tips for students: हर विद्यार्थी अपना भाग्य खुद लिखता है और रोज लिखता है
किसी भी विद्यार्थी का भविष्य, कर्म पर निर्भर करता है
mahedra india news, sirsa
नेहरू युवा केंद्र हिसार के उपनिदेशक डा. नरेंद्र यादव ने बताया कि कितनी विचित्र परिस्थितियां है कि हम अपने भविष्य के बारे में कोई निश्चित जानकारी नही रखते है, कोई कहता है कि बेमाता बच्चो का भाग्य लिखने, उसके जन्म के छठे दिन आती है, कोई कहता है कि हरेक का भाग्य का लेख पहले से ही लिख दिया जाता है, कोई कहता है कि किस्मत का लेख अलग ही होता है, कोई कहता है कि मेहनत से सब कुछ मिलता है, कुछ लोग कहते है कि भविष्य मेहनत और किस्मत का मिलझुला परिणाम है।
तुम्हारे कर्म के आधार पर ही आपको फल मिलता है
लेकिन भगवान श्री कृष्ण श्रीमद्भगवत गीता में कहते है कि तुम्हारे कर्म के आधार पर ही आपको फल मिलता है और जैसा कर्म किया जाता उसके अनुसार ही फल मिलता है यानी भाग्य उसके अनुसार ही बनता है। यहां मैं ये कहना चाहता हूँ कि चाहे कोई भी कुछ भी कहे लेकिन मैं श्रीमद्भगवत गीता को मानने वाला हूँ और यही मानता हूं कि किसी भी बच्चे का भविष्य या किसी भी विद्यार्थी का भविष्य, कर्म पर निर्भर करता है।
कर्म नहीं करोगे तो असफलता मिलेगी
मेहनत करोगे तो फल पयोगे और कर्म नहीं करोगे तो असफलता मिलेगी। हम कई तरह के भ्रम में क्यों फंसे रहते है यह हम खुद भी नही जानते है। कोई हमे कह देता है सब किस्मत का खेल है, कोई कहता है कि सफलता में दोनों किस्मत और मेहनत दोनों काम करती है, कुछ कहते है कि जैसा बोओगे वैसा ही काटोगे। मैं आज तक यह नही समंझ पाया कि सत्य क्या है। कुछ साधु संत , महात्मा, मौलवी, फादर कहते है कि कुछ उपाय करने से आपके कर्मों के फल को बदला जा सकता है, कोई कहता है कि ये पैसा चढ़ाने से, कोई मन्नत मांगने से, कोई व्रत करने से भविष्य बदल सकता है, या आपकी किस्मत बदली जा सकती है इसका अर्थ ये हुआ कि जो श्रीमद्भगवत गीता में लिखा हुआ है वो सही नही है।
जाने की क्या सत्य है
उन्होंने बताया कि जैसा कर्म करोगे वैसा फल मिलेगा, उसका भी क्या होगा, किस्मत में जो लिखा हुआ है उसका क्या होगा। अगर ऐसे ही भविष्य बदला जा सकता है फिर तो न मेहनत करने की जरुरत है और न ही किस्मत के खेल की कोई सच्चाई है, फिर तो दर्शन करो, कुछ रिश्वत चढ़ाओ, कहीं पर पैसा चढ़ाओ, तो किसी की भी भाग्य बदला जा सकता है। अब हम किस से ये जाने की क्या सत्य है हम क्या करे और क्या न करे, ये कुछ समंझ नही आता है लेकिन यहां एक बात पक्की है कि श्रीमद्भगवत गीता में भगवान श्री कृष्ण ने कहा है कि कर्म के अनुसार ही किसी को भी फल मिलता है। अगर मेहनत नही करोगे तो बिल्कुल सफलता नही मिलेगी, हम अपना भविष्य खुद लिखते है और रोज लिखते रहते है।
जीवन मे कर्म के अनुरूप ही फल मिलते है, जैसे जैसे कर्म आप करते है उसी की सहाई से अपना भविष्य लिखते है और अपनी मेहनत से रोज ही अपना भविष्य लिखने का कार्य करते है।
किस्मत खराब होने का नाम दे दिया गया
यहां मैं हर विद्यार्थी को ये बताना चाहता हूँ कि कुछ धूर्त लोगो ने अपने निक्कमेपन को किस्मत का नाम दे दिया, कुछ कर्म न करने वालो ने इसे भाग्य का नाम दे दिया।यहां अपने आप को मेहनत न करने के पाप से बचाने के लिए ही किस्मत खराब होने का नाम दे दिया गया, और असफलता को , किस्मत या भाग्य में यही लिखा होने का कारण बता कर अपने आप को व सभी अपनो को धोखा दिये जाने का एक ढोंग ढूंढ लिया गया। और इसी का फायदा उठाने के लिए बहुत बाबा आ गए, बहुत से शॉर्टकट्स आ गए, पैसे के बदले भविष्य बदलने का खेल चल गया, तथा इसमे भय का खेल चालू कर दिया , कुछ ज्यादा पाखंडी लोगो ने लोगो की असफलता के भय को परख कर , उनके लालच को समंझ कर , उपाय बताने शुरू कर दिया और यहां से शुरू हो गया अंधविश्वास का खेल।
जो कर्म के आधार पर फल का विधान था
लोगो ने कर्म न करके सबकुछ पाखंड से प्राप्त करने की जुगत लगाने का खेल रच दिया और उस खेल में सभी निक्कमे व अंधविश्वासी लोग फंसते चले गए। जो कर्म के आधार पर फल का विधान था उसी को बदल कर किस्मत आधारित बना दिया। जब कोई भी व्यक्ति मेहनत नही करता है या फिर मेहनत तो करता लेकिन बिना सजगता व जागरूकता के करता है तो वह अपनी असफलता का ठीकरा किस्मत या भाग्य के सिर फोड़ देते है। परिश्रम करो परन्तु उसे भी समय, परिस्थिति,जरूरत के अनुसार किया जाए तो उसका फल बहुत ही जल्दी मिलता है।
लेकिन कभी भी आपकी मेहनत बेकार नही जाती। परिश्रम का पारिश्रमिक जरूर मिलता है। इसलिए मैं यहां सभी विद्यार्थियों को ये कहना चाहता हूँ कि किस्मत या भाग्य भरोसे मत बैठो , अंधविश्वास में मत फँसो, किसी के बहकावे में न आये, हर व्यक्ति के भीतर कहीं न कहीं द्वेष, ईर्ष्या, परिस्पर्धा, समय की बेकद्री कूट कूट कर भरी हुई है कोई भी किसी के बच्चे को सफल होते हुए नही देखना चाहता , बहुत ही कम लोग है जो सभी बच्चो को सफल बनते देखना चाहते है। हम मेहनत के बदले , ऐसे लोगो के चक्र में पड़ जाते है जो खुद असफल है , खुद निक्कमे है , जो खुद पाखंडी है, दुनियाभर के दुराचार उन्हौने किये है फिर वो एकदम कैसे सब के भविष्य वक्ता बन जाते है और लोग आमतौर पर आसान रास्ते ढूंढते है जहां मेहनत न करनी पड़े । वो खुद तो उसमे फंसते है और दूसरो को फंसाने के लिए उन पाखंडियों के एजेंट बनकर लोगो को अंधविश्वास में डालते है।
जब हम भगवत गीता को मानते है तो फिर उसमे लिखे कर्म के सिद्धान्त को भी मानना चाहिए। ये सब लोग मोह, लोभ, लालचवश करते है, साथियों , प्रिय विद्यार्थियों हम जब छोटे थे तो हमारी दादी कहती थी कि लोभी के गांव , बगड़ा यानी पाखंडी भूखा नही मरता। ये सभी पर लागू होती है और हम कहीं न कहीं ऐसे लालच या लोभ में फंस कर अपना बड़ा नुकसान कर लेते है। मैं फिर सभी विद्यार्थियों को आह्वान करता हूँ कि आपका भविष्य केवल और केवल मेहनत से ही लिखा जाता है और अपने भविष्य की एक एक रेख आप खुद लिखते हो , और यह आपकी मेहनत की सहाई व सजगता की कलम से लिखा जाता है तथा रोज के जो आप कर्म करते हो , जितने बोध के साथ करते हो , उतना ही बेहतरीन आपका भविष्य लिखा जाता है। कर्म करो , मेहनत करो और फल की चिंता मत करो।
लेखक, डा. नरेंद्र यादव, उपनिदेशक, नेहरू युवा केंद्र, हिसार व राष्ट्रीय जल पुरस्कार विजेता