देश को कैसे विश्व में स्ट्रॉन्ग बनाना है ये भी ज्ञान नहीं होता हैं। मैं, सभी शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों से निवेदन करता है कि विद्यार्थियों का मानव के तौर पर विकास करना , उनके माइंडसेट को बिजनेस के लिए तैयार करना, उनको देश का संरक्षक बनना सिखाना तथा उन्हें देश को विकसित बनाने के जितने भी पैरामीटर है, उनके बारे शिक्षा देना भी शिक्षण संस्थानों की जिम्मेदारी हैं। हम यहां तीनो कंपोनेंट्स के बारे में थोड़ा चर्चा करना चाहता हूं, जैसे ;
पहला: मानव विकास के कुछ पॉइंट्स है जिस पर काम करना होगा जैसे , भारतीय कानून के हर पहलू जो मानव जीवन के विकास से संबंधित है, उसकी ट्रेनिंग देना, ट्रैफिक नियमों को समझना और व्यवहार में लाना, व्यक्ति को मानव की श्रेणी में लाना, उसके चरित्र वा व्यक्तित्व का निर्माण करना, उसे असभ्य से सभ्य बनाना, उन्हें महिलाओं , बुजुर्गो तथा प्राकृतिक संसाधनों के प्रति संवेदनशील बनाना। सबसे जरूरी बात उन्हें उपभोक्ता से नागरिक होने का एहसास कराना।
दूसरा कंपोनेंट: हर विद्यार्थी को व्यवसायिक दृष्टिकोण अपनाने के लिए प्रशिक्षित करना, उन्हे नौकरी नहीं, अपने बिजनेस एस्टेब्लिश करने के लिए प्रशिक्षित करना, बिजनेस को विद्यार्थियों के संस्कारों में डालना, ताकि वो व्यवसाय से डरे नहीं। जीवन में पैसा कमाने के अलावा भी बहुत सी जिम्मेदारियों को पूरा करना होता है जिसमें प्रकृति का संरक्षण, जल संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण जैसे महत्वपूर्ण विषय है।
तीसरा प्वाइंट: देश को विकसित होने के लिए उन पैरामीटर का प्रशिक्षण देना , जिससे कि हर विद्यार्थी राष्ट्र को विकसित करने में अपना बेहतरीन योगदान देना सीखे, राष्ट्र के लिए जीवन को जोड़ने का कार्य करें। इन शिक्षण को संस्थानों जो भारत में ही नही, बल्कि विश्व मे भी नैतिकता , व्यक्तित्व विकास, चरित्र निर्माण तथा देश भक्ति को नियमित विषयों की शिक्षा साथ साथ देनी चाहिए, तभी मानव का विकास होगा और राष्ट्र विकसित होगा। केवल पैसे से देश विकसित नही हो सकता, राष्ट्र को विकसित बनाने के लिए नागरिकों का विकास करना जरूरी हैं।

हमे अपने नागरिकों को स्कूल, कॉलेज व विश्वविद्यालयों में जलवायु परिवर्तन जैसे मुख्य विषयों के बारे में भी पढ़ना होगा। मैं समझता हूं कि विद्यार्थियों के लिए स्कूल , कॉलेज और विश्वविद्यालय इस लिए खोले गए है कि वो नैतिक, परफेक्ट वा सभ्य मानव बनने का हर दिन अभ्यास करे ताकि उनके व्यवहार में वो सब बाते आ जाए, वरना विषय का ज्ञान तो किताबो से भी लिया जा सकता है, घर पर बैठकर भी किया जा सकता है। सभी शिक्षण संस्थानों के प्रमुखों को यही बात दिमाग में रखनी हैं, मानव विकास सबसे महत्वपूर्ण पहलू है। विकसित होना, गुलाम होना नहीं है, विकसित युवा का अर्थ है निर्भीक बने, अधिक से अधिक प्रश्न करे, अपनी जिम्मेदारी वा जवाबदेही का पालन करें। विद्यार्थियों का सशक्त होना ही, सभी शिक्षण संस्थानों की उपयोगिता सार्थक करेगा, तभी इनका होना भी सार्थक होगा। और देश विकसित होगा।
जय हिंद, वंदे मातरम

 

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