भारतीय कर्म संस्कृति में शहीद भगतसिंह, राजगुरु तथा सुखदेव जी का क्या महत्व हैं, इसे समझे युवा पीढ़ी

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The young generation should understand the importance of martyrs Bhagat Singh, Rajguru and Sukhdev in Indian work culture
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर

नरेंद्र यादव ने अपने लेख कहा कि मैं आज के सभी नागरिकों के सामने एक बहुत ही महत्वपूर्ण प्रश्न रख रहा हूं जिसे हर एक को अपने हृदय में संजो कर विचार करना होगा कि भारत देश के लिए हमारे महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगतसिंह , राजगुरु तथा सुखदेव जी, क्या मायने रखते हैं, इसी आवश्यक सवाल पर विमर्श हेतु मैं आप सभी के सामने आया हूं। पिछले पचास वर्षों में भारत की संस्कृति में बहुत बड़े बदलाव आए हैं जिसे पीढ़ियों या उम्र के अनुसार सभी ने देखा है। भारत की संस्कृति गांव में निवास करती थी, भारत माता ग्रामवासिनी है, जो गांवो से निकाल कर बाजार की ओर रही है, भारत की संस्कृति शहरों में तो कभी रही ही नही थी, भारत माता शहरवासिनी तो कभी रही ही नही। उद्योगिकरण होना एक अलग बात है परंतु जीवन ग्राम्य सिद्धांतों को मूल मानकर जीया जाए , ये दूसरी बात है। दोस्तो भारत की संस्कृति या मैं कहूं कि ग्राम्य संस्कृति के सात आधार हैं जिनकी चर्चा हर घर की पाठशाला में होनी चाहिए।


 मैं उन्ही सात ग्राम्य संस्कृति के आधार की बात कर रहा हूं, जैसे ;
1. आपसी भाईचारा
2. प्राकृतिक संसाधनों का संरक्षण
3. मितव्ययता
4. सामाजिक मर्यादा
5. बेटियों का सम्मान
6. व्यवहारिक ज्ञान तथा अभ्यास
7. सादा एवम् साझा जीवन
   युवा साथियों, ग्राम्य जीवन की कोई बराबरी नहीं होती है, परंतु दुख की बात यह है कि हमने अपने ग्रामस्वराज को छोड़ कर शहरों की अधीनता स्वीकार कर ली।  हमने गांवो का स्वराज शहरों को गिरवी रख दिया हैं। आज की गांव की पीढ़ियों से मैं जानना चाहता हूं कि शहर में ऐसा क्या है जो हम सुबह उठते ही बैग उठा, पीठ पर बांध कर चल देते है और शहरों की जीवन पद्धति लेकर आते हैं। मैं अब अपने विषय पर आ रहा हूं जिसमें भारतीय संस्कृति में महान स्वतंत्रता सेनानियों या बिना लाभ के या बिना आसक्ति के कार्य करने का क्या महत्व होता था, भारतीय संस्कृति का एक छोर स्वतंत्रता सेनानियों से शुरू होता था वा दूसरा छोर प्रकृति को संजोने में जुड़ी है। अगर उन स्वतंत्रता सेनानियों की बात करें जिन्होंने बहुत ही छोटी उम्र में अपने प्राणों की आहुति दी, उनमें महान स्वतंत्रता सेनानी शहीद भगत सिंह, राजगुरु तथा सुखदेव जी, हमारी ग्राम्य जीवन के आधार का काम करते थे। जब हम छोटे होते थे तो हमारे घरों की बैठकों में सभी स्वतंत्रता सेनानियों के चित्र लगे होते थे, उनमें शहीद भगत सिंह, सुभाषचंद्र बोस, महात्मा गांधी, राजगुरु, सुखदेव, चंद्रशेखर आजाद , रानी लक्ष्मीबाई, रामप्रसाद बिस्मिल तथा अशफाकुल्लाह खां होते थे , उन्ही के आचार व्यवहार के आधार पर ही हमारे युवाओं के चरित्र निर्माण होते थे। आज कितने घरों की बैठकों में इन महान स्वतंत्रता सेनानियों के चित्र को जगह मिलती हैं , पहली बात तो ये है शहरो में तो बैठक का कॉन्सेप्ट ही नही है तथा गांवो में भी शहरीकारण तेजी बढ़ रहा है इसलिए गांवो में भी बैठक नही रही। अब कही पर भी इन स्वतंत्रता सेनानियों के चित्रों को स्थान नही मिलता है। शायद अब तो एक चित्र को भी जगह नही मिलती। युवा दोस्तों, शहीद भगतसिंह, राजगुरु और सुखदेव थापर, आज की युवा पीढ़ी को पांच सशक्त आधार देते है जिन्हे हर युवा को अपने व्यक्तित्व के साथ जोड़ना होगा , जैसे ;
1. बहादुरी
2. त्याग
3. तप
4. देशभक्ति
5. अपने बड़े बुजुर्गो तथा देश के स्वाभिमान को जिंदा रखना।
ये पांच आधार अगर युवाओं द्वारा अपने जीवन के साथ जोड़ लिए जाए तो उन्हे अपने जीवन की उपयोगिता समझ में आने लगती हैं। भारतीय युवाओं को जीवन की समझ आने लगती है। अगर पांचों आधारों को विस्तृत करके आगे बढ़े तो जान पाएंगे कि ये हमे क्या शिक्षा देते हैं, जैसे,
1. बहादुरी का जो गुण है वो सत्यता , कर्मठता तथा जीवन की स्पष्टता से आता है, वही व्यक्ति ब्रेव बनता है जो इनका अभ्यास करते हैं। जो युवा सत्य तथा ईमानदारी का पालन करता है वही बहादुर हैं।
2. युवाओं को जीवन में त्याग का आधार मिलता है, प्राणों का त्याग करना तो बड़ा ही मुश्किल कार्य है, इस उच्चतम त्याग के सामने तो सब कुछ छोटा है, और इससे युवाओं के भीतर का लालच, लोभ, मोह का खात्मा होता हैं।
3. शहीद भगतसिंह के जीवन का तप, युवाओं को निर्भीकता की शिक्षा देता है, बर्दास्त करने की क्षमता प्रदान करता है, अनुशासन, धैर्य तथा किसी भी परिस्थिति में जीवन जीने की ताकत देता है, इससे युवाओं में स्पष्टता, शुद्धता तथा ईमानदारी आती हैं।
4. शहीद भगतसिंह, राजगुरु तथा सुखदेव जी ने देशभक्ति की जो परिभाषा दी है वो शायद आज तो किसी के जहन में नही हैं, उन्होंने देशभक्ति के लिए अपनी जान को भी कुर्बान कर दिया। उनका परम लक्ष्य देश की आजादी थी। आज तो राष्ट्रभक्ति की परिभाषा ही बदल गई है, आज तो लोग देश तथा समाज के लिए तो क्या त्याग करेंगे , लोग अपने खुद के पेरेंट्स के लिए भी त्याग नही कर सकते हैं। राष्ट्रभक्ति दिखानी है तो भौतिक वस्तुएं तो क्या शहीद भगतसिंह ने जान कुर्बान की थी।
5. वर्तमान पीढ़ी के युवाओं को शायद अपने बड़े बुजुर्गो, समाज तथा राष्ट्र के स्वाभिमान का कोई ख्याल नही है, ये केवल अपनी सहूलियत और अपना कम्फर्ट जोन देखते हैं। ऐसे युवाओं के लिए अपने आराम, अपने अपनी भौतिक सुख सुविधाओं के आगे कुछ नहीं होता है, उन्हे अपने मातापिता, बुजुर्गो, समाज तथा राष्ट्र की कोई परवाह नही हैं, परंतु हमारे युवा, शहीद भगतसिंह से ये सारे ख्यालात तथा गुण ले सकते हैं।
    युवा दोस्तों , आज से ही संकल्प लेकर अपने जीवन में, और अपने व्यक्तित्व में शहीद भगतसिंह, राजगुरु तथा सुखदेव जी के व्यक्तित्व को जोड़ लें ताकि देश के प्रत्येक युवा का जीवन राष्ट्र के विकास में काम आएं और हर युवा अपने आराम दायक जोन से बाहर निकल कर अपने को कर्मठता, ईमानदारी, अनुशासन तथा धैर्य की कसौटी पर कसने के लिए अभ्यास करें। युवा खुद के जीवन में ग्राम्य जीवन के आधार भी जोड़ने का अभ्यास करें।
जय हिंद, वंदे मातरम