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सिरसा सीडीएलयू के स्टूडेंट एक्टिविटी सेंटर का नामकरण वीर सावरकर के नाम पर

 
Sirsa CDLU Student Activity Center named after Veer Savarkar
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 Sirsa CDLU's Student Activity Center named after Veer Savarkar
mahendra india news, new delhi

हरियाणा में सिरसा स्थित चौधरी देवीलाल विश्वविद्यालय परिसर स्थित स्टूडेंट एक्टिविटी सेंटर का नामकरण अब स्वतंत्रता सेनानी, प्रखर विचारक और क्रांतिकारी साहित्यकार वीर सावरकर के नाम पर किया गया है। यह निर्णय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. नरसी राम बिश्नोई द्वारा लिया गया, ताकि विश्वविद्यालय के युवा छात्र-छात्राओं में राष्ट्रबोध, सांस्कृतिक गौरव और स्वाभिमान की भावना को प्रोत्साहित किया जा सके। इस आशय की जानकारी विश्वविद्यालय के कार्यकारी अभियंता  राकेश गोदारा ने दी। उन्होंने कहा कि कुलपति प्रो. नरसी राम ने यह निर्णय लेकर यह संदेश दिया है कि आज के युवाओं को वीर सावरकर के पदचिह्नों पर चलकर राष्ट्र निर्माण में भागीदार बनना चाहिए। यह नामकरण राष्ट्र के उन नायकों के प्रति कृतज्ञता का प्रतीक है, जिन्होंने अपने साहस, बलिदान और दूरदर्शी विचारों से भारत के स्वतंत्र भविष्य की नींव रखी।

प्रो. नरसी राम बिश्नोई ने बताया कि वीर सावरकर के नाम पर छात्र गतिविधि केंद्र का नामकरण, विश्वविद्यालय के छात्रों को उनके आदर्शों और विचारों से जोड़ने का माध्यम बनेगा। यह केंद्र अब केवल सह-शैक्षणिक गतिविधियों का स्थान नहीं रहेगा, बल्कि विचारों, रचनात्मकता और राष्ट्रीय चेतना के विकास का मंच भी बनेगा। वीर सावरकर न केवल एक महान स्वतंत्रता सेनानी थे, बल्कि वे एक उच्चकोटि के लेखक, समाज सुधारक और राष्ट्रवादी विचारक भी थे। उनका जीवन भारतीय युवाओं के लिए साहस, नेतृत्व और आत्मबलिदान का प्रतीक है।

उन्होंने कहा कि वीर विनायक दामोदर सावरकर का जीवन और साहित्य राष्ट्र चेतना, स्वत्व बोध और भारत की सांस्कृतिक पहचान की पुनर्स्थापना के लिए समर्पित रहा। उन्होंने जीवन के हर क्षण को भारत माता की सेवा में लगाया।  वे न कभी रुके, न झुके। उनका संघर्ष केवल राजनीतिक स्वतंत्रता तक सीमित नहीं था, बल्कि वे सामाजिक पुनर्जागरण, वैज्ञानिक दृष्टिकोण और आत्मनिर्भर भारत के निर्माता भी थे। उन्होंने कहा हमारा प्रयास है कि हम छात्रों को महापुरुषों की जीवनी के माध्यम से राष्ट्र निर्माण में सक्रिय भूमिका निभाने की प्रेरणा दें। वीर सावरकर का जीवन इसके लिए एक उत्कृष्ट उदाहरण है। यह भवन एक प्रतीक बनेगा—असाधारण देशभक्ति, विचारों की स्पष्टता और राष्ट्रीय दायित्व के प्रति सजगता का।

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कुलपति ने कहा कि सावरकर जी ने नासिक षड्यंत्र में भूमिका निभाने के कारण काले पानी की सजा भुगती, और वर्षों तक अंडमान की सेल्युलर जेल में अमानवीय परिस्थितियों में बंदी रहे। इसके बावजूद उन्होंने हार नहीं मानी और स्वराज्य के सपने को जीवित रखा। उनकी पुस्तक "1857 का स्वतंत्रता संग्राम" आज भी भारतीय इतिहास की क्रांतिकारी व्याख्या के लिए प्रसिद्ध है। सावरकर जातिवाद, छुआछूत और रूढ़ियों के विरोधी थे। उन्होंने सामाजिक समरसता, राष्ट्र की एकता और वैज्ञानिक सोच को प्रोत्साहित किया।

कुलपति ने कहा कि सावरकर साहित्य में स्व का बोध और राष्ट्र निर्माण में युवा पीढ़ी के लिए एक स्पष्ट मार्गदर्शन निहित है। ऐसा साहित्य जो अतीत की भूलों से सीखते हुए एक सशक्त, सुसंस्कृत और आत्मविश्वासी भारत का सपना दिखाता है। उनके लेखन में राष्ट्रप्रेम केवल भावना नहीं, बल्कि बुद्धि, तर्क और कर्तव्यनिष्ठा से संपन्न चिंतन है। सावरकर जितने संवेदनशील और भावनाशील थे, उतने ही वैज्ञानिक और तार्किक भी। वे न केवल सामाजिक बुराइयों के विरोधी थे, बल्कि उन्होंने बुद्धिनिष्ठ दृष्टिकोण से उनका समाधान प्रस्तुत किया।

प्रो. बिश्नोई ने कहा कि वीर सावरकर को केवल एक क्रांतिकारी कह देना उनके विशाल व्यक्तित्व का संक्षेप होगा। वे एक विचारधारा थे, जिन्होंने स्वतंत्रता, समानता और संस्कृति को अपने जीवन का आधार बनाया। विश्वविद्यालय का यह निर्णय समय की मांग है—छात्रों को विचारधारात्मक जागरूकता और ऐतिहासिक समझ से जोड़ने की दिशा में यह कदम सराहनीय है। परिणामस्वरूप, विश्वविद्यालय प्रशासन को यह विश्वास है कि यह पहल आने वाली पीढ़ियों को स्वतंत्रता, स्वाभिमान, और स्वत्व के मर्म को समझाने तथा राष्ट्रीय गौरव के पुनर्निर्माण हेतु प्रेरित करेगी। इस निर्णय के माध्यम से विश्वविद्यालय ने न केवल एक ऐतिहासिक व्यक्तित्व को सम्मानित किया है, बल्कि शिक्षा और राष्ट्र निर्माण के मूल्यों को भी पुन: परिभाषित किया है।