Kuldevi Jeenmata of Rajasthan: राजस्थान की कुलदेवी जीणमाता का लक्खी मेला चैत्र नवरात्रा पर हुआ शुरू, भक्तों ने माथा टेककर मांगी मन्नतें

जीण माता मंदिर में स्पेशल चांदी के वर्क की पोशाक पहनाकर मां का श्रृंगार किया गया
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mahendra india news, sirsa सीकर जिले में जीण माता के लक्खी मेले में बुधवार को सुबह से ही भक्तों की भीड़लंबी लाइन लग गई। राजस्थान की लोक देवी शेखावाटी की कुलदेवी जीणमाता का लक्खी मेला चैत्र नवरात्रा शुरू हुआ। राजस्थान के इलावा हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश सहित अनेकों प्रदेशों के भक्तों ने माथा टेककर मन्नतें मांगी। 

किया गया मां का श्रृंगार 
जीण माता मंदिर में स्पेशल चांदी के वर्क की पोशाक पहनाकर मां का श्रृंगार किया गया। मुंबई के सिंदूर से मां का तिलक किया गया। दूध से किया मां का अभिषेक। घट स्थापना के साथ सुबह 5: 30 बजे मां का दूध से अभिषेक किया गया। सात रंग की 20 पोशाक भी मां को धारण कराई गई। इसी के साथ मां की चांदी की पोशाक को भक्तों ने तैयार किया। मां के श्रृंगार के लिए कोलकाता और दिल्ली से फूलों को मंगवाया गया हैं। फूल हर दिन ताजा मंदिर में पहुंचेंगे।


आस्था का केंद्र है जीण माता मंदिर 
राजस्थान के सीकर जिले में है जीण माता का मंदिर। जयपुर से इसकी दूरी करीब 120 किलोमीटर के करीब है। इस मंदिर में दिनभर श्रृदालुओं को तांता लगा रहता है। जीण माता के इस मंदिर को तुड़वाने के लिए औरंगजेब ने सैनिक भेजे थे, लेकिन वे ऐसा कर पाने में सफल नहीं हो सके। मंदिर में जाकर हमने देखा कि इसके सबूत आज भी देखने को मिल रहे हैं।  

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ये है मान्यता 
जीण माता का जन्म घांघू गांव के एक चौहान वंश के राजा घंघ के घर में हुआ था। जीण का बड़ा भाई हर्ष था। दोनों भाई बहनों में बहुत प्रेम था। जीण को शक्तिऔर हर्ष को भगवान शिव का रूप माना गया है। मान्यता के अनुसार एक बार जीण अपनी भाभी के साथ पानी भरने तालाब में गई हुई थी। इसी दौरान दोनों में इस बात को लेकर पहले तो बहस हो गई कि हर्ष सबसे ज्यादा किसे मानते हैं। 


ननद भाभी में लग गई शर्त
ननद भाभी में शर्त लग गई। शर्त में सिर पर रखा मटका हर्ष पहले किसका उतारेगा, उससे पता चल जाएगा कि हर्ष किसे सबसे ज्यादा प्रेम करते हैं। इसके बाद दोनों घर पर पहुंची। हर्ष ने सबसे पहले अपनी पत् नी के सिर पर रखा मटका उतार दिया। 


काजल शिखर पर बैठ गई जीण 
जीण अपने भाई से नाराज होकर अरावली के काजल शिखर पर पहुंची। यहां पर जीण बैठी गई और तपस्या करने लगी। इसके बाद हर्ष मनाने गया, लेकिन जीण नहीं लौटी और भगवती की तपस्या में लीन हो गई। इसके बाद बहन जीण को मनाने के लिए हर्ष भी भैरों की तपस्या में लीन हो गया। मान्यता है कि अब दोनों की तपस्या स्थली जीणमाता धाम और हर्षनाथ भैरव के रूप में जानी जाती है।


 

मंदिर में लगते हैं मेले 
जीण माता मंदिर में हर वर्ष चैत्र सुदी एकम् से नवमी तक और आसोज सुदी एकम् से नवमी में दो मेले लगते है। इसमें लाखों संख्या में श्रद्धालु आते हैं। जीणमाता मेले में राजस्थान के सााथ अनेक प्रदेशों से भी लोग आते हैं। मेला लगने पर मंदिर के बाहर सपेरे मस्त होकर बीन बजाते हैं। 


 

औरंगजेब ने किया हमला 
इस मंदिर को तुड़वाने के लिए मुगल बादशाह औरंगजेब ने हमला किया। इसके लिए उन्होंने अपने सैनिकों को भेजा था। इसके बाद ग्रामीणों ने सैनिकों से मंदिर न तोडऩे की गुहार लगाई। इसके बाद सैनिक नहीं माने तो मंदिर में माता की आराधना करने लगे। इस पर गांव वालों की प्रार्थना को जीण माता ने सुन लिया था। उन्हीं के प्रताप से मंदिर तोडऩे आए सैनिकों पर मधुमक्खियों का झुंड टूट पड़ा। इससे घबराए सैनिक वहां से भाग खड़े हुए। इसके बाद से लोगों की श्रद्धा इस मंदिर पर और भी बढ़ गई। 

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