"टाइम फॉर वाईन" यह शराब की बड़ी बड़ी दुकानों के नाम है, ये क्या संदेश देते है। इन्हे भी जाने देश की युवा शक्ति
लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर ने बताया कि भारतीय संस्कृति की सबसे महान है, जिसे ऋ षि मुनियों की संस्कृति कहा जाता है, इसे ऋ षि, महाऋषियों की धरती कहा जाता है, जिस धरती पर विभिन्न धर्मों ने जन्म हुआ, जिस धरा ने बेहद कारगर शास्त्र इस धरती को दिए, जिसमें वेद, उपनिषद, श्रीमद्भागवत गीता, श्रीरामचरितमानस, महाभारत, जैसे महान ग्रंथ दिए हैं। जहां कहा जाता था कि संध्या का समय हो गया, प्रार्थना का वक्त हो गया, जहां कहा जाता था कि योग का वक्त हो गया, जहां कहा जाता था कि यज्ञ का वक्तहो गया, और कहा जाता था, कि सत्यनारायण की कथा का समय हो गया, जिस धरती के लोग कहते थे कि राम नाम जपने का समय हो गया, जहां शाम के वक्त हर घर में महापुरुषों की कहानियां सुनने सुनाने का समय होता था।
उसी धरती के बड़े बड़े शहरों , जिसे ये कह कर प्रचारित किया जाता है कि ये मिलेनियम सिटी है, ये मेट्रोपोलिटन सिटी है, ये महानगर है, उन महानगरों में शराब के मॉल खुल गए हैं और उनका नाम देखकर चिंता होती है घबराहट होती है। उन बड़े बड़े शराब के महलों पर लिखा हुआ है टाइम फॉर वाईन, जैसे वाइन कोई धार्मिक या आध्यात्मिक अनुष्ठान है जिसमे जाना बहुत जरूरी हैं। मुझे चिंता होती है, भारतीय देश के युवाओं, किशोरों, तथा छात्रों की जिंदगी को लेकर, कि उनको कैसे नशे से बचाया जाए। हमारे यहां किसी के पास सशक्तयुवा भारत का विजन नही है।
एक तरफ हम आध्यात्मिकता, गुरुकूलों, श्रीमद्भागवत गीता की बात करते है, दूसरी तरफ हम मुख्य सड़कों पर, मुख्य चौक चौराहों पर शराब की दुकानें खोल रहे है और उन पर ऐसे ऐसे सलोगन लिख रहे है जो सीधे तौर पर किसी भी युवा को अपनी ओर आमंत्रित करते हैं।
टाइम फॉर वाईन, इसका क्या अर्थ है, मुझे तो ज्यादा अंग्रेजी नही आती है, कुछ लोग बहुत बड़े अंग्रेज है जो इसका अर्थ बता सकते है, मुझे तो बस ये समझ आता है कि वो दुकानें कह रही है कि ये वक्त शराब पीने का है, आओ और शराब खरीदें और शराब का सेवन करें। ये मुझे चार्वाक दर्शन की याद दिलाते है जिसे हम नास्तिक दर्शन मानते है और भारतीय संस्कृति में उसे कोई महत्वपूर्ण स्थान नही देते हैं। लेकिन इन दुकानों के नाम तो चार्वाक दर्शन की तरफ ही लेकर जा रहे हैं। जो कहते थे, "यावत जीवेत सुखम जीवेत, ऋण कृतवा घी पीबेत"
अर्थात जब तक जीवों सुख से जीवों, और ऋण लेकर घी पीयो, अर्थात अब घी की जगह शराब हो गई है। यही तो ये बड़ी बड़ी दुकानें भी संदेश दे रही हैं। आप कही भी नजर दौड़ा लो, आपको कहीं नहीं लिखा मिलेगा, कि टाइम फॉर योग, टाइम फॉर मेडिटेशन या फिर टाइम फॉर कैरेक्टर बिल्डिंग, या फिर टाइम फॉर श्रीमद्भागवत गीता, या फिर ये टाइम व्यायाम का है, कुश्ती का है, दौड़ने का है, ये कही भी नही मिलेगा। मेरी आपत्ति यही है कि क्यों हम मुख्य सड़कों पर शराब की दुकानें खोलने की अनुमति देते है, क्यों हमारी अथॉरिटी मुख्य चौराहों पर शराब की दुकानें खोलने की परमिशन प्रदान करते हुए हिचकते नही है। फिर एक और मजाक कि नशे के खिलाफ अभियान चला चला कर पैसों की बर्बादी होती चली जा रही हैं। बहुत अच्छा है कि हम नशे के विरुद्ध अभियान चलाएं ,परंतु शराब की दुकानों को भी तो बंद करो, अगर नही कर सकते हो तो कम से कम उनका स्थान तो बदलना चाहिए तथा उन पर लिखे हुए नामो पर भी अंकुश लगाना चाहिए। अब समय आ गया है कि हमे शराब के नशे को कंट्रोल करने के लिए इस पर एक टास्क फोर्स बनाने की जरूरत है क्योंकि मैं जो बात कर रहा हूं वो हमारे बहुत ही महान संन्यासी महाऋषि स्वामी दयानंद जी ने संसार के कल्याण के लिए कही थी, स्वामी जी ने कहा था कि नशे से ही जीवन में सभी प्रकार की बुराइयां आती है। आज समाज में जो भी अपराध पनप रहे है उसका मुख्य कारण नशा है। मेरा ऐसा मत है कि शराब इसकी शुरुआत हैं, यही से नशे की शुरुआत होती हैं। शहरी वा ग्रामीण क्षेत्र के युवा अलग अलग तरीके से नशे की शुरुआत करते है, जैसे ग्रामीण क्षेत्र में युवा या किशोर हुक्के या फिर बीड़ी से शुरू करते है, इसके विपरित शहरी क्षेत्र में बच्चे सिगरेट से अपने नशे की शुरुआत करते हैं। इसके बाद युवाओं तथा किशोर छात्रों शराब को नशे के रूप में उपयोग करते हैं। शराब तो आजकल हमारे यहां सभी विवाह समरोह का हिस्सा बन गया हैं। जीवन में जो नशे की रफ्तार शुरू होती है वो शराब से होती हैं। इसलिए इस शराब रूपी नशे को रोकने के लिए प्रयत्न करने की जरूरत हैं। हम भारत जैसे देश जिसमें आध्यात्मिकता तथा योग ने जन्म लिया हो, वहां पर नशे के रूप में शराब को इतनी आसानी से स्वीकार कर रहे हैं जैसे कि शराब तो हमारे संस्कारों में घुले मिले हैं। ऐसी घटनाओं के विरुद्ध सख्त कदम उठाने की जरूरत हैं। शराब की दुकानों पर शराब के लिए सीधा आमंत्रण दिया जा रहा हैं। इस पर निश्चित तौर पर प्रतिबंध लगना चाहिए, जिससे युवाओं , किशोरों को संस्कारित किया जा सकें। हम संस्कारों की बात तो करते है, हम वेद, उपनिषद की बात तो करते है, हम श्रीमद्भग्वत गीता की पढ़ाई की बात तो करते है लेकिन शराब की दुकानें सीधा युवाओं को शराब पीने के लिए आमंत्रित कर रही है, इसे कोई नही रोकने की बात करते हैं। नशे को बेच कर कभी भी कोई देश महान नही बन सकता है, कोई भी देश नशे से रेवेन्यू कमाने की सोचता है वो कभी सशक्त नही बन सकता हैं। आओ मिलकर इन बुराइयों से देश को मुक्त कराएं और आगे बढ़ें।
जय हिंद, वंदे मातरम