home page

भूमि की ऊपजाउ शक्ति बनाये रखने के लिए ग्वार को फसल चक्र में रखें: डा. बी.डी. यादव

 | 
  भूमि की ऊपजाउ शक्ति बनाये रखने के लिए ग्वार को फसल चक्र में रखें: डा. बी.डी. यादव
mahendra india news, new delhi

हरियाणा में सिरसा जिले में कृषि विभाग ओढ़ां के तत्वावधान में हिंदुस्तान गम एंड कैमिकल्स भिवानी के ग्वार विशेषज्ञ के सहयोग से गांव मलिकपुरा में शिविर का आयोजन किया गया। चौ. चरण सिह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय से सेवानिवृत ग्वार वैज्ञानिक डॉ. B.D. यादव ने बताया कि ग्वार बारानी क्षेत्रों की एक महत्वपूर्ण फसल है। इस मौके पर डॉ. पवन कुमार, एटीएम, डॉ. सुभाष गोदारा सेवानिवृत कृषि अधिकारी मौजूद रहे। 

ग्वार वैज्ञानिक डॉ. B.D. यादव ने कहा कि खरीफ  फसलों में यह एक मुख्य फसल जानी जाती है। यह सूखे को सहन करने में काफी क्षमता रखती है। सिरसा जिले के ओढां ब्लॉक के गांव मलिकपुरा का पानी खारा होने की वजह से ग्वार फसल के लिए उपयुक्त नहीं है तथा इस गांव में ज्यादातर ग्वार की बिजाई बारिश पर आधारित है। जहां सरसों की फसल में खारी पानी का प्रयोग किया गया है। 

उन खेतों में गहरी जुताई करके छोड़ दें और मानसून की अच्छी बारिश आने पर ही ग्वार की बिजाई करें क्योंकि जमीन में खारी पानी के लवण बारिश के पानी के साथ नीचे चले जाते है और उसका असर कम हो जाता है। ग्वार की बिजाई करने व खड़ी फसल में ट्यूबवेल का खारी पानी बिल्कुल भी न लगाएं, इससे जमीन का मुंह बन्द हो जाएगा और पौधों की बढ़वार रूक जाएगी तथा पौधे पीले होने शुरू हो जाते हैं और धीर-धीरे मुरझाकर सूख जाते है। गहरी जुताई करने से पहले गोबर की तैयार खाद अवश्य डालें, इससे भूमि में सुधार होता है। 

WhatsApp Group Join Now


उन्होंने बताया कि काफी ऐसे किसान हैं, जो बी.टी. नरमा की फसल लेकर अगले सीजन में उसी खेत में फिर बी.टी. नरमा लेतेे हैं, जिससे भूमि की उपजाऊ शक्ति घट जाती है और भूमि में पोषक तत्वों की कमी हो जाती है। डॉ. बी.डी. यादव ने किसानों से अनुरोध किया कि जमीन की सेहत को सुधारने के लिए फसल चक्र में ग्वार अवश्य रखें। खेतों में अनुसंधान के आधार पर यह नतीजा सामने आया है कि जिन खेतों में ग्वार फसल बोई गई है, उसके बाद बिजाई की गई गेहूं या सरसों की फसल में 20 से 25 प्रतिशत नत्रजन की बचत होती है तथा इन फसलों की पैदावार भी अधिक मिलती है। उन्होंने बताया कि लगातार 28 साल तक उन्होंने ग्वार फसल पर काम किया और वे पिछले 12 साल से हिन्दुस्तान गम् एण्ड कैमिकल्स भिवानी में ग्वार विषेषज्ञ के सलाहकार के रूप में काम कर रहे हैं। 

ग्वार वैज्ञानिक डॉ. बी.डी. यादव ने कहा ग्वार एक दलहनी फसल होने के नाते वायुमण्डल से नाईट्रोजन लेकर पौंधों को देती है तथा फसल पकने पर इसके पत्ते झड़कर जमीन पर गिरकर जैविक खाद का काम करते हैं। ग्वार-नरमा के फसल चक्र को अपनाने पर इन फसलों की पैदावार काफी अच्छी मिलती है और जमीन की उर्वरा शक्ति भी बनी रहती है। इसलिए किसानों को सलाह दी जाती है कि नरमा को ग्वार के फसल चक्र में अवश्य रखें। इस प्रोग्राम को आगे बढ़ाते हुए ग्वार विशेषज्ञ ने उखेड़ा रोग को ग्वार फसल की एक मु य बीमारी बताया और इसकी रोकथाम के लिए बीजोपचार ही एक मात्र हल है। ग्वार की उन्नतशील किस्में एचजी 365, एचजी 563 व एचजी 2-20 ही बिजाई करने की सलाह दी। 

ये किस्में 85 से 100 दिन में पक कर तैयार हो जाती हैं और इसके बाद आगामी फसल समय पर ली जा सकती है। ग्वार की बिजाई के लिए जून का दूसरा पखवाड़ा सबसे उचित बताया। किसानों को सलाह दी जाती है कि मई के महीने में ग्वार की बिजाई कदापि न करें। डॉ. पवन कुमार ने किसानों से आग्रह किया किसी भी फसल का बीज व दवाई खरीदते समय दुकानदार से पक्का बिल अवश्य ले और बीज सरकारी एजेंसियों से खरीदने की कोशिश करें। इसके साथ-साथ उन्होंने खेती की पुरानी पद्धति छोड़कर नई तकनीक अपनाने पर विशेष जोर दिया और किसानों से आह्वान किया कि किसान कृषि वैज्ञानिकों व अधिकारियों के संपर्क में रहें, जिससे उन्हें आधुनिक तकनीक की जानकारी मिलती रहे। शिविर में 76 मौजूद किसानों को बीज उपचार की दो एकड़ की दवाई तथा उसके लिए एक जोड़ी दस्तानें सैं पल दी गई। 

कार्यक्रम में न बरदार रामप्रताप, प्रगतिशील किसान बग्गर सिंह, सुरजाराम, हनुमान, कुलबीर, गुरूदेव सिंह, सुखविन्द्रर सिंह मौजूद रहे।