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मकर संक्रांति पर्व पर कब और कैसे करें स्नान? जानिए मुहूर्त से लेकर सबकुछ

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When and how to take bath on Makar Sankranti festival? Know everything from auspicious time
mahendra india news, new delhi

देश भर में मकर  संक्रांति त्यौहार को लेकर तैयारियां की जा रही है। इस पर्व को का दिन बेहद खास माना जाता है। इस वर्ष यह 14 जनवरी 2025 को मनाया जाएगा।आपको बता दें कि धार्मिक मान्यताओं के मुताबिक इस दिन लोग भगवान सूर्य की पूजा करते हैं। यह पर्व हर वर्ष धूमधाम के साथ मनाया जाता है। इस मकर संक्रांति पर्व जुड़ी प्रमुख चीजों के बारे में जानिए। 

आपको बता दें कि मकर संक्रांति फसल के मौसम की शुरुआत और सूर्य के मकर राशि में गोचर का प्रतीक है। इस दिन के बाद दिन बड़े होने लगते हैं और उत्तरायण की यह अवधि करीबन 6 माह तक रहती है। यह संक्रांति वर्ष में पड़ने वाली सभी 12 संक्रांतियों में से सबसे महत्वपूर्ण मानी जाती है। इस दिन व्यक्ति गंगा स्नान, सूर्य को अर्घ्य और दान-पुण्य जैसे शुभ काम करते हैं। 


आपको बता दें कि ऐसे में आज हम इस दिन स्नान के लिए कौन-सा वक्त सबसे अच्छा माना जाता है? इसके बारे में जानेंगे, जिससे स्नान का शुभ फल प्राप्त किया जा सके।

मकर संक्रांति स्नान मुहूर्त हिंदू पंचांग के मुताबिक मकर संक्रांति पर महा पुण्यकाल की शुरुआत सुबह 9 बजकर 03 मिनट पर होगी। वहीं, इसकी समाप्ति समय सुबह 10 बजकर 48 मिनट पर होगी। इसके साथ ही पुण्य काल सुबह 9 बजकर 3 मिनट से शाम 5 बजकर 46 मिनट तक रहेगा। इसके अलावा ब्रह्म मुहूर्त सुबह 05 बजकर 27 मिनट से 06 बजकर 21 मिनट तक रहेगा।

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किस समय करें स्नान? 
पंडित नीरज शर्मा ने बताया कि मकर संक्रांति पर गंगा स्नान का विशेष महत्व है। इस दिन लोग प्रयागराज के त्रिवेणी तट पर स्नान के लिए जाते हैं। ऐसे में जब कुंभ चल रहा है, तो इसका महत्व और भी अधिक बढ़ गया है। वहीं, इस दिन स्नान के लिए सबसे अच्छा समय ब्रह्म मुहूर्त को माना जाता है।

उन्होंने बताया कि इसके साथ ही महा पुण्य काल और पुण्य काल में भी स्नान करने का विधान है। माना जाता है कि इस मौके पर गंगा स्नान करने से सभी कष्टों का अंत हो जाता है। साथ ही मोक्ष की प्राप्ति होती है।

मकर संक्रांति पर स्नान के समय करें इन मंत्रों का जाप 
गंगे च यमुने चैव गोदावरी सरस्वति। नर्मदे सिंधु कावेरि जलेऽस्मिन् सन्निधिं कुरु।।
गंगा पापं शशी तापं दैन्यं कल्पतरुस्तथा। पापं तापं च दैन्यं च हन्ति सज्जनसङ्गम:।।
नमामि गंगे! तव पादपंकजं सुरसुरैर्वन्दितदिव्यरूपम्। भुक्तिं च मुक्तिं च ददासि नित्यम् भावानुसारेण सदा नराणाम्।।