सभी विद्यालयों में एक पीरियड मेडिटेशन का भी होना चाहिए, जिससे विद्यार्थियों के भीतर से -----
Updated: Jul 14, 2025, 12:01 IST
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नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
सभी विद्यालयों में एक पीरियड मेडिटेशन का भी होना चाहिए, जिससे विद्यार्थियों के भीतर से -----
वर्तमान समय में बढ़ते तनाव वा दिखावे की जिंदगी को संतुलित करने के लिए एक कक्षा मेडिटेशन की होने की भी दरकार है। प्राथमिक विद्यालयों से ही ये विषय शुरू करने की जरूरत है, क्योंकि दिन पर दिन विद्यार्थियों में एग्रेशन बढ़ता ही जा रहा है, जिसकी वजह से क्रोध वा असहनशीलता का आना भी स्वाभाविक ही है। हम अपनी शिक्षण प्रणाली में नए नए विषय तो शामिल कर रहे है, परंतु मानव मन को संतुलित तथा शांत रखने के लिए कहीं पर कोई विचार नहीं है। वैसे तो हमारे यही स्कूल्स में सभी विषयों के साथ एक विषय शारीरिक शिक्षा का भी जुड़ा हुआ है, जिसे अंग्रेजी में फिजिकल एजुकेशन का पीरियड कहा जाता है, भले ही वो नाममात्र के लिए ही हो। आज समय को देखते हुए मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की आवश्यकता है,
वर्तमान समय में बढ़ते तनाव वा दिखावे की जिंदगी को संतुलित करने के लिए एक कक्षा मेडिटेशन की होने की भी दरकार है। प्राथमिक विद्यालयों से ही ये विषय शुरू करने की जरूरत है, क्योंकि दिन पर दिन विद्यार्थियों में एग्रेशन बढ़ता ही जा रहा है, जिसकी वजह से क्रोध वा असहनशीलता का आना भी स्वाभाविक ही है। हम अपनी शिक्षण प्रणाली में नए नए विषय तो शामिल कर रहे है, परंतु मानव मन को संतुलित तथा शांत रखने के लिए कहीं पर कोई विचार नहीं है। वैसे तो हमारे यही स्कूल्स में सभी विषयों के साथ एक विषय शारीरिक शिक्षा का भी जुड़ा हुआ है, जिसे अंग्रेजी में फिजिकल एजुकेशन का पीरियड कहा जाता है, भले ही वो नाममात्र के लिए ही हो। आज समय को देखते हुए मेंटल हेल्थ पर ध्यान देने की आवश्यकता है,
इसीलिए एक विषय तो मन को लेकर भी होना चाहिए, जिसमें शिक्षा के साथ साथ व्यवहारिक एक्सरसाइज़ भी हो। जीवन में सभी व्याधियां तो मानसिक तक्लीफ तथा असंतुलन से ही शुरू होती है और इसी पर हम ध्यान देने की बजाय छुपाने की कोशिश करते है। जीवन में बढ़ती परेशानियां, बढ़ते तनाव, बढ़ती आकांक्षाएं, बढ़ती गैरजरूरी इच्छाएं भी जीवन को असंतुलित करने के लिए काफी है। हमारे यहां अधिकतर विद्यालयों में ऐसी सभी एक्सरसाइज़ को प्रातः प्रार्थना के समय ही निपटने की कोशिश करते है, जबकि ये बिल्कुल लाभकारी नहीं है क्योंकि बच्चे स्कूल आने से पहले नाश्ता या भोजन करके ही आते है और आने के साथ भरे पेट में उन्हें व्यायाम तथा पी टी जैसी प्रैक्टिस कराई जाती है जिससे उन्हें असहज महसूस होता है। ये दोनों प्रैक्टिस चाहे शारीरिक व्यायाम हो या फिर मन की शांति या मन को नियंत्रित करने की प्रैक्टिस हो, इन्हें या तो रिसेस से पहले वाले पीरियड में कराएं या फिर पूर्ण छुट्टी होने से पहले वाले पीरियड में कराएं, क्योंकि उस समय अधिकतर विद्यार्थी ऐसे व्यायाम करने में कंफर्ट महसूस करते है तथा उस समय उनका पेट भी कुछ हद तक खाली ही होता है। कई बार मुझे लगता है कि यहां हर व्यवस्था केवल मात्र दिखावे के लिए ही होती है, इसी लिए ये उतनी प्रभावी नहीं हो पाती है। साथियों,
मै ये विषय इसलिए ले रहा हूँ क्योंकि अभी चार दिन पहले ही हरियाणा के हिसार जिले में दो विद्यार्थियों द्वारा अपने ही गुरु पर कातिलाना हमला किया गया, जो निहायत की निंदनीय है, और दुखदाई है। किसी ऐसे गुरु जो वास्तव में गुरु कहलाने के लायक थे और हर बच्चें को जीवन में कुछ बनाना चाहते थे, उनपर भी ऐसा हमला होना और उनकी जान चली जाना ,वास्तव में ही चिंता तथा चिंतन का विषय है। हमारी नई पीढ़ी किस दिशा में जा रही है, नई पीढ़ी में इतना क्रोध क्यों है, इतनी मानसिक अस्थिरता क्यों है, इस पर सरकार तथा शिक्षाविदों को चिंतन मंथन करने की जरूरत है। ये ऐसी घटना है जिसपर पेरेंट्स को भी चिंतन मनन करने की जरूरत है। जो बच्चें अभी किशोरावस्था में है, उनपर अधिक ध्यान देने की जरूरत है ताकि नई पीढ़ी को गलत दिशा में जाने से रोका जा सकें। अगर कुछ हद तक देखा जाए तो ये हरकते इसलिए भी बढ़ रही है क्योंकि समाज का ताना बाना टूट रहा है, पेरेंट्स गैरजिम्मेदार हो गए है, दूसरा बच्चों के प्रति मातापिता का अतिप्रेम भी जिम्मेदार है। हम अपने ही परिवार में, अपने घरों में अपने बच्चों की दिनचर्या पर ध्यान नहीं दे पा रहे हैं। लोगों की इच्छाएं इतनी बढ़ गई है कि वो कुछ ही दिनों में मालामाल बनना चाहते है, सभी एक दूसरे से आगे निकलने की होड में लगे हुए है, इसलिए अपने ही बच्चों, जिनके लिए वो इतना धन इक्कठा करना चाहते है कि सभी जायज नाजायज इच्छाएं पूरी की जा सकें।हम सभी जानते है कि इच्छा पूर्ति की कोई सीमा नहीं है,
इसका कोई अंत नहीं है लेकिन फिर भी हम सभी भौतिक पदार्थों में ही जीवन का सुख ढूंढते है। साथियों, अगर ऐसा होता तो फिर तो कोई आई ए एस बनने, आई पी एस बनने के बाद आत्महत्या नहीं करते, कोई धनवान बीमार नहीं होता, कोई पैसे वाले अवसाद में नहीं आते या फिर बड़े से बड़े पद पर बैठने वाले भयभीत ना होते। जीवन में सहज भाव तभी आता है जब हम अपनी भौतिक इच्छाओं को कम करते है, मन को साधने लगते है, मन को स्थिर करते है, अपने मोह को त्यागते है, अपनी वासना को त्यागते है,तभी हम शांत होने के रास्ते पर चलने लगते है। जीवन में कितना भी भौतिक संसाधन इक्कठे हो जाए, परंतु अगर ये शरीर या मन स्वस्थ्य नहीं है तो सब कुछ बेकार लगता है। मन को सशक्त करना बेहद जरूरी है। जैसे हमने स्कूली शिक्षा के साथ शारीरिक शिक्षा को जोड़ा है उसी प्रकार हमे विद्यालयों में मानसिक शिक्षा पर भी ध्यान देना होगा, तभी हम स्वस्थ नागरिक बना सकते है। एक समय था जब मानसिक रोग विशेषज्ञ के पास कोई एक दो ही पेशंट मिलते थे परंतु आज सबसे ज्यादा रोगी साइकैट्रिस्ट के पास मिलते है। हर कोई परेशान है, भयभीत है, असहज है, तनाव में है, दबाव में है, अशांत है, सहनशक्ति नहीं है, छोटी छोटी बातों पर क्रोधित होना आम बात हो गई है, किसी की बात को सहन नहीं कर सकते है, मातापिता के साथ उन्हीं के बच्चे झगड़ा करते है,
शिक्षक के समझाने पर भी बुरा मानते है, ये सभी लक्षण मानसिक कमजोरी के है, मानसिक असंतुलन के है। इन्हें छुपाए नहीं, इन्हें चिकित्सकों को दिखाएं, अन्यथा आने वाले समय में ये एक बड़ी त्रासदी बन जाएगी। अभी तक तो हम विदेशों के स्कूलों में विद्यार्थियों को गोलियां चलाते हुए किस्से सुनते थे, वो समय दूर नहीं कि ये सभी हरकते भारत में भी होना आम बात बन जाएगी। देश के हर प्राथमिक विद्यालय से लेकर वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालयों तक मन के संतुलन के लिए मेडिटेशन कक्षा लगाना बेहद जरूरी हो गया है। ये मेडिटेशन एक सब्जेक्ट है, जिसे विषय के रूप में लागू करना चाहिए और संपूर्ण भारत में लाने की जरूरत है। इसके लिए सभी शिक्षण संस्थान मुखिया, पेरेंट्स तथा शिक्षकों को ध्यान पर ध्यान देने की आवश्यकता है।
जय हिंद, वंदे मातरम
लेखक
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