World Environment Day: "अथ पर्यावरणम अनुशासनम", क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिए इस टैगलाइन से आगे बढ़ना होगा
Jun 4, 2025, 10:45 IST
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लेखक
नरेंद्र यादव
नेशनल वाटर अवॉर्डी
यूथ एंपावरमेंट मेंटर
आजकल एक बहुत ही भारी भरकम शब्द चलन में है जिसे हम क्लाइमेट चेंज का नाम देते है, जो परिणाम है पर्यावरण के साथ छेड़छाड़ करने का। विश्व में न जाने कितने की वैज्ञानिक तथा सामाजिक कार्यकर्ता पर्यावरण बचाने के लिए कार्य कर रहे है। पर्यावरण बचाने की बजाय उससे छेड़छाड़ ना करे तो जल वायु को तो प्रकृति अपने आप ही बचा लेगी। इस वर्ष विश्व पर्यावरण दिवस की थीम है प्लास्टिक पॉल्यूशन को हराना, उससे निजात पाना, जो बहुत ही आसान है अगर मनुष्य इसका उपयोग ना करे तो, लेकिन हम पर्यावरण बचाने के लिए वो सभी गतिविधि करते है जिससे पर्यावरण कभी नहीं बचेगा। जीवन बहुत सीधा सादा है, जिसे हमने अधिक धन इक्कठा करने के चक्कर में कठिन बना दिया है। क्लाइमेट चेंज तो हमारी गलत गतिविधियों का परिणाम है, जिसे जानते हुए भी सब करते है। हमारे पास पर्यावरण बचाने के लिए कुछ कार्यक्रम है जिनसे कभी भी पर्यावरण नहीं बचेगा। हम आमतौर पर सम्मेलन, बैठक करते है, रैली निकालते है, साइकिलेथों आयोजित करते है, वॉल राइटिंग करते है, स्कूल्स कॉलेज में निबंध प्रतिस्पर्धा कराते है, भाषण प्रतियोगिता आयोजित करते है, पेटिंग प्रतियोगिताओं का आयोजन करते है जो केवल ज्ञान के विषय तो हो सकते है परंतु अनुशासन के विषय नहीं बन सकते है, नियम के विषय नहीं है। हमारी भारतीय संस्कृति में कुछ गतिविधि अनुशासन से संबंधित होती है उन्ही में शामिल है पर्यावरण संरक्षण का विषय। पेड़ लगाने से वृक्षारोपण होगा, वाल राइटिंग या रैली निकालने से पेड़ नहीं लगेंगे, जल का संचय नहीं होगा। स्वच्छता केवल कूड़ा कचरा ना डालने तथा झाड़ू उठाने से होगा, यह निबंध लेखन से नहीं होगा। सार्वजनिक स्थलों पर कूड़ा ना डालने के संकल्प से स्वच्छता आयेगी, केवल साइकिल रैली करने से नहीं होगी। हमारा पर्यावरण हमारे अनुशासित जीवन शैली से बचेगा, केवल अधिक शैक्षणिक गतिविधियों से नहीं बचेगा। पृथ्वी को प्लास्टिक से बचाने के लिए हर इंसान को कुछ बहुत छोटी छोटी गतिविधियों का सहारा लेने की जरूरत है, जीवन जिन्हे अक्सर हम नहीं करते है। सब लोग जानते है कि पर्यावरण को सुरक्षित रखने की जरूरत है, सभी को ज्ञान तो खूब है परंतु उन्हें अपने हाथों से करना नहीं चाहते है। हमे क्लाइमेट चेंज को रोकना है तो अपनी जीवन शैली को बदलना होगा , अन्यथा पृथ्वी पर जीवन बहुत दिनों तक रह नहीं पाएगा। मैं बहुत ही आसान भाषा में लोगों को कहना चाहता हूँ कि क्लाइमेट चेंज का मतलब है, हमारी जलवायु की तासीर में बदली होना, उसके तापमान में बदलाव होना, जिसके कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ता है, जिसके कारण धरती पर होने वाली गतिविधियों पर प्रभाव पड़ता है, जैसे ;
1. तापमान बढ़ने से ग्लेशियर के पिघलने की गति बढ़ती है, ग्लेशियर टूटते है, जो बेहद खरनाक है। नदियों का जल स्तर बढ़ेगा और धरती पर बसे बहुत से शहर जो समुद्र के किनारे बसे है वो डूब जाएंगे।
2. हमारी फसल चक्र में बदलाव के कारण खाद्यान्न उत्पादन में गिरावट आएगी।
3. तापमान बढ़ने से धरती पर जीवन खतरे में आ जाएगा।
4. अगर ग्लेशियर पिघलने की रफ्तार बढ़ गई तो हमे फिर बरसात पर ही आधारित जीवन जीना होगा, जो बहुत ही मुश्किल होगा।
5. पृथ्वी का तापमान दिनों दिन बढ़ेगा तो जन जीवन बहुत कठिन होगा।
पर्यावरण बचाने के लिए हम सभी को जीवन को अनुशासित करने की आवश्यकता है। अपनी रोज की गतिविधियों में थोड़ा थोड़ा बदलाव लाने की जरूरत है, जिससे धरती के तापमान को नियंत्रित किया जा सके। इसके साथ ही हमे जल संसाधन तथा जंगलों को बचाने के लिए अपने स्तर से कुछ छोटी छोटी गतिविधियों को आयोजित करने की जरूरत है। पर्यावरण दिवस की इस वर्ष की थीम पर आधारित कुछ कार्यक्रम को अपने जीवन में अपनाने की आवश्यकता है। पर्यावरण संरक्षण के लिए बौद्धिक गतिविधियों के साथ साथ बहुत सा कार्य शारीरिक मेहनत का भी करना होगा, जैसे ;
1. प्लास्टिक का उपयोग बिल्कुल बंद करना होगा, अपने घर में सब्जी लाने के लिए कपड़े के थैले का उपयोग करें। शादी विवाहों में प्लास्टिक के कप, प्लेट, थाली पर प्रतिबंध लगाना उचित होगा। अपने घर को प्लास्टिक मुक्त करने का संकल्प लेना चाहिए।
2. बिजली की खपत कम से कम करें। बिना वजह बल्ब, पंखे, एसी ना चले।
3. डीजल, पेट्रोल की खपत कम करे, अपने कम दूरी के आने जाने के लिए साइकिल का उपयोग करें।
4. अपने घर के सामने या घर में अधिक से अधिक पेड़ लगाएं।
5. ग्रीन बेल्ट के नाम से छोड़ी गई जमीन को हरा भरा रखने के लिए वृक्षारोपण ही करे, उसे सीमेंट से पक्का न करें।
6. अधिक से अधिक भूमि को कच्चा रखने का प्रयास करे जिससे धरती का तापमान ना बढ़े।
7. सीमेंटेड होते शहरी क्षेत्रों को रोकना होगा, ताकि अधिक प्लांटेशन किया जा सके। घर के आगे जो जमीन ग्रीन बेल्ट के लिए रखी हुई है उसी को ही सबने पक्का कर दिया है, सरकार को इस पर ध्यान देना चाहिए।
8. पानी के संरक्षण के लिए छोटे छोटे पिट बनाने चाहिए जिससे बरसात का पानी धरती के गर्भ में जा सके। जोहड़ तालाबों को साफ रखने के लिए प्लास्टिक से बहाना होगा।
9. छोटी सड़क को बड़ा करते वक्त पेड़ो को ना काटा जाए, इसका बहुत आसान तरीका ये है कि एक सड़क को वैसे ही रखे तथा सड़क किनारे बनी ग्रीन बेल्ट को छोड़कर दूसरी सड़क बनानी चाहिए, जिससे दोनों तरफ लगे पेड़ आसानी से बच जाएंगे।
10. सड़क किनारे बनी ड्रेनेज को ऐसा बनाया जाए कि उनका लेवल ठीक हो और बरसात में बरसे पानी को किसी सरोवर से लिंक करने की योजना बनानी चाहिए।
11. सभी सरकारों से निवेदन है कि सड़क के चौड़ीकरण के नाम पर पेड़ों का कटान ना हो, उसके साथ में दूसरी सड़क बनाने का प्रावधान किया जाए। जितने पेड़ कटते है, उतने कभी नहीं लगते है।
12. शहरी क्षेत्र के लोग अपने यातायात के साधन के रूप में साइकिल का उपयोग करने का संकल्प ले, जिससे प्रदूषण को रोका जा सकें।
13. पेड़ों को जल चढ़ाना चाहिए क्योंकि वहीं तो शिव रूप है जो प्रदूषण रूपी जहर को पीते है।
14. कृषकों को भी अपने खेत की पराली को जलाने पर रोक लगानी चाहिए।
15. सभी उद्योगपतियों को भी नदियों को प्रदूषित करने तथा वायु प्रदूषण को रोकने का संकल्प लेना पड़ेगा।
16. किसी भी प्रकार के इवेंट आयोजित करने पर पूर्ण प्रतिबंध लगाना होगा, जो पैसा इवेंट में खर्च होते है उन्हें कार्य करने में लगाना होगा।
हर तरफ पर्यावरण प्रदूषण हो रहा है, हम सभी अपने स्तर से जलवायु प्रदूषण का कार्य कर रहे है, कोई छोटे पैमाने पर तो कोई बड़े पैमाने पर प्रदूषण करने में अपना योगदान दे रहे है। हम सभी तो क्लाइमेट चेंज के लिए जिम्मेदार है। एक एक घर में गाड़ियों की लाइन लगी हुई है, घरों में वातानुकूलित मशीनों की संख्या बढ़ती जा रही है। हमारी ये विडंबना है कि हम बड़े बड़े वातानुकूलित ऑडिटोरियम में बैठकर क्लाइमेट चेंज की बात करते है जहां सैकड़ों एसी चलते है। क्या ऐसे इन पर काबू पाया जा सकता है। हमे एसी कमरों को छोड़ना होगा, अगर क्लाइमेट चेंज को रोकना है, अपनी गतिविधियों को सकारात्मक रूप देने की जरूरत है, जैसे पेड़ो के नीचे बैठकर राष्ट्रीय स्तर की बैठकें आहूत हो, रैली आदि आयोजित करने की बजाय हाथ में झाड़ू उठा कर सफाई करने का संकल्प हो, जल संचय के लिए वातानुकूलित कमरों में बैठकर बैठक करने की बजाय हाथ में बेलचा, तसला उठाकर जोहड़ तालाबों से मिट्टी निकालने का कार्य करना चाहिए। आओ हम सब मिलकर पर्यावरण प्रदूषण को रोकने के लिए " अथ पर्यावरणमं अनुशासनम" की टैग लाइन के साथ आगे बढ़ें तथा भारतीय संस्कृति के अनुसार पर्यावण को बचाने के लिए संकल्प ले तथा श्रमदान के कार्यक्रमों को आगे बढ़ाने की शुरुआत करें, जो हमारी संस्कृति रही हैं।
जय हिंद, वंदे मातरम