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इस मंदिर की शक्तियों के सामने नहीं चली थी औरंगजेब की तलवार, टेकने पड़े थे घुटने...

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 इस मंदिर की शक्तियों के सामने नहीं चली थी औरंगजेब की तलवार, टेकने पड़े थे घुटने...
NagVasuki Temple : सावन माह में जहां शिव भगवान के मंदिरों में भीड़ लगी हुई है। हरिद्वार से कावंडिया कावड़ लेकर आने शुरू हो गया है। ऐसे में Mandir के साथ सड़कों पर पूरा दिन शिव के जयकारों से गुंज रहा है। सड़कों पर डीजे की धुन पर बम-बम भोले के जयकारों की गूंज मंदिरों के बाहर तक आ रही है। 

अब बात करते हैं ऐसे ही एक Mandir नागों के राजा वासुकी का है, इस मंदिन में प्रतिदिन भक्तों का तांता लगा हुआ है। इस Mandir के इतिहास बारे में आपको जानकारी दे रहे हैं। 

जानकारी के अनुसार प्रयागराज के दारागंज में स्थित नागों के राजा नाग वासुकी का Mandir है। Mandir के पुजारी पंडित श्याम बिहारी मिश्र ने बताया कि मुगल काल में जब औरंगजेब अकबर के किले में आया था।

उस दौरान उन्होंने प्रयागराज में स्थित 2 प्रमुख शिव मंदिरों पर आक्रमण किया गया। इसमें प्रथम Mandir नागवासुकी का था. वहीं द्वितीय Mandir दश्मेघेश्वर है। 

इस Mandir के पुजारी पंडित श्याम बिहारी मिश्र ने बताया कि औरंगजेब को मूर्ति भंजक के रूप में जाना जाता है। इसलिए औरंगजेब ने इस Mandir पर आक्रमण तो कर दिया। लेकिन Mandir के अंदर यहां की शक्तियों के आगे उसने घुटने टेक दिए, औरंगजेब की तलवार यहां नहीं चल सकी।

यहां पर जैसे ही उसने नागवासुकी के Mandir पर आक्रमण करना चाहया था। इसी दौरान तो वह बेहोश हो गया, हताश और निराश होकर अंत में उसे वापस लौटना पड़ा. तब से लेकर आज तक इस प्राचीन Mandir की महिमा का गुणगान चारों तरफ दूर दूर तक फैला हुआ है। 

पंडित श्याम बिहारी मिश्र ने बताया कि जब देवताओं एवं राक्षसों को समुद्र मंथन के लिए बड़ी रस्सी की जरूरत थी। इस दौरान  तब नागों के राजा नागवासुकी रस्सी बने थे, इनको भगवान विष्णु के द्वारा 3 वरदान मिले हैं, इनमें से प्रथम वरदान है कि संगम में स्नान करने के बाद बिना इनके दर्शन के स्नान पूरा नहीं होगा।

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वहीं द्वितीय वरदान है कि इनके दर्शन मात्र से ही कालसर्प दोष समाप्त होता है, तृतीय वरदान में स्वयं नगर देवता बेदी माधव प्रत्येक साल  इनकी पूजा करने के लिए आते हैं. यही वजह है कि सावन महीने के अंदर इस Mandir में भारी भीड़ होती है।