जब बुजुर्ग कहानी सुनाना बंद कर दे तो नई पीढ़ी को बहादुरी, ईमानदारी वा जीवनशैली के संस्कार ट्रांसफर कौन करेंगे

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When the elders stop telling stories, then who will transfer the values ​​of bravery, honesty and lifestyle to the new generation
mahendra india news, new delhi

लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
इस धरती पर कोटि कोटि प्रकार के जीव रहते है और हर एक ब्रह्मांडीय ताने बाने से जुड़े हुए है। इन सब के बीच केवल मनुष्य ही विवेकशील, संवेदनशील है, इसलिए मनुष्य की जिम्मेदारी क्या है, उसे समझने की आवश्यकता सभी की है, क्योंकि बाकी सारे जीव, पेड़ पौधे, जोहड़ तालाब, नदियां झरने, वन जंगल तथा छोटे छोटे जीव जंतुओं के जीवन की जिम्मेदारी भी तो इंसानों की ही है। पीढ़ी दर पीढ़ी बहुत से खट्टे मीठे, सुंदर, बेहतरीन अनुभव होते रहते है लेकिन अगर इन अनुभवों को हमारे बड़े बुजुर्ग लोग अगली जनरेशन तक नहीं पहुंचायेंगे तो नई पीढ़ी को भारतीय संस्कृति तथा संस्कारों में उपलब्ध बहादुरी, जीवनशैली की जानकारी कैसे होगी ? जो पीढ़ी जीवन का पूरा अनुभव लेकर बैठी है, उन्हें अपने जीवन के हर उस पहलू तथा अन्य बहादुर लोगों की, ईमानदार महानुभावों की, सत्यनिष्ठा से जीवन जीने वाले लोगों तथा उन महान स्वतंत्रता सेनानियों की कहानियों को नए बच्चों तक पहुंचाने का महत्वपूर्ण कार्य करना चाहिए।


 अन्यथा उन तक भारतीय ज्ञान परंपरा को कैसे हस्तांतरित किया जाएगा। जब हम छोटे होते थे तो हमारे बुजुर्ग, दादा दादी या नाना नानी अपने नाती पोते पोतियों को रोज शाम को या रात में सोने से पहले ऐसी कहानियां सुनाते थे जिनसे उन बच्चों का मनोबल बढ़ता था,उन्हें बहादुर के गुण मिलते थे, ईमानदारी से जीने वालों की निर्भीकता की जानकारी होती थी, राजमहाराजों जी बहादुरी के किस्से सुनने को मिलते थे, भारतीय मानव मूल्यों, भारतीय शास्त्रों में उपलब्ध ज्ञान की जानकारी नई पीढ़ी को हस्तांतरित होती थी। बच्चें बड़े आनंद से ऐसी कहानियां सुनते थे और खुश होते थे। खेल खेल में ही बड़े बड़े संस्कार हमारी नई जनरेशन को मिल जाते थे। आज का दिन अमेरिका में राष्ट्रीय कहानी सुनाओ दिवस के रूप में मनाया जाता है, हमारे भारत में भी 20 मार्च को हर वर्ष कहानी सुनाओ दिवस के रूप में मनाने का प्रचलन है। ये दिवस हमे अपने संस्कारों तथा संस्कृति से रूबरू होने का अवसर प्रदान करता है। अगर ऐसे ही प्रेरणादाई कहानियां बच्चों को सुनाई जाए तो हमारी नई पीढ़ी के चरित्र निर्माण में सहयोग मिलता है। ऐसे कहानियों के माध्यम से अगर चरित्र निर्माण के सभी गुण या लाइफ स्किल्स बच्चों को सुनाए जाएं तो उनका व्यक्तित्व सशक्त बनता है। अगर वैदिक काल से उपलब्ध ज्ञान, त्रेता में उपलब्ध ज्ञान , भगवान राम जी के जीवन से जुड़ी हुई कहानियां, उनकी मर्यादाओं को कहानियों के रूप में प्रस्तुत करे, या भगवान श्रीकृष्ण जी के जीवन से जुड़े हुए महानता तथा बहादुरी के किस्से, धर्म को स्थापना को, छत्रपति शिवाजी, महाराणा प्रताप, पन्नाधाय, पृथ्वीराज चौहान, राव तुलाराम, महारानी लक्ष्मी बाई, अमर शहीद भगत सिंह, राजगुरु, सुखदेव तथा चंद्रशेखर आजाद, सुभाषचंद्र बोस जैसे वीरों की गाथा कहानियों के रूप में प्रस्तुत किए जाए तो किशोर व युवा पीढ़ी अपने जीवन में भटकने से बच जाएगी। हमारी नई पीढ़ी तब ही वेस्टर्न कल्चर की ओर बढ़ती है। 


जब हमारी संस्कृति की महान कहानियों को उनके समक्ष प्रस्तुत नहीं किया जाता है। आज कितने ऐसे दादा दादी है या नाना नानी है जो अपने बच्चों को हर दिन कुछ समय देने के लिए तैयार हैं, उनके साथ समय बिताने को तैयार है, यहां तो हर कोई पैसे के पीछे पड़े है, अरे किस के लिए धन इक्कठा कर रहे हो। जब भारतीय संस्कृति ही नहीं बचेगी तो फिर ये सब तामझाम किस लिए है। दोस्तों,  कहानियां सुनने से जानकारियों के साथ साथ ज्ञान की प्राप्ति भी होगी। इससे भी बड़ी बात कि हमारे बच्चों, किशोरों तथा युवाओं को उनकी पर्सनेलिटी विकसित करने के लिए कुछ गुण अवश्य मिलेगा, इनमें से 10 अद्भुद गुणों को यहां मैं प्रस्तुत कर रहा हूं जिन्हें हर बच्चे द्वारा आत्मसात किया जा सकता है, जैसे;
1. बच्चें सुनने की आदत विकसित कर पाएंगे।
2. किसी भी जानकारी को मनन करने की आदत बना पाएं।
3. मोबाइल की लत से छुटकारा मिलने में भी सहायता मिलेगी।
4. टेलीविजन से दूरी बनाने में भी सहायता मिलेगी।
5. बच्चें अकेलेपन से बच पाएंगे, और उससे बच्चों में सहअस्तित्व की भावना पैदा होगी।
6. सहकार की भावना को विकसित किया जाता है, बच्चें संयुक्त परिवार के महत्व को भी भली प्रकार समझ पाएंगे।
7. बच्चों में बुजुर्गो की बाते सुनने की भी आदत बन पाएगी।
8. जीवन में आत्मबल, ईमानदारी, सत्यनिष्ठा, तथा बहादुरी के गुण समय के साथ साथ विकसित होंगे, जिससे निर्भीकता आयेगी।
9. बुजुर्गो के प्रति सम्मान की भावना विकसित होगी।
10. इन कहानियों के द्वारा खुद के भीतर भी आत्मसम्मान की भावना विकसित होगी।
    कहानियां सुनाना तथा सुनना ना केवल हमारी नई जनरेशन को पुरानी पीढ़ी से जोड़ने का कार्य करेगी, बल्कि नई पीढ़ी को वेस्टर्न संस्कृति से बचने में भी सहायक सिद्ध होगी। हम अपनी संस्कृति, भारतीय शास्त्रों, भारतीय जीवनशैली, भारतीय तीज त्यौहारों तथा अपने महापुरुषों को भी जान पाएंगे एवं अपनी देशी जीवनशैली को अपनाकर खुद को स्वस्थ भी रख पाएंगे।
जय हिंद, वंदे मातरम

 

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