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स्वामी विवेकानंद ने कहा था गीता पढ़ने से पहले फुटबॉल खेलें, इसका अर्थ समझे भारत के युवा...

 
Swami Vivekananda had said that before reading Gita, play football, Indian youth should understand its meaning
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 Swami Vivekananda had said that before reading Gita, play football, Indian youth should understand its meaning
mahendra india news, new delhi
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
युथ एंपावरमेंट मेंटर

युवा पीढ़ी विज्ञान छोड़ अगर पाखंड के चंगुल में फंस जाएगी तो फिर कोई बचाने वाला नहीं है। हमने तो अपने ऋषि मुनियों की तस्वीरें देखी है जिसमें उनकी लंबी श्वेत दाढ़ी,लंबे श्वेत बाल ही दिखते है और बहुत गंभीर मुद्रा में, गहन चिंतन में दिखाई देते है। इसका सीधा सा अर्थ यह हुआ कि ज्ञान की खोज में उम्र बीत जाती है तब जाकर कहीं कुछ प्राप्त होता है और आमजन को ज्ञान की ओर प्रेरित किया जाता है, विज्ञान में किसी महत्वपूर्ण खोज में उम्र निकल जाती है तब जाकर कोई नहीं खोज आती है, लेकिन आजकल तो ऐसे ऐसे महानुभाव कथावाचक, ऐसे ऐसे धर्म के प्रचारक आ गए है जो ना तो पढ़े लिखे है और उम्र से भी बिल्कुल यंग, उनके चेहरे से भी, उनकी वाणी से भी कहीं पर ज्ञान का तो दूर दूर तक नाता नहीं है और ना ही वो शास्त्रों का ज्ञान रखते है, संस्कृत भाषा का ज्ञान तो छोड़ ही दीजिए, वो लोग संस्कृत का श्लोक नहीं बोल पाते है। कितने ही ऐसे नौजवान है जिन्होंने कथावाचक बनाने के ट्रेनिंग सेंटर खोल लिए है। 
उनको ना तो संस्कृत पढ़ी है और ना ही उन्हें संस्कृत के श्लोक या मंत्रों का ज्ञान है। आजकल तो बस धर्म के नाम पर चमत्कार हो रहे है, लोगों को पाखंड में धकेलने वाले को अधिक ज्ञानवान माना जाता है। एक समय था जब पूजापाठ, उपासना, तीर्थ जाने का कार्य वो लोग करते थे जो वानप्रस्त की ओर जाने वाले होते थे या फिर बुजुर्ग लोग जाते थे, उन्हें जीवनभर का अनुभव था लेकिन आज तो युवा पीढ़ी ने धर्म स्थलों को भी पिकनिक स्थल बना दिया है और युवा लोगों को धर्म का ज्ञान करा रहे है। वो ऐसे महानुभाव है जो ना तो वेद की बात करते है, ना उपनिषद की बात करते है, ना वेदांत की बात करते है, ना ही श्रीमद्भगवद् गीता की बात कर रहे है, बस लाल चटनी हरी चटनी खिलाकर लोगों की समस्याओं का समाधान करने के नाम पर लोगों को मूर्ख बनाया जा रहा है, कोई चमत्कार कर रहे है, कोई कृष्ण को चोर बताकर कथा कर रहे, कोई रासलीला का अर्थ तक तो जानते नहीं है लेकिन लोगों को बस म्यूजिक पर नचाने का कार्य कर रहे है, ऐसे किसी समस्या का समाधान नहीं होगा।
 आप करते रहे, कितने ही टोने टोटके, कोई फायदा नहीं होने वाला है। मैं स्वामी विवेकानंद जी की बात कर रहा हूँ जिन्होंने विदेशों में हिन्दू धर्म का डंका बजाया था लेकिन वो पूजा पाठ नहीं था, वो उपासना पद्धति नहीं थी, वो पाखंड नहीं था, वो संकीर्णता भी नहीं थी, उसमें ऐसा भी नहीं था कि अपने दायरे में खड़े होने की बात हो, ऐसा कुछ नहीं था, वहां केवल वेद थे, वेदांत था, श्रीमद्भगवद् गीता थी। वैसे हम जो भी करते है वो विवेकानंद की विचारधारा से बिल्कुल विपरीत धारा में बह कर करते है, एक तरफ हम बात तो वसुधैव कुटुंबकम् की करते है लेकिन इसके धुर विरूद्ध अपने अपने छोटे छोटे दायरे भी बना रखे, खुद को कट्टरपन के पिंजड़े में फंसा रखा है, ये एकदम विवेकानंद के विचारों से भिन्न है। इससे कभी कल्याण नहीं होगा कि हम मुखौटा तो स्वामी विवेकानंद या महर्षि स्वामी दयानंद जी सरस्वती का लगा ले और अपने अनुसार पाखंड फैलाने वालों के साथ भी खड़े हो जाएं, सच्ची में ये विचार युवा पीढ़ी को बर्बाद कर देंगे। 
स्वामी विवेकानंद जी ने अपने एक प्रवचन में कहा था कि हे भारत के युवाओं तुम गीता पढ़ने और उसे समझने के लायक तभी बनोगे, जब तुम शारीरिक रूप से तथा मानसिक रूप से सशक्त बनोगे। यह विराट कार्य तभी होगा जब तुम पहले फुटबॉल खेलों, व्यायाम करो, क्योंकि युवा पीढ़ी को अपने शरीर को बलशाली बनाने के लिए स्पोर्ट्स का सहारा लेना चाहिए। हम ये सदा से सुनते आए है कि स्वस्थ शरीर ही बलशाली, निर्भीक, और एक स्वस्थ मन का मालिक होता है। स्वस्थ मन ही एक इंसान को रास्ते से भटकने नहीं देता है, जिसके पास स्वस्थ शरीर और मन है, वो ही चित, बुद्धि से भी सशक्त होते है, उन्ही के पास शुद्ध आत्मा होती है, और ऐसे व्यक्ति ही श्रीमद्भगवद् गीता जैसे महान ग्रंथ को समझने की बुद्धि वा शक्ति रखता है। बच्चों को, युवाओं को तथा किशोरावस्था को पाखंड के साथ चलने की अपेक्षा खेलना चाहिए, ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए, व्यायाम करना चाहिए, दंड करने चाहिए, दौड़ना चाहिए, विज्ञान पढ़ना चाहिए, मेडिटेशन करना चाहिए तभी तो तुम्हारे भीतर तर्कशक्ति पैदा होगी, तभी तो तुम्हारे अंदर विश्लेषण करने की क्षमता आएगी, तभी तो तुम एनालिसिस कर पाएंगे, अन्यथा अनपढ़ लोग भी आपको डराएंगे, बहकाएंगे, 
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भविष्य के प्रति भीरू बनायेंगे और पाखंड में धकेलकर अपना पैसा इक्कठा करेंगे। जब हम धर्म को जीवन में सशक्तिकरण का मार्ग मानते है तो कुछ लोग उसी धर्म से आम जनमानस को डराने का कार्य क्यों करते है और अपना उल्लू सीधा करते है। हम बिना समझे, किसी के भी पीछे चलने लगते है, उनकी बातों का अनुसरण करने लगते है। आप एक बार तो स्वामी विवेकानंद को पढ़ो, उनके वेदांत को समझो, जीवन बदल जाएगा। आजतक हमने ना जाने कष्ट मेहनत से कमाया हुआ जो पैसा ऐसे पाखंडियों को दिया है  उसे बचा सकते हो। स्वामी विवेकानंद जी किसी भी युवा को, विद्यार्थी को तथा किशोर को फुटबॉल खेलने को इसी लिए कहते है क्यूंकि वो चाहते थे कि हर बच्चा, युवा शरीर से सशक्त बने, मन से सशक्त बने, तभी तो वो शास्त्रों के मायने समझ पाएंगे, अन्यथा पाखंडी लोग अर्थ का अनर्थ करके यूं ही बहकाने का कार्य करेंगे, यूं ही पैरों में काले धागे बांधने को कहेंगे,  
बीमार व्यक्तियों के लिए धर्म के कोई मायने नहीं है, एक और बात बिना समझे मंत्रों या श्लोक का रटा मारने से कोई लाभ नहीं होगा। श्रीमद्भगवद् गीता का अध्ययन सभी को करना चाहिए, लेकिन उनके अर्थ के साथ। सबसे पहली ड्यूटी हमारी मातापिता होने के नाते यही है कि हम अपने बच्चों को मन से मजबूत बनाए, डरपोक नहीं। बीमार मन, कुंठित मन हर किसी की  बातों में फंस कर अपना करियर बर्बाद कर लेते है, साथियों यह इस लिए भी जरूरी है कि इससे हमारे बच्चे गलत दोस्तों को पहचान पाएंगे, गलत इरादों को पहचानेंगे, गलत दिशा में जाने से बचेंगे, 
नशे से बच पाएंगे, हनी ट्रैप में नहीं फसेंगे, क्योंकि कमजोर मन के बच्चे ही पियर प्रेशर के शिकार बनते है। आओ अपने बच्चों को स्वामी विवेकानंद जी के बताए रास्ते पर चलने के लिए प्रेरित करें और फुटबॉल खेलने के लिए मैदान तक लेकर जाए, ताकि बच्चें श्रीमद्भगवद् गीता को समझने लायक बन सकें।
जय हिंद, वंदे मातरम