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हरियाणा के मुख्यमंत्री, कई मंत्रियों और अनेक विधायकों द्वारा ली गई शपथ पर उठा सवाल

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हरियाणा के मुख्यमंत्री, कई मंत्रियों  और अनेक विधायकों द्वारा ली गई शपथ पर उठा सवाल 

ईश्वर की शपथ लेने  के साथ ही  किया  सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान जो सही नहीं -- हेमंत 


चंडीगढ़ --  शुक्रवार 25 अक्टूबर नव-गठित 15वीं हरियाणा विधानसभा के बुलाए पहले सत्र में प्रदेश के राज्यपाल द्वारा विशेष रूप से नियुक्त कार्यवाहक (प्रो-टेम) स्पीकर डॉ. रघुबीर सिंह कादयान द्वारा सभी नव-निर्वाचित विधानसभा सदस्यों को विधायक पद की शपथ दिलाई गई. 

बहरहाल, इसी बीच पंजाब एवं हरियाणा हाई कोर्ट के एडवोकेट और विधायी मामलों के जानकार हेमंत कुमार ने एक रोचक परन्तु अति महत्वपूर्ण पॉइंट  उठाते हुए बताया कि  इसे हरियाणा विधानसभा सचिवालय के संबंधित अधिकारियों अथवा कर्मियों  की या तो लापरवाही कहा जा सकता है  या उनसे जाने-अनजाने  हुई एक गंभीर चूक  कि उन्होंने मौजूदा नव-गठित विधानसभा  सदन के नव-निर्वाचित सदस्यों द्वारा  विधायक पद की शपथ लेने का ऐसा ड्राफ्ट फॉर्म (प्ररूप) तैयार किया उनके हाथों में दिया  जिसे पढ़कर सदन में सर्वप्रथम शपथ लेने वाले मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी, उनके बाद उनके  मंत्रिपरिषद के कई  सदस्यगण और तत्पश्चात  अनेक  नव-निर्वाचित विधायकों  ने प्रो-टेम   स्पीकर डॉ. रघुबीर सिंह कादयान के समक्ष विधायक पद के लिए  ईश्वर की शपथ के  साथ साथ सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान भी कर लिया  जबकि इनमें अर्थात शपथ अथवा प्रतिज्ञान में से किसी  एक का ही प्रयोग किया  जा सकता है दोनों का  नहीं. ऐसा दोहरा प्रयोग करने वालों में अम्बाला शहर से  कांग्रेस विधायक निर्मल सिंह और नारायणगढ़ से कांग्रेस विधायक शैली चौधरी भी शामिल थी. हालांकि अम्बाला कैंट से भाजपा विधायक  अनिल विज और मुलाना से कांग्रेस विधायक पूजा चौधरी ने केवल ईश्वर की शपथ लेने का ही  प्रयोग कर सही किया. 

हेमंत ने  इस सम्बन्ध में विस्तार से जानकारी देते हुए बताया कि भारत के संविधान की तीसरी अनुसूची में राज्य  विधानसभा के सदस्य (विधायक) द्वारा ली जाने वाली शपथ या किये जाने वाले प्रतिज्ञान का प्ररूप है जिसमें स्पष्ट तौर पर उल्लेख किया गया है कि मैं, अमुक (विधायक का नाम), जो विधानसभा का सदस्य निर्वाचित हुआ हूँ, ईश्वर की शपथ लेता हूँ / ( अथवा) / सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान करता हूँ की मैं विधि द्वारा स्थापित भारत के संविधान के प्रति सच्ची श्रद्धा और निष्ठा रखूंगा. मैं भारत की प्रभुता और अखंडता को अक्षुण्ण रखूंगा और जिस पद को मैं ग्रहण करने वाला हूँ उसके कर्तव्यों का श्रद्धापूर्वक निर्वहन करूंगा. 

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इस प्रकार भारत के संविधान के तीसरी अनुसूची में दिए गये उपरोक्त प्ररूप के अनुसार विधानसभा के हर नव-निर्वाचित सदस्य 
को यह  विकल्प दिया गया  है कि अगर वह ईश्वर में आस्था रखने वाला अथवा आस्तिक है, तो वह  ईश्वर के नाम से विधायक पद की  शपथ ले सकता है  अथवा अगर वह इस  प्रकार ईश्वर की   शपथ नहीं लेना चाहता है, तो वह सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान (सोलेम्नी अफ्फिर्म) भी  कर सकता है परन्तु एक ही समय पर दोनों का एक साथ प्रयोग नहीं किया जा सकता है. हैरानी की बात यह है की जब ऐसा किया जा रहा था, तब न तो  प्रो-टेम स्पीकर डॉ. रघुबीर  कादयान और न ही विधानसभा सचिव डॉ. सतीश कुमार अथवा किसी अन्य विधानसभा के अधिकारी द्वारा इस विषय पर हस्तक्षेप किया गया. 

हेमंत का मानना है कि  प्रो-टेम स्पीकर या कम से कम  विधानसभा सचिव  को शपथ-ग्रहण कार्यक्रम आरम्भ होने से पूर्व सदन के  के  समक्ष स्पष्ट कर देना चाहिए था कि या तो नव-निर्वाचित विधायक ईश्वर की शपथ के सकते हैं अन्यथा अगर  वह शपथ नहीं लेना चाहते हैं, तो वह  सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान कर सकते हैं ताकि इस बारे में किसी नव-निर्वाचित विधायक के मन में कोई संशय नहीं रहता.
चूँकि इस बार 90 सदस्यी हरियाणा विधानसभा में 40 विधायक ऐसे है जो पहली बार निर्वाचित होकर आये हैं, इसलिए ऐसा करना अत्यंत आवश्यक था.  

हालांकि सत्र के आरम्भ होने पर रोहतक से कांग्रेस विधायक भारत भूषण बतरा ने राज्यपाल द्वारा  डॉ. रघुबीर  कादयान के  सदन के  प्रो-टेम स्पीकर के स्थान पर एक्टिंग स्पीकर के तौर पर नियुक्त करने पर आपत्ति उठाई थी जिसका पूर्व मुख्यमंत्री भूपेंद्र हुड्डा ने भी समर्थन किया था परन्तु जब सर्वप्रथम  मुख्यमंत्री, उसके बाद कई मंत्रियों एवं अनेक विधायकों द्वारा विधायक पद के लिए ईश्वर की शपथ लेने  के साथ साथ सत्यनिष्ठा से प्रतिज्ञान किया जा रहा था, तो न तो उक्त दोनों या सदन के किसी अन्य  वरिष्ठ सदस्य  भी इस पर कोई ऐतराज़ नहीं जताया. बहरहाल, हेमंत ने  इस विषय पर राज्यपाल, मुख्यमंत्री, विधानसभा स्पीकर हरविंदर कल्याण आदि को लिखकर मामला उठाया था.