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राजस्थान में बागी और छोटी पार्टियां के उम्मीदवार कांग्रेस भाजपा दोनों की बढ़ा रहे मुश्किलें, उम्मीदवार बदल रहे सियासी समीकरण

हनुमान बैनिवाल की अलग राह बीजेपी के लिए बनी चुनौती

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हनुमान बैनिवाल की अलग राह बीजेपी के लिए बनी चुनौती

mahendra india news, new delhi

राजस्थान में 25 नवंबर को होने वाले चुनाव को लेकर सभी पार्टी प्रचार प्रसार में जुटी है। इसी के साथ कई जगह पर बागी उम्मीदवारों को मनाने के लिए पार्टी के आला नेता लगे हुए हैं। चुनाव में वैसे तो तीसरे विकल्प की गुंजाइश अब भी नहीं है, मगर जातीय समीकरणों पर आधारित छोटी पार्टी के साथ बागी उम्मीदवार सत्ताधारी कांग्रेस और बीजेपी दोनों की चुनावी सिरदर्दी बढ़ाते नजर आ रहे हैं।


आपको बता दें कि सत्ता सियासत की होड़ में शामिल बीजेपी और कांग्रेस पार्टियां चाहे जैसा भी दावा करें पर कोई एकतरफा चुनावी बयार जैसी सूरत अभी तक दिखाई नहीं दे रही है। क्योंकि ऐसे में राजस्थान के चुनावी मुकाबले में बागियों के साथ छोटी पार्टियों के वोट काटने का असर चुनावी करवट की दशा-दिशा तय करने में महत्वपूर्ण साबित हो सकता है।


आपको बता दें कि इस लिहाज से हनुमान बैनीवाल की राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी और चंद्रशेखर आजाद की आजाद समाज पार्टी  के जातीय समीकरणों का नया प्रयोग राजस्थान में कांग्रेस और बीजेपी दोनों को कई पॉकेट में परेशान कर रहा है। एनडीए से अलग हुए हनुमान बैनीवाल की आरएलपी ने अपना पूरा फोकस प्रदेश के शेखावटी एरिया में कर रखा है यहांं की सियासत में जाटों का वर्चस्व है। आपको बता दें कि हनुमान बैनीवाल के नागौर, बीकानेर, जोधपुर, उदयपुर, अजमेर, चूरू, बाड़मेर और भीलवाड़ा जैसे जिलों की अधिकांश सीटों पर उनके उम्मीदवार मैदान में हैं।

राजस्थान प्रदेश में सामाजिक समीकरणों के इस नए प्रयोग की झलक पूर्वी हरियाणा से सटे पूर्वी राजस्थान के एरिया से शुरू होकर जाट बहुल शेखावटी एरिया के चुनावी परिदृश्य में साफ नजर आ रही है। अलवर जिले की तिजारा, किशनगढ़, रामगढ़ सीट से लेकर दौसा, करौली, सवाई माधोपुर, भरतपुर, धौलपुर जैसे पूर्वी राजस्थान के जिलों में कई सीटों पर आसपा के प्रत्याशी कांग्रेस और भाजपा की परेशानी का सबब बन रहे हैं। 


आपको ये भी बता दें कि हनुमान बेनीवाल जहां अपनी जाट बिरादरी का कार्ड खेल रहे। इसी के साथ साथ चंद्रशेखर की आसपा अब स्वयं को बसपा की जगह दलित समाज की उभरती सियासी के रूप में पेश कर रही है। इन दोनों पार्टियों का गठबंधन वैसे तो सवा सौ से अधिक सीटों पर चुनाव लड़ रहा। मगर करीब 60 सीटों पर मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की कोशिश की जा रही है। चुनाव नतीजों में यह गठबंधन कितना दम दिखाएगा इसको लेकर इनके नेता-कार्यकर्ता सिर्फ संभावना के सहारे हैं, लेकिन सत्ता की दावेदारी में शामिल दोनों पार्टियों के चुनावी गणित को कई जगह फिलहाल प्रभावित जरूर कर रहे हैं।