विद्यार्थियों का धर्म क्या है, इसे पहचानने की आवश्यकता

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There is a need to identify the religion of the students​​​​​​​
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
 विषय थोड़ा कन्फ्यूजिंग है क्योंकि कुछ लोग धर्म और पंथ में फर्क नही समझ पाते है, वो यही सोंचते है कि धर्म तो पूजा पद्धति के अनुसार सभी का अलग अलग होता है, विद्यार्थियों का कोई अलग से धर्म थोड़े ही होगा। धर्म तो लोगों के अलग अलग होते जैसे हिंदू, मुस्लिम, सिख, ईसाई, बौद्ध, बहाई, जैन , यहूदी या कोई दूसरे आदि आदि, लेकिन हमारे सनातन संस्कृति के अनुसार रिलीजन और धर्म आपस में प्रयायवाची नही है। 
रिलीजन का प्रयायवाची तो पंथ हो सकता है। संस्कृत के अमरकोश में धर्म के तो कई अलग अलग अर्थ दिए गए, खैर धर्म रिलीजन तो बिल्कुल नही है, धर्म के दस लक्षण होते है और दसों का अर्थ अलग अलग होता है। अगर आप इसकी एसेंस के हिसाब से देखें तो आप पाएंगे कि धर्म कर्तव्य है, इसीलिए तो सभी के अलग अलग धर्म है, प्रथक प्रथक कर्तव्य है। इसलिए हम यहां विद्यार्थी जीवन का क्या धर्म है ?  इसको जानने के लिए आवश्यक कदम उठाने जरूरी है। इसलिए संस्कृत का एक श्लोक है " काक चेष्ठा, बको ध्यान्म, श्वान निद्रा तथैव च, अल्पहारी, गृहत्यागी विद्यार्थिनः पंच लक्षणम" , ये विद्यार्थियों के लक्षण बताएं गए है, परंतु ये धर्म नही है, हां धर्म से मिलते  झूलते जरूर है। 
इसमें हम विद्यार्थियों के स्वधर्म के बारे में चर्चा करेंगे और श्रीमद्भागवत गीता के दूसरे अध्याय के 47 वे श्लोक में लिखा "कर्मन्यवाधिकारसते मा फलेशु कदाचन" इसके अर्थ ये है कि इस दुनिया में आपके स्वधर्म के अनुसार आपको अपना कर्तव्य चुनने का पूरा अधिकार है लेकिन फल का नही है। जब किसी को भी अपने कार्य चुनने के अधिकार प्राप्त है तो फिर कैसे कोई कह सकता है कि मेरे भाग्य ने साथ नहीं दिया , जबकि भाग्य तो आपके कर्मों का कलेक्शन है। यहां गीता में श्री कृष्ण अर्जुन को कहते है कि तुम्हे अपना कर्तव्य चुनने का पूरा अधिकार है, इसी प्रकार अगर आप विद्यार्थी हो और अर्जुन के रूप में कर्म करने के लिए कन्फ्यूज्ड हो तो तुम्हे ये ज्ञान मिलना चाहिए कि आपको अपना कर्म ध्यान से चुनना होगा और एक बार कर्म चुनने के बाद आपको अपना कृत साधांत भी तय करना होगा,
 कि उस इष्ट साधन्त को पूरा करना है। विद्यार्थी जीवन, वैसे हमारे ब्रह्मचर्य आश्रम में आता है तो इसमें पहला कार्य हो गया आपका ब्रह्मचर्य का पालन, कोई भी विद्यार्थी चाहे वो विश्व में कहीं पर भी या किसी भी देश में रहते हो, उन्हे ब्रह्मचर्य का पालन करना ना केवल उनके खुद के लिए जरूरी है बल्कि इस धरती के लिए भी सही है। वैसे एक युवा होने के नाते उसके युवा धर्म के नौ महत्वपूर्ण कंपोनेंट्स है जो हर युवा को पालन करना चाहिए, चाहे वो विद्यार्थी हो, चाहे वो नौकरी में हो, चाहे वो किसी व्यवसाय में हो या वो कृषि या पशुपालन या फिर कोई अन्य सेवा का कार्य कर रहा हो, जो निम्न प्रकार से है।
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पहला:  ब्रह्मचर्य का पालन करना इसमें वैसे भी ये बाकी के छह अंग भी दिखते हैं। श्रीमद्भागवत गीता के 17वे अध्याय के 14 वें श्लोक में श्री कृष्ण ने अर्जुन को शरीर तप के बारे में बताया है कि मनुष्य को अपने शरीर को तप के द्वारा साधना चाहिए जिससे शरीर सात्विकता की तरफ अग्रसर हो सके, अपने ओज का संवर्धन कर सके, अपने खाने पीने में सात्विकता का ध्यान रखने का प्रयास करना चाहिए, विचार में शुद्धता, श्रृंगार आदि क्रिया से दूर रहना, नशे से दूर रहना, पौष्टिक आहार, अश्लील साहित्य, वीडियो अथवा पिक्चर से दूरी, अश्लील बातचीत से भी दूरी बना कर रखनी चाहिए।  एक विद्यार्थी को तपस्या से शरीर को शुद्ध रख कर जीवन जीने की कला सीखनी चाहिए।

दूसरा:  युवाओं का धर्म है कि वो अपने तन और मन को मजबूत और स्टेबल करना सीखे।
तीसरा:  शिक्षा लेते व्यक्त सभी प्रकार के मानसिक विचलन को त्यागने का संकल्प लेकर, कर्मकांडी अंधविश्वास से दूर रहे। समय का उपयोग ज्ञान प्राप्त करने में करे, क्योंकि ब्रह्मचर्य आश्रम बना ही ज्ञान प्राप्त के लिए है।
चौथा:  मानसिक संकीर्णता को छोड़ कर ब्रॉड माइंडेडनेस अपनाए जिससे युवाओं का विकास अंतर्राष्ट्रीय स्तर का हो सके। अपना मन विश्व स्तरीय सोच का बनाएं।
पांचवा:  भारतीय संस्कृति के संरक्षण की जिम्मेदारी लेने में पहल करें।

छटा:  राष्ट्र प्रथम के सिद्धांत का पालन करना सीखे। अपनी छोटी छोटी इच्छाओं को त्यागकर राष्ट्र और समाज को सशक्त करने के लिए परिश्रम करें।
सातवां:  अपनी ऊर्जा का सदुपयोग करें, अपनी ऊर्जा किसी उपद्रव, किसी मातृ शक्ति के अपमान, किसी राष्ट्रीय संपत्ति को नुकसान पहुंचाने में, भ्रष्ट आचार में ना लगाएं। अपनी ऊर्जा को तर्कशील बनने में लगाएं। आठवां:  विद्यार्थियों को प्रश्न पूछने के लिए सदैव तत्पर रहना चाहिए, क्योंकि आप ही हो, जो सब प्रकार के झंझटो से दूर हो, सभी प्रकार की बेईमानी से दूर हो। इसलिए अधिक से अधिक प्रश्न करना सीखो।

नौवां:  विद्यार्थियों का धर्म है कि वो निर्भीक बनना सीखें, ताकि सभी से खासतौर पर राजनेताओं से और ब्यूरोक्रेट्स से प्रश्न पूछने की हिम्मत दिखा सके। यही तो विद्यार्थियों का धर्म है।
मैं यहीं कहना चाहता हूं कि सभी विद्यार्थी अपने जीवन को जागरूक, सात्विक, स्फूर्तिवान, बलवान, एकाग्र, मन तन से स्थिर तथा बुद्धि को भी स्टेबल करने का प्रयास करे ताकि उनका जीवन स्वस्थ वा समृद्ध और सफल बन सके।
जय हिंद, वंदे मातरम
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