हमें सरकारी विद्यालयों को बचाने के लिए फिर ज्योतिबा फुले तथा सावित्रीबाई फुले जी की जरूरत

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ डेवलपमेंट मेंटर
विद्यालय चाहे राजकीय हो या निजी हो, सभी को संचालित करने के लिए संवेदनशीलता तथा मेहनत की आवश्यकता होती है। मेहनत, ईमानदारी, सच्चाई, न्याय, पेशंस, निष्पक्षता, निर्भीकता, समय निष्ठा, दयाभाव जीवन में तभी आती है, जब हमारे पास संवेदना होती है। जब कोई भी व्यक्ति किसी दूसरे व्यक्ति के उत्थान के बारे में सोचता है तो उसके पीछे उस इंसान की संवेदना कार्य कर रही होती है। अगर किसी का भला करना है, चाहे वो शिक्षा देने का मामला हो, चाहे वो स्वास्थ्य से संबंधित कार्य हो, किसी के साथ न्याय करने की बात हो, किसी के साथ निष्पक्ष व्यवहार करने की बात हो तो उसके पीछे हमारी संवेदना काम करती है। अगर हम अपने सभी बड़े बड़े सामाजिक रिफॉर्म्स की बात करूं, चाहे वो महान युवा हृदय सम्राट स्वामी विवेकनंद जी की बात हो, चाहे महान समाजसुधारक महर्षि स्वामी दयानंद जी हो, चाहे राजाराम मोहन राय जी हो, चाहे ज्योतिबा फुले जी हो, चाहे शिक्षा की देवी सावित्रीबाई फुले जी हो, उन्हीं की संवेदना की वजह से भारत में अधिकतर कुरीतियों का जड़ से उन्मूलन किया गया।
देश में पहला कन्या विद्यालय महाराष्ट्र में सावित्रीबाई फुले जी ने शुरू किया। ऐसा नहीं है कि समाज में फैली कुरीतियां एक बार खत्म हो जाए तो वो पुन: नहीं आएगी या किसी दूसरे रूप में नहीं आएगी। जैसे जैसे समय बीतता है तो कुछ सामाजिक, आर्थिक, धार्मिक, राजनैतिक समस्याएं आती रहती है, कुछ इनसे जुड़ी हुई रूढ़ियां भी बनती रहती है, उनका उन्मूलन भी बहुत से महान तथा क्रांतिकारी सामाजिक, आर्थिक, तथा राजनैतिक सुधारक समय के साथ साथ करते रहते है। इस लिए सदैव ऐसे क्रांतिकारी तथा ईमानदार लोगों का समाज में स्वागत होना चाहिए। क्या महर्षि स्वामी दयानंद जी द्वारा समाज में फैली धार्मिक पाखंड को खत्म करने के लिए पाखंड खंडिनी पताका नहीं फहराई थी(
लोगों को काफी हद तक जागरूक भी किया था, परंतु क्या अब हम पाखंड से मुक्त हो गए, एक बार तो जरूर हो गए थे, लेकिन समय के साथ साथ पुन: वो पाखंड आ गए। इसीलिए इसको फिर उन्मूलन करने की जरूरत हैं। अगर ऐसे सुधारक नहीं हुए तो समाज सभी प्रकार से विकृत होने लगेगा। हर प्रकार की मर्यादाओं को स्थापित करने के लिए ही श्रीराम जी इस धरा पर आए थे, असुरों का नाश तथा सुरों की स्थापना करने के लिए ही तो श्रीराम को जन्म लेना पड़ा था, इसी प्रकार भगवान श्रीकृष्ण द्वारा भी अनैतिकता तथा अधर्म के नाश के लिए जन्म लिया तथा महाभारत जैसे युद्ध से विकृतियों का उन्मूलन हुआ। मैं यहां महान समाज सुधारक ज्योतिबा फुले तथा सावित्रीबाई फुले जी के जीवन को स्त्री शिक्षा के लिए किए गए बड़े कार्यों के लिए याद कर रहा हूँ क्योंकि उन्होंने ही इस देश में पहले कन्या विद्यालय की स्थापना की थी। वर्तमान में राजकीय विद्यालयों में विद्यार्थियों की कम संख्या को देखते हुए मुझे यह कहने में कोई गुरेज नहीं है कि इसकी जागरूकता के लिए हमे पुन: सावित्रीबाई फुले जैसे समाजसुधारको तथा चिंतकों की जरूरत हैं। राजकीय स्कूल्स का इन्फ्रास्ट्रक्चर बेहतरीन स्तर के है, बड़े बड़े खेल के मैदान है, डिजायर्ड क्वालिफिकेशन तथा एच टेट क्वालीफाई है, फिर भी राजकीय विद्यालयों में विद्यार्थियों की संख्या कम है या किसी किसी स्कूल में विद्यार्थियों की संख्या ना के बराबर है। इसका कारण यही है कि हमारे राजकीय शिक्षकों में संवेदनशीलता तथा जवाबदेही की कमी है। एक समय वो था जब स्कूल्स की संख्या बेहद कम थी, लोग अपने बच्चों को पढ़ाने की बजाय खेत के कार्य, मजदूरी या घर के कार्यों में अधिक शामिल रखते थे तो कम ही बच्चें स्कूल्स जा पाते थे, लेकिन उस समय के राजकीय टीचर्स गांवों में घर घर जाकर बच्चों को विद्यालय भेजने के लिए मातापिता को प्रेरित करते थे। ऐसे ऐसे सिन्सियर शिक्षक थे जो बच्चों को स्कूल्स में ही नहलाने का कार्य भी करते थे, जो बच्चें नहाकर नहीं आते थे, अर्थात बच्चों को विद्यालयों के प्रति आकृषित करने के लिए विद्यालयों का माहौल सुंदर होता था। मैं ये बहुत ही जिम्मेदारी के साथ कह सकता हूँ कि जो बच्चें राजकीय विद्यालयों में पढ़ते है उनका मैथेमेटिक्स, साइंस के विषयों में विशेष पकड़ होती है। केवल इंग्लिश के कारण ही बच्चों को अभिभावक निजी विद्यालयों में भेजते है, इसके अलावा बच्चों के व्यक्तित्व विकास हेतु एक्स्ट्रा कैरीकुलर एक्टिविटीज के लिए भी निजी विद्यालयों की ओर मातापिता का आकर्षण बढ़ता हैं। जैसे जैसे समय बीतता है, नई नई समस्याओं का सामना समाज को करना पड़ता है। इसी लिए इन सभी समस्याओं के समाधान के लिए ही हमे सुधारकों की जरूरत पड़ती है। शिक्षा के क्षेत्र में और विशेषकर महिला शिक्षा तथा स्त्रियों के सामाजिक उत्थान के लिए जो कार्य समाज सुधारक माननीय ज्योतिबा फुले जी तथा सावित्रीबाई फुले जी ने किया, वो आज भी हमारे लिए प्रेरणा की बात है। निजी विद्यालयों के बराबर राजकीय विद्यालयों की शिक्षा के स्तर को खड़ा करने के लिए हम आज सावित्रीबाई फुले जैसी महान शिक्षिका तथा सुधारकों की जरूरत है और उनके सहयोग कर लिए तथा सावित्रीबाई फुले जी के साथ कंधे से कंधा मिलाकर चलने व उन्हें सशक्त करने वाले माननीय ज्योतिबा फुले जैसे महापुरुषों की जरूरत है और शिक्षकों की आवश्यकता है। अगर समाज बिना सुधारकों के ही होगा तो फिर कोई समाज को बचा नहीं पाएगा। चाहे समाज में विकृति हो, चाहे राजनीति में विकृति हो, चाहे नैतिकता का पतन हो, चाहे आर्थिक विकृति हो, तो उन्हें दूर करने के लिए हमे महर्षि स्वामी दयानंद जी, स्वामी विवेकानंद जी, शहीद भगत सिंह, राजाराम मोहन राय, ज्योयबा फुले जी, सावित्रीबाई फुले जैसे महान सुधारकों की आवश्यकता होती है और समाज को भी अपने सामाजिक प्रहरियों को समाज में स्थापित करने के लिए आगे आने की जरूरत है। शिक्षा के स्तर को सुधारने के लिए कुछ स्टेप्स है जिन्हें अपनाने से निश्चित तौर पर हम अपने शिक्षण संस्थानों के ढांचों को सशक्त कर पाएंगे, जैसे:
1. समाज में महर्षि स्वामी दयानंद, ज्योतिबा फुले अथवा सावित्रीबाई फुले के नाम से हर गांव में कस्बों में छोटी छोटी समितियां बनाकर सेवा की जा सकती है।
2. समाज में किसी भी प्रकार की राजनीति से ऊपर उठकर सामाजिक कार्यकर्ताओं को महत्व देना शुरू करना चाहिए।
3. गांवों में या शहरी क्षेत्र में भी अपने सामाजिक तानेबाने को सशक्त करने, विद्यालयों की देखभाल करने के लिए भी मासिक बैठक होनी चाहिए, ताकि अपने शिक्षा के स्तर को ऊंचा उठाया जा सकें।
4. सभी राजकीय शिक्षकों में, वो जिस भी स्तन पर कार्यरत है, बड़ी ईमानदारी से कार्य करने की जरूरत हैं। शिक्षण का कार्य राष्ट्र निर्माण का कार्य है।
5. हम अपने बच्चों को अपने गांव में ही पढ़ाने का संकल्प लें, और इसकी शुरुआत बड़े बड़े राजनीतिक तथा अधिकारियों से होनी चाहिए।
6. शिक्षण संस्थान चाहे निजी हो अथवा राजकीय हो, सभी शिक्षकों में मेहनत से कार्य करने के लिए अपने भीतर संवेदशीलता को जगाना होगा।
7. हमे अपने सामाजिक कार्यकर्ताओं को सम्मान देना होगा, जिससे वो गांव के विकास में सभी को जोड़ सकें।
8. राष्ट्र का निर्माण शिक्षा के माध्यम से ही संभव है, इसमें राजनीतिक पार्टियों से मेरा विशेष निवेदन है कि वो शिक्षा के मामले में, खेलकूद के मामले में, जोहड़ तालाब के संरक्षण, पर्यावरण संरक्षण के मामले में गलत का साथ न दें, बेहतरीन के साथ खड़े होकर देश के विकास को महत्व दें।
9. हमारा सभी का कर्तव्य राष्ट्र निर्माण हैं, इसलिए राजनीतिक पार्टी से अलग होकर अपने गांव का, कस्बे का, तथा शहर के एक एक बच्चे के सशक्तिकरण के लिए कार्य करें, तभी हम अपने महापुरुषों के सपनों को साकार कर पाएंगे।
10. सभी राजकीय विद्यालयों को तीन बाते विशेष ध्यान देने की जरूरत है, जैसे बच्चों की यूनिफॉर्म आकर्षित हो, राजकीय विद्यालयों में जे इ इ तथा नीट की परीक्षाओं की तैयारी के लिए व्यवस्था होनी चाहिए, और इंग्लिश भाषा के लिए विशेष व्यवस्था करने की आवश्यकता है।
हम सभी कुछ छोटी छोटी गतिविधियों के द्वारा अपने विद्यालयों की हालत सुधार कर सकते है। आज भी हम अपने समाज में महान समाजसुधारको की प्रतिमूर्ति स्थापित कर सकते है। जो लोग समाज में अच्छे कार्य करते है उन्हें सहयोग करना सीखना चाहिए। हमारे विकास की सबसे पहली सीढ़ी शिक्षा के संस्थानों में सुधार करना है। यहां सभी टीचर्स साहेबान से निवेदन है कि वो खुद को ज्योतिबा फुले तथा सावित्रीबाई फुले के रूप में देखें तथा अपने राजकीय स्कूल्स को बेहतरीन बनाने के लिए सभी को समाज सुधारक बनने की जरूरत हैं। शिक्षण का कार्य वास्तव में बहुत ही पवित्र कार्य के साथ साथ जरूरी भी है। इसलिए आओ सभी शिक्षक मिलकर अपने अपने स्कूल्स में विद्यार्थियों के दाखिले के लिए कुछ दिनों के लिए समाज सुधारक बन जाए और राष्ट्र को विकसित बनाने में सहयोग करें।
जय हिंद, वंदे मातरम